संचार साथी ऐप: सरकार ने अनिवार्यता वापस ली
निजता पर बढ़ते विवाद और ऐप की 10 गुना बढ़ी स्वीकार्यता के बाद दूरसंचार विभाग ने स्मार्टफोन में प्री-इंस्टॉलेशन का आदेश लिया वापस
- आदेश वापस: दूरसंचार विभाग (DoT) ने 28 नवंबर के आदेश को वापस लेते हुए स्मार्टफोन में संचार साथी ऐप के अनिवार्य प्री-इंस्टॉलेशन को समाप्त कर दिया।
- जनता का विश्वास: सरकार ने इस बदलाव का कारण ऐप की स्वैच्छिक स्वीकार्यता में अभूतपूर्व वृद्धि को बताया। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, पिछले 24 घंटों में 6 लाख नए रजिस्ट्रेशन दर्ज हुए, जो सामान्य से 10 गुना अधिक हैं।
- मंत्री का स्पष्टीकरण: संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने लोकसभा में दोहराया कि यह ऐप केवल साइबर सुरक्षा के लिए है और जासूसी (Snooping) करना न तो संभव है, न ही कभी होगा; ऐप का उपयोग पूरी तरह से स्वैच्छिक रहेगा।
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 3 दिसंबर: केंद्रीय संचार मंत्रालय ने बुधवार को एक बड़ा फैसला लेते हुए नए स्मार्टफोन में साइबर सुरक्षा ऐप संचार साथी के अनिवार्य प्री-इंस्टॉलेशन (पहले से इंस्टॉल करने) के अपने पूर्व आदेश को वापस ले लिया है। इस कदम से स्मार्टफोन निर्माताओं को बड़ी राहत मिली है, वहीं विपक्ष और डिजिटल अधिकार समूहों की निजता संबंधी चिंताओं पर भी विराम लगा है। दूरसंचार विभाग (DoT) ने इस यू-टर्न का कारण ऐप की बढ़ती स्वैच्छिक स्वीकार्यता को बताया है।
क्यों जारी किया गया था अनिवार्य आदेश?
दूरसंचार विभाग ने 28 नवंबर को एक निर्देश जारी किया था, जिसमें भारत में निर्मित या आयात किए जाने वाले सभी नए स्मार्टफोनों में संचार साथी ऐप को अनिवार्य रूप से प्री-इंस्टॉल करने के लिए मोबाइल निर्माताओं को 90 दिन का समय दिया गया था। सरकार का उद्देश्य साइबर धोखाधड़ी (Cyber Fraud) और चोरी हुए मोबाइल की ट्रैकिंग के खिलाफ साइबर सुरक्षा तक पहुंच को सभी नागरिकों के लिए आसान बनाना था।
संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने स्पष्ट किया था कि यह ऐप नागरिकों को फर्जी मोबाइल कनेक्शनों की पहचान करने, चोरी हुए फोन को ब्लॉक करने और धोखाधड़ी की रिपोर्ट करने में मदद करता है। सरकार का शुरूआती तर्क था कि प्री-इंस्टॉलेशन से उन कम जागरूक नागरिकों तक भी यह सुरक्षा उपकरण आसानी से पहुंच जाएगा।
निजता और जासूसी पर विवाद
जैसे ही यह आदेश सार्वजनिक हुआ, विपक्ष (कांग्रेस, AAP, TMC) और इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन जैसे डिजिटल अधिकार संगठनों ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई। विपक्ष ने इसे “निजता पर हमला” करार दिया और आशंका जताई कि इस ऐप का इस्तेमाल नागरिकों की जासूसी (Surveillance) के लिए किया जा सकता है। कुछ आलोचकों ने इसे ‘आम आदमी का पेगासस’ तक कह डाला।
इसके अलावा, Apple और Samsung सहित कई बड़ी स्मार्टफोन कंपनियों ने भी इस आदेश पर चिंता व्यक्त की थी, उनका मानना था कि इस तरह के सरकारी सॉफ्टवेयर को अनिवार्य रूप से डिवाइस में डालना वैश्विक प्राइवेसी मानकों और कंपनी की नीतियों के खिलाफ है।
सरकार ने दिया ‘जनभागीदारी’ का हवाला
विवाद बढ़ने के बाद, संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बुधवार को लोकसभा में इस मुद्दे पर स्पष्टीकरण दिया। उन्होंने जोर देकर कहा कि ऐप का इस्तेमाल जासूसी के लिए नहीं किया जा सकता और यह पूरी तरह से सुरक्षित है।
आदेश वापस लेने के पीछे मंत्रालय ने आधिकारिक तौर पर जनता की सकारात्मक भागीदारी को कारण बताया। मंत्रालय ने एक बयान में कहा, “चूंकि संचार साथी की स्वीकार्यता लगातार बढ़ रही है, इसलिए सरकार ने मोबाइल निर्माताओं के लिए प्री-इंस्टॉलेशन को अनिवार्य नहीं करने का निर्णय लिया है।” सरकार ने बताया कि अब तक 1.4 करोड़ से अधिक उपयोगकर्ता ऐप डाउनलोड कर चुके हैं और केवल एक दिन में 6 लाख नए पंजीकरण दर्ज हुए, जो नागरिकों द्वारा ऐप पर दिखाए गए विश्वास की पुष्टि करता है। अब यह ऐप पूरी तरह से स्वैच्छिक रूप से डाउनलोड के लिए उपलब्ध रहेगा और उपयोगकर्ता जब चाहें इसे अनइंस्टॉल कर सकते हैं।
यह निर्णय दर्शाता है कि सरकार ने जनता की निजता संबंधी चिंताओं और डिजिटल अधिकार समूहों के विरोध को गंभीरता से लिया है, जिसके बाद संचार साथी अनिवार्यता समाप्त कर दी गई है।