केरल :सुप्रीम कोर्ट का आदेश स्कूल-विहीन क्षेत्रों में अनिवार्य प्राथमिक विद्यालय

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पूनम शर्मा
केरल, जिसे भारत का सबसे साक्षर राज्य माना जाता है, वहाँ  शिक्षा का अधिकार और उसकी ज़मीनी हक़ीक़त एक बार फिर राष्ट्रीय बहस में है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक ऐतिहासिक टिप्पणी करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया कि ऐसे सभी क्षेत्रों में लोअर और अपर प्राइमरी स्कूल स्थापित किए जाएं जहाँ कोई भी स्कूल मौजूद नहीं है—चाहे भौगोलिक परिस्थितियां कितनी ही कठिन क्यों न हों। यह आदेश न केवल केरल के शिक्षा मॉडल पर महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है, बल्कि उन हजारों बच्चों की उम्मीद भी जगाता है जो वर्षों से स्कूल की दूरी और सरकारी उपेक्षा के बीच फंसे हुए थे।

सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख: तीन महीने में नीति तय करें

मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने साफ कहा कि राज्य को तीन महीने के भीतर स्पष्ट नीति बनानी होगी, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि—

यदि 1 किलोमीटर के दायरे में लोअर प्राइमरी स्कूल नहीं है, तो नया स्कूल खोला जाए।

यदि 3 किलोमीटर के दायरे में अपर प्राइमरी स्कूल नहीं है, तो इसे स्थापित किया जाए।

पीठ ने स्वीकार किया कि सरकार के पास तत्काल बड़े निर्माण कार्यों के लिए बजट न हो, लेकिन अस्थायी समाधान के रूप में निजी भवनों का इस्तेमाल किया जा सकता है। साथ ही स्पष्ट किया कि यह व्यवस्था स्थायी नहीं हो सकती, और सरकार को नियमित बजट आवंटन करना ही होगा।

पंचायत की भूमिका और शिक्षकों की कमी

सुप्रीम कोर्ट ने ग्राम पंचायतों को निर्देश देने का सुझाव भी दिया कि वे उपलब्ध भूमि और भवनों की सूची सरकार को सौंपें, ताकि स्कूलों के लिए स्थान तय करने में समय न लगे।
जहां नियमित शिक्षक नियुक्त करना तुरंत संभव न हो, वहां सेवानिवृत्त शिक्षकों को अस्थायी रूप से नियुक्त करने पर भी अदालत ने सहमति व्यक्त की।

चैरिटेबल संस्थानों को भी मौका, लेकिन पारदर्शिता अनिवार्य

पीठ ने कहा कि सरकार चाहे तो विश्वसनीय संस्थानों को स्कूल खोलने का निमंत्रण दे सकती है, लेकिन शर्तें साफ हों—

प्रवेश प्रक्रिया में पारदर्शिता हो कोई भी कैपिटेशन फीस न ली जाए

समानता और शिक्षा के अधिकार (RTE) कानून के सिद्धांतों का पालन अनिवार्य हो

एलमब्रा मामला : 35 वर्षों का संघर्ष

इस आदेश के पीछे एक लंबा इतिहास है—विशेषकर मालप्पुरम जिले के मंजेरी नगरपालिका के एलमब्रा क्षेत्र का, जहां के लोगों को न्याय पाने में 35 साल लग गए।
एलमब्रा के लगभग 350 मुस्लिम परिवार, जिनमें ज्यादातर दिहाड़ी मजदूर और कुली शामिल हैं, वर्षों से अपने बच्चों को 3–4 किलोमीटर दूर स्थित स्कूलों में भेजने को मजबूर थे।
साल 2020 में केरल हाई कोर्ट ने वहाँ  लोअर प्राइमरी स्कूल खोलने का आदेश दिया था। लेकिन राज्य सरकार ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सरकार का पुराना तर्क: “इंडिविजुअल रिक्वेस्ट नहीं मानी जा सकती” केरल सरकार का कहना था कि—

स्कूल निर्माण केवल तभी किया जा सकता है जब “स्कूल मैपिंग” से शैक्षिक आवश्यकता साबित हो

राज्य व्यक्तिगत मांगों पर स्कूल नहीं खोल सकता लेकिन यह तर्क तब कमजोर पड़ गया जब—

स्थानीय अधिकारियों ने वर्षों तक स्कूल की जरूरत को स्वीकार किया,

राज्य मानवाधिकार आयोग और चाइल्ड राइट्स कमीशन ने भी क्षेत्र में स्कूल खोलने की सिफारिश की,

और यहां तक कि इस क्षेत्र से चुने गए विधायक 2006 में राज्य के शिक्षा मंत्री भी बने, फिर भी स्कूल नहीं खुल पाया।

सवाल यह भी: सबसे साक्षर राज्य में ऐसी उपेक्षा क्यों ?

केरल को भारत का सबसे साक्षर राज्य कहा जाता है।

फिर भी—एक मुस्लिम बहुल, गरीब, श्रमिक समुदाय को केवल एक प्राथमिक विद्यालय पाने में साढ़े तीन दशक क्यों लग गए ?

यह न सिर्फ शासन की प्राथमिकताओं पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि शिक्षा के अधिकार का असली अर्थ अब भी कई समुदायों तक नहीं पहुँच  पाया है।

नया आदेश—नया रास्ता

सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश संकेत है कि—

शिक्षा बुनियादी अधिकार है, भौगोलिक कठिनाई कोई बहाना नहीं, और सरकार “सबसे साक्षर राज्य” के दावे को तभी सार्थक कर सकती है जब अंतिम बच्चे तक पहुँच सुनिश्चित हो।

एलमब्रा के बच्चों ने 35 साल का इंतज़ार किया।
अब उम्मीद है कि केरल सरकार अपने नीति-निर्धारण में तेजी दिखाएगी और इस आदेश को पूरे राज्य में शिक्षा के समान अधिकार के रूप में लागू करेगी।

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