SC का ऐतिहासिक फैसला: राज्यपाल बिल रोक नहीं सकते पर समयसीमा नहीं
राष्ट्रपति के 14 संवैधानिक सवालों पर संविधान पीठ ने दी राय, संघीय ढांचे पर बड़ा असर
- सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भेजे गए 14 संवैधानिक सवालों में से 13 का जवाब दिया।
- कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल या राष्ट्रपति के लिए विधेयकों पर फैसला लेने की कोई समय सीमा (Timeline) तय नहीं की जा सकती।
- कोर्ट ने यह भी साफ किया कि राज्यपाल के पास किसी विधेयक को अनिश्चितकाल के लिए रोकने (Stopping) का कोई अधिकार नहीं है; उन्हें उचित समय में निर्णय लेना होगा।
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 20 नवंबर: भारत के संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति को सार्वजनिक महत्व के कानूनी या तथ्यात्मक प्रश्नों पर सर्वोच्च न्यायालय से सलाह मांगने का अधिकार है। इस प्रक्रिया को प्रेसिडेंशियल रेफरेंस कहा जाता है।
यह संदर्भ (Reference) तमिलनाडु राज्यपाल से संबंधित एक पूर्व सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आया था, जहाँ दो-न्यायाधीशों की पीठ ने राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए बिलों पर निर्णय लेने हेतु एक समय सीमा निर्धारित करने का प्रयास किया था। राष्ट्रपति मुर्मू ने इस निर्णय के संवैधानिक औचित्य पर स्पष्टता के लिए सुप्रीम कोर्ट की पांच-सदस्यीय संविधान पीठ से राय मांगी थी, जिसका नेतृत्व चीफ जस्टिस बी. आर. गवई कर रहे थे।
राज्यपाल की शक्ति पर बड़ा संवैधानिक स्पष्टीकरण
दस दिनों की मैराथन सुनवाई के बाद, सर्वोच्च न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक अभिमत में राज्यपाल (अनुच्छेद 200) और राष्ट्रपति (अनुच्छेद 201) की शक्तियों पर महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण दिए:
1. समय सीमा निर्धारित करना गलत
कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि पूर्व में तमिलनाडु मामले में राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए बिल को मंजूरी देने हेतु समय सीमा (Timeline) निर्धारित करने वाले पैराग्राफ त्रुटिपूर्ण (erroneous) थे। संविधान पीठ ने कहा कि अदालत के पास ऐसी कोई समय सीमा तय करने का अधिकार नहीं है।
2. अनिश्चितकाल के लिए बिल को रोक नहीं सकते
हालांकि कोर्ट ने समय सीमा तय करने से इनकार कर दिया, लेकिन उसने यह भी साफ किया कि राज्यपाल के पास किसी भी विधेयक को अनिश्चितकाल तक रोके रखने (Stop) या लंबा खिंचने (Delay) का कोई अधिकार नहीं है। कोर्ट ने कहा कि अत्यधिक देरी लोकतांत्रिक शासन की आत्मा को क्षति पहुँचाती है और राज्यपाल से अपेक्षा है कि वे उचित समय (Reasonable Time) के भीतर निर्णय लें।
3. राज्यपाल के संवैधानिक विकल्प
संविधान पीठ ने अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास मौजूद विकल्पों की स्पष्ट व्याख्या की। उनके पास तीन मुख्य विकल्प हैं:
विधेयक को मंजूरी देना (Assent)।
विधेयक को सदन में वापस भेजना (Return with a message)। (इसके बाद विधानसभा को इस पर पुनर्विचार करना होता है।)
विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखना (Reserve for President’s consideration)।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल के पास विधेयक को सदन में वापस भेजे बिना सीधे ही रोक लेने का कोई चौथा विकल्प नहीं है।
4. न्यायिक समीक्षा और विवेकाधिकार
कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 200 के तहत लिए गए निर्णयों की न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) सीमित है। हालांकि, अगर राज्यपाल जानबूझकर निष्क्रियता दिखाते हैं और संवैधानिक कर्तव्यों का निर्वहन नहीं करते हैं, तो अदालत सीमित परमादेश (Limited Mandamus) जारी कर सकती है। कोर्ट ने यह भी माना कि राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करते हैं, लेकिन अनुच्छेद 200 के तहत विधेयक को वापस करने या राष्ट्रपति के लिए आरक्षित रखने में उनके पास विवेक (Discretion) का अधिकार है।
इस फैसले से केंद्र और राज्यों के बीच संघीय ढांचे (Federal Structure) के तहत शक्तियों के संतुलन पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा और राज्यपाल की भूमिका को और अधिक स्पष्टता मिलेगी।