बंगाल में विशेष गहन पुनरीक्षण पर सियासी घमासान जारी
बंगाल में विशेष गहन पुनरीक्षण पर सियासी घमासान जारी, चुनाव से पहले क्या है टीएमसी और भाजपा रणनीति?
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एसआईआर प्रक्रिया को लेकर राज्य में गहरा राजनीतिक टकराव
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टीएमसी का आरोप—वैध मुस्लिम और सीमावर्ती इलाकों के बंगाली वोटरों को हटाया जा रहा
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भाजपा का दावा—बांग्लादेशी घुसपैठ और फर्जी वोटरों को हटाने का जरूरी कदम
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विधानसभा चुनाव से पहले चुनावी नैरेटिव बदलने की दोनों की बड़ी तैयारी
समग्र समाचार सेवा
कोलकाता, 02 दिसंबर: पश्चिम बंगाल में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को लेकर सियासी घमासान इस वक्त चरम पर है। विधानसभा चुनाव में एक साल से भी कम समय बचा है और ठीक इसी दौर में चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट की गहन जांच का अभियान शुरू किया है। आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया एक रूटीन गतिविधि है जो हर 5–10 साल में होती है, ताकि वोटर लिस्ट से मृत, डुप्लिकेट, दोहरे और फर्जी वोटरों के नाम हटाए जा सकें।
लेकिन बंगाल में यह प्रशासनिक कवायद एक राजनीतिक ज्वालामुखी बन गई है, जिसकी आंच दिल्ली तक महसूस की जा रही है।
विशेष गहन पुनरीक्षण क्या है? और बंगाल में विवाद क्यों हुआ?
विशेष गहन पुनरीक्षण, यह वह प्रक्रिया है जिसमें बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) घर-घर जाकर मतदाताओं से फॉर्म भरवाते हैं और आधार, जन्म प्रमाणपत्र, मृत्यु प्रमाणपत्र, पता और नागरिकता से जुड़े दस्तावेजों की जांच करते हैं।
इस बार बंगाल के साथ 12 राज्यों में विशेष गहन पुनरीक्षण चल रहा है और बिहार में यह प्रक्रिया पहले ही पूरी हो चुकी है।
हालांकि, बंगाल में विशेष गहन पुनरीक्षण शुरू होते ही झगड़ा इसलिए भड़का क्योंकि
- राज्य में बड़ी संख्या में सीमावर्ती और अल्पसंख्यक वोटर हैं
- टीएमसी को संदेह है कि भाजपा राज्य में एक नया एनआरसी मॉडल लागू कर रही है
- बीएलओ पर दबाव, तनाव, धमकियों और आत्महत्या जैसी घटनाओं ने आग में घी डालने का काम किया
यही वजह है कि एक सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया एक विशाल चुनावी मुद्दा बन गई है।
टीएमसी का आरोप: वैध मतदाताओं को बाहर करने का षड्यंत्र
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विशेष गहन पुनरीक्षण को सीधा-सीधा “एनआरसी की शुरुआत” बताया है। उनका दावा है कि केंद्र और चुनाव आयोग मिलकर
करीब 2 करोड़ वैध मुस्लिम, दलित और सीमावर्ती बंगाली वोटरों के नाम काटने की साजिश कर रहे हैं।
ममता के मुताबिक:
- विशेष गहन पुनरीक्षण के नाम पर वैध भारतीय नागरिकों से दस्तावेज मांगे जा रहे हैं
- सीमावर्ती जिलों जैसे मुर्शिदाबाद, मालदा, उत्तरी व दक्षिणी 24 परगना सबसे अधिक निशाने पर हैं
- यह पूरी प्रक्रिया “भाजपा का वोट बैंक इंजीनियरिंग मॉडल” है
ममता ने बोंगांव की रैली में कहा,
“अगर एक भी वैध वोटर का नाम काटा गया, तो केंद्र सरकार भी डिलीट हो जाएगी।”
TMC इसे एक गलत राजनीतिक एजेंडा बताकर जनता के बीच लगातार प्रचार कर रही है।
पार्टी का लक्ष्य है कि
- मुस्लिम वोटर
- सीमावर्ती बंगाली
- गरीब और दस्तावेज़हीन जनजातीय समुदाय
को यह विश्वास दिलाया जाए कि टीएमसी ही उनकी सुरक्षा कर सकती है।
भाजपा का पलटवार: “घुसपैठियों और फर्जी वोटरों को हटाना जरूरी”
भाजपा ने टीएमसी के आरोपों को पूरी तरह खारिज करते हुए कहा है कि बंगाल में
60 लाख से अधिक फर्जी वोटर हैं, जिनमें बांग्लादेशी घुसपैठिए, रोहिंग्या और अवैध प्रवासी शामिल हैं।
भाजपा के अनुसार:
- टीएमसी फर्जी वोटों पर चुनाव जीतती है
- विशेष गहन पुनरीक्षण का विरोध केवल इसलिए किया जा रहा है ताकि अवैध नागरिक वोटर लिस्ट में बने रहें
- बीएलओ पर दबाव और धमकियां टीएमसी की रणनीति का हिस्सा हैं
सुवेंदु अधिकारी का बयान साफ है:
“टीएमसी चाहती है कि बंगाल में फर्जी वोटर बने रहें। अगर विशेष गहन पुनरीक्षण पूरा हो जाए तो टीएमसी की चुनावी जमीन हिल जाएगी।”
भाजपा इसे “वोटर-लिस्ट का शुद्धिकरण” बताती है और कहती है कि विशेष गहन पुनरीक्षण से
- चुनाव पारदर्शी होंगे
- परिणाम वास्तविक वोटर तय करेंगे
- घुसपैठ जैसी पुरानी समस्या पर अंकुश लगेगा
बीएलओ आत्महत्या और ‘अनकलेक्टेबल फॉर्म’ का बड़ा विवाद
विशेष गहन पुनरीक्षण के दौरान बंगाल में अब तक
- 7 बीएलओ आत्महत्या कर चुके
- 14 लाख फॉर्म ‘अनकलेक्टेबल’ घोषित हुए
टीएमसी कहती है कि यह विशेष गहन पुनरीक्षण के कारण पैदा हुआ तनाव है।
भाजपा का कहना है कि बीएलओ पर सबसे ज्यादा दबाव टीएमसी की ओर से है।
यह मुद्दा अब राज्य की राजनीति में गंभीर मोड़ ले चुका है, क्योंकि इससे चुनाव आयोग की विश्वसनीयता और सरकार की संवेदनशीलता दोनों सवालों में हैं।
2026 विधानसभा चुनाव और दोनों पार्टियों की बड़ी रणनीति
टीएमसी की चुनावी रणनीति
1.विशेष गहन पुनरीक्षण को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाना
ताकि भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दे दब जाएँ।
2. अल्पसंख्यक और सीमावर्ती बंगाली वोटरों को एकजुट करना
टीएमसी जानती है कि यह उसका कोर वोट बैंक है।
3.भारत निर्वाचन आयोग को भाजपा का एजेंट बताकर जनता में अविश्वास पैदा करना
इससे “हम बनाम केंद्र” की लड़ाई मजबूत होती है।
4. ममता बनर्जी की ‘दीदी’ वाली छवि को दोबारा चमकाना
यानी केंद्र के खिलाफ लड़ने वाली नेता के रूप में पेश करना।
5.भाजपा को ‘बाहरी’ बताकर बंगाली अस्मिता जगाना
2021 में यही नैरेटिव टीएमसी को जीताने में मददगार रहा था।
भाजपा की चुनावी रणनीति
1. भ्रष्टाचार, महिला सुरक्षा और कानून-व्यवस्था को मुख्य नैरेटिव बनाना
ताकि चुनाव विशेष गहन पुनरीक्षण पर केंद्रित न रहे।
2. घुसपैठ और फर्जी वोटर का मुद्दा उठाकर हिंदू वोटरों को संगठित करना।
3. वंदे मातरम्, बंकिमचंद्र और बंगाली अस्मिता के मुद्दों को उभारना
ताकि टीएमसी मुस्लिम मनौती में फँसे और हिंदू वोटर नाराज़ हो।
4. सुवेंदु अधिकारी को ममता के सामने सीएम चेहरा बनाना
और भवानीपुर से सीधे ममता को चुनौती देना।
5. “200 पार या 100 के अंदर” जैसी आक्रामक रणनीति
यानी या तो पूर्ण बहुमत, या विपक्ष में तेज़ वापसी।
क्या विशेष गहन पुनरीक्षण विवाद ममता का एंटी-इंकॉम्बेंसी शील्ड है?
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि
2026 में टीएमसी को भ्रष्टाचार,एसएससी घोटाला, कटमनी, बेरोजगारी और कानून-व्यवस्था पर तीखे सवालों का सामना करना पड़ सकता था।
लेकिन अब विशेष गहन पुनरीक्षण ने चुनावी बहस को पूरी तरह बदल दिया है।
अब नैरेटिव यह है:
“वोटर अधिकार बनाम घुसपैठ रोकथाम”
यह नई बहस टीएमसी को रक्षात्मक नहीं, बल्कि आक्रामक स्थिति में ला देती है।
यही वजह है कि ममता विशेष गहन पुनरीक्षण को मुद्दा नंबर-1 बनाए रखना चाहती हैं।
वहीं भाजपा यह सुनिश्चित करना चाहती है कि चुनाव का फोकस वापस
टीएमसी की विफलताओं, भ्रष्टाचार और कानून-व्यवस्था पर आए।