अल-फलाह यूनिवर्सिटी पर शिकंजा: SIT ने टेरर नेटवर्क की जांच तेज़ की

दिल्ली ब्लास्ट के बाद तीन राज्यों में फैले व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल की जांच में नई परतें खुलीं

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  • फरीदाबाद पुलिस ने अल-फलाह यूनिवर्सिटी की गतिविधियों की जांच के लिए SIT गठित की।
  • 200 से अधिक डॉक्टर, मौलवी, कैब ड्राइवर व उर्दू शिक्षक जांच के दायरे में।
  • धमाके के बाद कई डॉक्टरों के अचानक यूनिवर्सिटी छोड़ने और डेटा डिलीट करने की बात सामने आई।
  • पहले भी अल-फलाह से आतंकी लिंक, 2008 अहमदाबाद ब्लास्ट का आरोपी मिर्जा शादाब बेग इसी संस्थान का छात्र।

समग्र समाचार सेवा
फरीदाबाद, 21 नवंबर: दिल्ली में हुए कार ब्लास्ट और तीन राज्यों में फैले कथित व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल की जांच ने नई दिशा पकड़ ली है। इसी सिलसिले में फरीदाबाद पुलिस ने अल-फलाह यूनिवर्सिटी की गतिविधियों की गहन जांच के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया है। यह कदम तब उठाया गया जब यूनिवर्सिटी से जुड़े कई डॉक्टरों को हाल ही में गिरफ्तार किया गया और उनके संभावित आतंकी संबंधों पर सवाल खड़े हुए।

पुलिस सूत्रों के अनुसार SIT में दो सहायक पुलिस आयुक्त (ACP), एक इंस्पेक्टर और दो सब-इंस्पेक्टर शामिल हैं। यह टीम यूनिवर्सिटी की पूरी कार्यप्रणाली, स्टाफ की भूमिका, संदिग्ध गतिविधियों और संभावित टेरर कनेक्शंस की विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर रही है। जांच के दौरान एक कैब ड्राइवर, एक मौलवी और एक उर्दू शिक्षक को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया है, जिनसे टेरर नेटवर्क से जुड़े संभावित कड़ियों की तलाश की जा रही है।

फरीदाबाद के पुलिस आयुक्त सतेंद्र कुमार गुप्ता ने SIT को निर्देश दिया है कि वह यह भी जांच करे कि आखिर क्यों और कैसे यह यूनिवर्सिटी कथित तौर पर आतंकी गतिविधियों का संभावित केंद्र बनती जा रही है। इससे पहले पुलिस महानिदेशक ओ.पी. सिंह ने यूनिवर्सिटी का दौरा कर अधिकारियों को स्वयं स्थिति की निगरानी करने के निर्देश दिए थे।

200 से अधिक डॉक्टर जांच के दायरे में
जांच एजेंसियों के मुताबिक अल-फलाह यूनिवर्सिटी के 200 से ज्यादा डॉक्टर रडार पर हैं। पुलिस को यह भी जानकारी मिली है कि धमाके वाले दिन ही कई डॉक्टर और कुछ स्टाफ सदस्य अचानक यूनिवर्सिटी छोड़कर निकल गए थे। इससे संदेह और गहरा गया है। इतना ही नहीं, जांच में यह भी खुलासा हुआ है कि कई लोगों ने धमाके के तुरंत बाद अपने मोबाइल फोन से डेटा डिलीट कर दिया था। अब उनके फोन और लैपटॉप की फोरेंसिक जांच की जा रही है ताकि पता लगाया जा सके कि आखिर किस तरह की जानकारी हटाई गई थी और क्यों।

एजेंसियां यह भी पता लगाने में जुटी हैं कि दिल्ली धमाके के बाद कितने डॉक्टर, स्टाफ और छात्र अचानक गायब हुए और क्या उनके मोबाइल ट्रेल्स किसी संगठित नेटवर्क की ओर इशारा करते हैं। शुरुआती जांच में इसे व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल के तौर पर देखा जा रहा है, जिसमें उच्च शिक्षित लोग और पेशेवर शामिल हो सकते हैं।

अल-फलाह यूनिवर्सिटी का पुराना टेरर लिंक
दिल्ली में 10 नवंबर को हुए ब्लास्ट का आरोपी आत्मघाती आतंकी डॉ. उमर उन नबी अल-फलाह यूनिवर्सिटी से जुड़ा नया नाम है, लेकिन यह संस्थान पहले भी जांच के घेरे में आ चुका है। वर्ष 2008 के अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट में शामिल आतंकी मिर्जा शादाब बेग भी इसी यूनिवर्सिटी का छात्र था। उसने 2007 में अल-फलाह इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इंस्ट्रूमेंटेशन में बीटेक पूरा किया था। बताया जाता है कि वह पढ़ाई के दौरान ही आतंकी गतिविधियों में शामिल हो चुका था और 2008 ब्लास्ट के बाद से फरार है। वर्तमान में उसके अफगानिस्तान में सक्रिय होने की जानकारी मिलती है।

एजेंसियों की प्राथमिक जांच
जांच एजेंसियाँ यह भी खंगाल रही हैं कि क्या यूनिवर्सिटी का परिसर या इसकी सुविधाएँ किसी संगठित आतंकी तंत्र द्वारा उपयोग में लाई गई थीं। इसके अलावा, स्टाफ और डॉक्टरों की अचानक मूवमेंट, उनके डिजिटल फुटप्रिंट, वित्तीय लेनदेन और विदेशी संपर्कों की भी बारीकी से जांच की जा रही है।

अभी तक मिले इनपुट्स इशारा कर रहे हैं कि दिल्ली ब्लास्ट केवल एक अकेला आतंकी कृत्य नहीं था, बल्कि एक बड़े नेटवर्क का हिस्सा हो सकता है, जिसकी जड़ें शिक्षा संस्थानों, पेशेवर समूहों और विभिन्न राज्यों तक फैली हो सकती हैं।

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