पाकिस्तान में धार्मिक विरासत पर संकट: 1,817 मंदिर–गुरुद्वारों में से सिर्फ 37 में ही पूजा-अर्चना

सदियों पुराने धार्मिक स्थलों की उपेक्षा के साथ ही 2025 में आतंकवादी घटनाओं में 25% उछाल ने देश की नीतियों पर सवाल खड़े किए।

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  • 1,817 मंदिरों-गुरुद्वारों में से केवल 37 में ही नियमित पूजा-अर्चना
  • ईटीपीबी पर उपेक्षा और कुप्रबंधन के आरोप; गैर-मुस्लिम नेतृत्व की माँग
  • विभाजन के बाद के पलायन से धार्मिक स्थलों का पतन, संरक्षण की सिफारिशें
  • 2025 में आतंकवादी हिंसा 25% बढ़ी, 3,187 मौतें दर्ज

समग्र समाचार सेवा
इस्लामाबाद/कराची। 04 दिसंबर:  पाकिस्तान में रहने वाले हिंदू और सिख समुदाय के लिए बीता एक साल किसी बोझिल अध्याय की तरह खुला है। एक तरफ उनकी प्रार्थनालयें चुपचाप मलबे में बदलती जा रही हैं, दूसरी ओर देश में बढ़ती हिंसा ने असुरक्षा की भावना को और गहरा कर दिया है। संसदीय समिति के समक्ष प्रस्तुत एक नई रिपोर्ट ने साफ दिखा दिया कि आस्था और सुरक्षा, दोनों ही मोर्चों पर पाकिस्तान अपनी ही जनता को संभालने में पिछड़ रहा है।

मंदिर, जहाँ कभी दीप जलते थे… अब ताले और धूल बैठी है

रिपोर्ट के आँकड़े एक बेचैन करने वाला सच सामने रखते हैं, पाकिस्तान में मौजूद 1,817 मंदिरों और गुरुद्वारों में से सिर्फ 37 में ही पूजा-अर्चना होती है।
बाकी स्थानों की कहानी लगभग एक जैसी है: टूटी हुई दीवारें, बंद पड़े द्वार, और सरकारी उदासीनता से पनप चुकी वीरानी।

संसदीय सत्र में सांसद दानेश कुमार ने यह साफ कहा कि अल्पसंख्यकों को कागज़ पर लिखे वादे नहीं, जमीनी हक़ चाहिए। उनका वक्तव्य किसी सरकारी दस्तावेज़ जैसा नहीं, बल्कि उस दर्द को आवाज़ देता है जो पीढ़ियों से महसूस किया जा रहा है, अगर हम आज इन मंदिरों को नहीं बचा सके, तो आने वाली पीढ़ियाँ केवल तस्वीरों में ही अपनी विरासत ढूँढेंगी।

ईटीपीबी पर सवाल: संरक्षण किसके भरोसे?

बैठक के दौरान पाकिस्तान हिंदू काउंसिल के वरिष्ठ सदस्य डॉ. रमेश कुमार वंकवानी ने इवैक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड (ETPB) के कामकाज को लेकर कड़ी नाराज़गी जताई।
उनका कहना था कि बोर्ड के अधिकार क्षेत्र में होने के बाद भी मंदिर और गुरुद्वारे जस के तस छोड़ दिए गए, जैसे उनकी सांस्कृतिक या धार्मिक कोई अहमियत ही न हो।

उनकी यह माँग भी पहली बार नहीं उठी कि ETPB का नेतृत्व किसी गैर-मुस्लिम को सौंपा जाए, ताकि कम से कम विश्वास और संवेदनशीलता के साथ धार्मिक धरोहरों का संरक्षण हो सके।

विभाजन का घाव आज भी ताज़ा

सांसद केसू मल खेल दास ने याद दिलाया कि 1947 के विभाजन ने केवल सीमाएँ नहीं खींचीं, बल्कि पूरे समुदायों को उखाड़कर नई दिशाओं में धकेल दिया।
उनके अनुसार, जब लोग ही चले गए, तो मंदिर और गुरुद्वारे अपने ही आँगन में अनाथ हो गए।
उन्होंने सुझाव दिया कि इन स्थलों को सांस्कृतिक धरोहर के रूप में विकसित किया जा सकता है—ताकि दुनियाभर से आने वाले तीर्थयात्रियों को पाकिस्तान के बहुसांस्कृतिक अतीत की झलक मिल सके।

साल 2025: जब सुरक्षा की कहानी और खौफनाक हो गई

धार्मिक स्थलों की दुर्दशा ही पाकिस्तान की एकमात्र चुनौती नहीं है।
सुरक्षा मोर्चे पर भी वर्ष 2025 बेहद भयावह साबित हुआ।

इस्लामाबाद स्थित सेंटर फॉर रिसर्च एंड सिक्योरिटी स्टडीज़ (CRSS) की रिपोर्ट बताती है कि जनवरी से नवंबर तक आतंकी हिंसा में 25% की वृद्धि दर्ज हुई।
3,187 लोगों ने जान गंवाई, जिनमें से 96% मौतें खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में हुईं वही दो प्रांत जहाँ हिंसा लगभग एक रोज़मर्रा की वास्तविकता बन चुकी है।

यह आँकड़ा सिर्फ हिंसा का नहीं, बल्कि उस राज्य तंत्र की कमजोरी का परिचायक है, जो चरमपंथी गतिविधियों को रोकने में बार-बार विफल हो रहा है।

विशेषज्ञों का कहना है कि जब देश की सुरक्षा और अल्पसंख्यक अधिकार, दोनों ही कमजोर पड़ जाएँ, तो समाज में भरोसा टूटने लगता है—और आज पाकिस्तान ठीक उसी मोड़ पर खड़ा दिखाई देता है।

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