फांसी की सजा पर भारत नहीं सौंपेगा शेख हसीना

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री को मौत की सजा, पर प्रत्यर्पण संधि में छिपी है भारत की बड़ी 'ढाल'

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  • बांग्लादेश के इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल (ICT) ने अपदस्थ पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को पिछले वर्ष हुए छात्र विद्रोह के दौरान ‘मानवता के विरुद्ध अपराधों’ का दोषी पाते हुए मौत की सज़ा सुनाई है।
  • बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने 2013 की प्रत्यर्पण संधि का हवाला देते हुए भारत से हसीना को तुरंत सौंपने का आग्रह किया है, जिसे वह ‘अनिवार्य कर्तव्य’ बता रही है।
  • भारत इस प्रत्यर्पण अनुरोध को ठुकरा सकता है, क्योंकि संधि का अनुच्छेद 6 उसे यह अधिकार देता है कि वह ‘राजनीतिक प्रकृति’ के अपराधों में प्रत्यर्पण से इनकार कर दे।

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 18 नवंबर: बांग्लादेश की राजनीति में एक बड़ा भूचाल आ गया है। पिछले वर्ष छात्र-नेतृत्व वाले हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बाद सत्ता से अपदस्थ हुईं पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को बांग्लादेश के इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल (ICT) ने मौत की सज़ा सुनाई है। उन पर पिछले जुलाई-अगस्त में हुए व्यापक विरोध प्रदर्शनों को दबाने के दौरान ‘मानवता के विरुद्ध अपराधों’ (Crimes Against Humanity) के आरोप सिद्ध हुए हैं।

फैसला सुनाए जाने के वक्त शेख हसीना, जो पिछले अगस्त 2024 में बांग्लादेश छोड़कर भारत आ गई थीं, यहाँ एक अज्ञात स्थान पर निर्वासन में रह रही हैं। यह फैसला तब आया है जब बांग्लादेश में मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार सत्ता में है। यूनुस सरकार ने तुरंत भारत से औपचारिक रूप से हसीना और पूर्व गृह मंत्री असदुज़्ज़मां खान कमाल को बांग्लादेश को सौंपने का आग्रह किया है, ताकि न्यायिक प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सके।

प्रत्यर्पण संधि का पेंच और भारत की स्थिति

बांग्लादेश ने अपनी मांग को जायज ठहराने के लिए भारत और बांग्लादेश के बीच 2013 में हुई प्रत्यर्पण संधि (Extradition Treaty) का हवाला दिया है। बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि हसीना को शरण देना ‘अमित्र व्यवहार’ होगा और संधि के तहत भारत का यह ‘अनिवार्य दायित्व’ है कि वह दोषी व्यक्तियों को सौंपे।

हालांकि, कानूनी जानकारों का मानना है कि भारत इस मांग को मानने के लिए बाध्य नहीं है, और प्रत्यर्पण संधि में ही भारत को छूट का एक बड़ा रास्ता मिला हुआ है:

राजनीतिक अपराध का अपवाद (The Political Offence Exception): 2013 की संधि के अनुच्छेद 6(1) में यह स्पष्ट प्रावधान है कि यदि प्रत्यर्पण का अनुरोध किया गया अपराध ‘राजनीतिक प्रकृति’ का है, तो प्रत्यर्पण को अस्वीकार किया जा सकता है। शेख हसीना और उनके बेटे साजिब वाजेद लगातार यही दलील दे रहे हैं कि उनके खिलाफ लगे आरोप, उन पर चलाया गया मुकदमा और फैसला पूरी तरह से राजनीतिक प्रतिशोध से प्रेरित है और एक ‘अवैध व असंवैधानिक’ सरकार ने दिया है। भारत, इस प्रावधान का उपयोग करके आसानी से अनुरोध को ठुकरा सकता है।

सद्भावना का प्रावधान: संधि का अनुच्छेद 8(3) भी भारत को यह अधिकार देता है कि यदि उसे लगता है कि अनुरोध ‘न्याय के हित में सद्भावना से नहीं’ किया गया है, तो वह प्रत्यर्पण से इनकार कर सकता है।

कूटनीतिक और सुरक्षा हित

कानूनी पहलुओं के अलावा, भारत के लिए इस फैसले के कूटनीतिक और सुरक्षा हित भी महत्वपूर्ण हैं। शेख हसीना भारत के लिए दशकों तक एक भरोसेमंद सहयोगी रही हैं। उनके कार्यकाल में सीमा सुरक्षा, आतंकवाद-रोधी अभियानों और पूर्वोत्तर राज्यों में स्थिरता बनाए रखने में अभूतपूर्व सहयोग मिला था। भारत अचानक एक ऐसे माहौल में उन्हें वापस भेजकर पुराना और मजबूत रिश्ता खत्म नहीं करना चाहेगा जहाँ उनके साथ न्याय होने की कोई गारंटी न हो।

भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने इस पूरे घटनाक्रम पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि, “एक निकट पड़ोसी होने के नाते, भारत बांग्लादेश के लोगों के सर्वोत्तम हितों के लिए प्रतिबद्ध है, जिसमें उस देश में शांति, लोकतंत्र, समावेशिता और स्थिरता शामिल है।” विश्लेषकों का मानना है कि यह संतुलित बयान संकेत देता है कि भारत कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करेगा और अंततः राजनीतिक अपवाद के आधार पर हसीना को सुरक्षा देना जारी रखेगा।

 

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