सार्वजनिक निधि से बाबरी मस्जिद बनवाना चाहते थे जवाहरलाल नेहरू

सरदार पटेल की 150वीं जयंती पर रक्षा मंत्री ने कहा— नेहरू ने सरकारी पैसों से बाबरी मस्जिद निर्माण का प्रस्ताव रखा था, लेकिन पटेल ने इसे खारिज कर दिया।

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  • राजनाथ सिंह बोले, फंड सार्वजनिक निधि से बाबरी मस्जिद बनाना चाहते थे, पटेल ने विरोध किया।
  • सोमनाथ मंदिर के लिए आम जनता ने चंदा दिया था, इसलिए वह अलग मामला था।
  • पटेल प्रधानमंत्री बन सकते थे, लेकिन उन्होंने गांधी की सलाह पर नाम वापस लिया।
  • नेहरू ने खुद को भारत रत्न दिया, लेकिन पटेल को सम्मान नहीं मिला,  सिंह का बयान।

समग्र समाचार सेवा
वडोदरा, 3 दिसंबर: सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती के अवसर पर वडोदरा के पास साधली गांव में आयोजित ‘एकता मार्च’ के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बड़ा राजनीतिक दावा किया। उन्होंने कहा कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद के निर्माण के लिए सरकारी धन का इस्तेमाल करने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन सरदार पटेल ने इसका स्पष्ट विरोध किया और योजना को लागू नहीं होने दिया।

सोमनाथ मंदिर पर नेहरू–पटेल मतभेद का उल्लेख

राजनाथ सिंह ने कहा कि नेहरू ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण पर भी सवाल उठाए थे, जिस पर पटेल ने उन्हें बताया कि मंदिर के लिए आवश्यक 30 लाख रुपये आम जनता के दान से जुटाए गए थे और यह सरकारी फंड से नहीं लिया गया था। इसलिए यह मुद्दा बाबरी मस्जिद से बिल्कुल अलग था।

पटेल प्रधानमंत्री बन सकते थे, लेकिन पद का लोभ नहीं किया

अपने संबोधन में सिंह ने कहा कि सरदार वल्लभभाई पटेल प्रधानमंत्री बनने के प्रबल दावेदार थे। 1946 में कांग्रेस कमेटी के अधिकतर सदस्यों ने पटेल का नाम प्रस्तावित किया था। लेकिन जब महात्मा गांधी ने सलाह दी कि नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने दें, तो पटेल ने तुरंत अपना नाम वापस ले लिया।
सिंह के अनुसार, पटेल ने कभी किसी पद के लिए महत्वाकांक्षा नहीं दिखाई और देश तथा संगठन को प्राथमिकता दी।

पटेल की विरासत को दबाने का आरोप

राजनाथ सिंह ने बिना किसी का नाम लिए कहा कि कुछ राजनीतिक शक्तियों ने वर्षों तक पटेल की विरासत को पीछे धकेलने की कोशिश की। उनका कहना था कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही हैं जिन्होंने स्टैच्यू ऑफ यूनिटी बनवाकर पटेल को वह सम्मान दिलाया जो उन्हें मिलना चाहिए था।

मेमोरियल फंड को कुएं और सड़कों पर खर्च करने का सुझाव— सिंह ने बताया ‘असमंजस’

रक्षा मंत्री ने दावा किया कि सरदार पटेल की मृत्यु के बाद आम लोगों ने उनके स्मारक के लिए धन एकत्र किया था, लेकिन जब यह बात नेहरू तक पहुंची तो उन्होंने सुझाव दिया कि यह राशि गांवों में कुएं और सड़कें बनाने पर खर्च की जाए।
सिंह के अनुसार, यह सुझाव “बेतुका” था और इससे संकेत मिलता है कि उस दौर की सरकार पटेल की विरासत को कम महत्व देना चाहती थी।

नेहरू ने खुद को भारत रत्न दिया, लेकिन पटेल को क्यों नहीं मिला?- सिंह

अपने संबोधन में सिंह ने सवाल उठाया कि प्रधानमंत्री नेहरू ने खुद को भारत रत्न सम्मान दिया था, लेकिन इतने महत्वपूर्ण राष्ट्रीय नेता रहे सरदार पटेल को उस समय भारत रत्न क्यों नहीं दिया गया?
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में ही पटेल को वह पहचान मिली, जिसके वे हकदार थे।

पटेल की उम्र को मुद्दा बनाना गलत – राजनाथ सिंह

सिंह ने कहा कि यह धारणा गलत है कि पटेल प्रधानमंत्री बनने के लिए बहुत उम्रदराज थे। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि मोरारजी देसाई 80 वर्ष की उम्र के बाद भी प्रधानमंत्री बने। ऐसे में पटेल को उम्र के आधार पर पीछे नहीं किया जा सकता था।

कश्मीर मुद्दे पर पटेल की सोच होती तो हालात अलग, सिंह का तर्क

राजनाथ सिंह ने कहा कि अगर कश्मीर के विलय के समय सरदार पटेल की सलाह को गंभीरता से लिया गया होता, तो भारत लंबे समय तक कश्मीर मुद्दे से नहीं जूझता।
उन्होंने कहा कि पटेल दृढ़ और व्यवहारिक नेता थे, जो बातचीत और ठोस निर्णय लेने में विश्वास रखते थे।

ऑपरेशन सिंदूर का जिक्र, भारत किसी को उकसाता नहीं, लेकिन जवाब देना जानता है

रक्षा मंत्री ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत एक शांतिप्रिय देश है और किसी को उकसाता नहीं है, लेकिन अगर कोई भारत को उकसाता है, तो उसे करारा जवाब देने में देश सक्षम है। उन्होंने कहा कि इस ऑपरेशन की चर्चा न केवल भारत में बल्कि दुनिया के देशों में हो रही है।

अनुच्छेद 370 हटाना ऐतिहासिक फैसला-सिंह

जम्मू-कश्मीर को लेकर उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 हटाना कोई साधारण कदम नहीं था। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में ही यह संभव हुआ और इससे कश्मीर का भारत से जुड़ाव मजबूत हुआ।

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