पूनम शर्मा
कर्नाटक के मुख्यमंत्री श्री सिद्धरामैया के गृह निर्वाचन क्षेत्र वरुणा में एक गंभीर प्रशासनिक विफलता उजागर हुई है। ग्राम पंचायत की ग्रेड-1 सचिव दिव्या ने अपने कार्यालय में लगभग 15 गोलियां खाने के बाद बेहोशी की हालत में गिर पड़ी। इस घटना के बाद प्रशासन और सरकार की नींव से जुड़े गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं कि क्या स्थानीय स्तर पर सरकारी अधिकारियों की सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य पर कोई ध्यान दिया जा रहा है।
दिव्या, जिन्होंने पिछले दो वर्षों से वरुणा ग्राम पंचायत सचिव के रूप में अपनी सेवाएँ दी हैं, कथित रूप से स्थानांतरण की संभावनाओं को लेकर मानसिक दबाव में थीं। सूत्रों के अनुसार, एक अन्य ग्राम पंचायत के ग्रेड-1 सचिव ने दिव्या की पदस्थापना पर अपना स्थान पाने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों के सामने लॉबीइंग की थी।
घटना के दो दिन पहले, 20 नवम्बर को कार्यकारी अधिकारी (ईओ) ने वरुणा पंचायत कार्यालय का अचानक दौरा किया और छह महीने पुरानी शिकायत को पुनः खोलने की कोशिश की। इस शिकायत में दिव्या पर कर्तव्यों का पालन न करने का आरोप लगाया गया। पंचायत सदस्यों ने इस जांच में दिव्या का समर्थन करते हुए कहा कि उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों को पूरी तरह निभाया है और यह पुरानी शिकायत अचानक क्यों पुनः खोली गई, इसका उद्देश्य संदेहजनक है।
आत्महत्या का प्रयास:
यही दिन, कथित रूप से स्थानांतरण के डर और मानसिक दबाव में दिव्या ने अपने कार्यालय में करीब 15 गोलियां खा लीं और बेहोश हो गईं। कार्यालय के कर्मचारियों की त्वरित प्रतिक्रिया के कारण उन्हें मैसूरु के कावेरी अस्पताल ले जाया गया। ऑफिस का एक वीडियो सामने आया जिसमें दिव्या को बेहोश अवस्था में बैठा दिखाया गया है और दो महिला सहकर्मी उन्हें जगाने और उठाने की कोशिश कर रही हैं।
प्रशासनिक लापरवाही पर सवाल:
यह घटना केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं है, बल्कि स्थानीय प्रशासन और सरकारी कार्यप्रणाली की गंभीर विफलता को उजागर करती है। लंबे समय से कार्यरत और सक्षम अधिकारियों को स्थानांतरण की धमकियों और लॉबीइंग के चलते मानसिक दबाव का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे हालात में सवाल उठता है कि क्या सरकार और संबंधित विभाग कर्मचारियों की सुरक्षा, मानसिक स्वास्थ्य और कार्यस्थल पर निष्पक्षता सुनिश्चित करने में सक्षम हैं।
साथ ही, यह मामला इस तथ्य को भी रेखांकित करता है कि वरुणा जैसी महत्वपूर्ण राजनीतिक सीट होने के बावजूद भी स्थानीय प्रशासन पर्याप्त संवेदनशीलता नहीं दिखा रहा। यदि वरिष्ठ अधिकारी और पंचायत विभाग अपने स्तर पर त्वरित और निष्पक्ष कार्रवाई करते, तो संभवतः यह आत्मघाती प्रयास नहीं होता।
पुलिस और प्रशासन की जांच:
वरुणा पुलिस और पंचायत अधिकारी मामले की जांच में जुटे हुए हैं। अभी तक दिव्या ने कोई आधिकारिक शिकायत दर्ज नहीं कराई है। पुलिस ने अस्पताल में उनसे संपर्क करने की योजना बनाई है ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या वे किसी शिकायत को आगे बढ़ाना चाहती हैं।
स्थानीय स्तर पर सरकारी कार्यप्रणाली की समीक्षा आवश्यक:
यह घटना ग्रामीण और नगरपालिका प्रशासन की व्यापक समस्या की ओर इशारा करती है। कई बार, जमीन पर काम कर रहे अधिकारी लॉबीइंग, धमकियों और असंवेदनशील वरिष्ठ अधिकारियों के कारण मानसिक रूप से दबाव में आ जाते हैं। सरकार को चाहिए कि वे ग्राम पंचायत स्तर तक निष्पक्ष और पारदर्शी कार्यप्रणाली सुनिश्चित करें, अधिकारियों की सुरक्षा और मनोवैज्ञानिक स्थिति पर ध्यान दें।
वरुणा मामले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि केवल नीतियाँ बनाना पर्याप्त नहीं है, उनका सही और संवेदनशील ढंग से कार्यान्वयन करना भी अत्यंत आवश्यक है। वरुणा जैसे संवेदनशील निर्वाचन क्षेत्र में भी प्रशासन की संवेदनशीलता की कमी गंभीर सवाल खड़े करती है।
निष्कर्ष:
दिव्या का आत्महत्या का प्रयास केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं है, बल्कि यह स्थानीय प्रशासनिक ढांचे की कमजोरी और सरकारी कार्यप्रणाली की खामियों का आईना है। यदि तत्काल प्रभाव से अधिकारी और कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य, सुरक्षा और कार्यस्थल पर निष्पक्षता सुनिश्चित करने के उपाय नहीं किए गए, तो ऐसी घटनाएँ भविष्य में भी दोहराई जा सकती हैं। यह सरकार और प्रशासन के लिए चेतावनी है कि grassroot स्तर पर कार्यकर्ताओं और अधिकारियों की सुरक्षा और सम्मान के लिए ठोस कदम उठाना अब अनिवार्य हो गया है।