बीएमसी चुनाव में कांग्रेस का बड़ा फैसला

बीएमसी चुनाव में एमवीए में रहते हुए भी कांग्रेस का अकेले उतरने का फैसला बड़ा राजनीतिक संकेत—मुस्लिम, दलित और दक्षिण भारतीय वोट बैंक पर पार्टी का भरोसा, गठबंधन में ‘जूनियर पार्टनर’ बनने से नाराज़गी भी वजह।

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  • बिहार में गठबंधन के बावजूद कमजोर प्रदर्शन ने कांग्रेस को ‘अकेले लड़ने’ की ओर धकेला
  • मुंबई कांग्रेस का दावा—BMC में हमारा अपना वोट बैंक, संगठन और चेहरा मजबूत
  • राज-उद्धव की संभावित नजदीकियों से कांग्रेस को हाशिए पर जाने का डर
  • मुस्लिम, दलित और दक्षिण भारतीय वोटर कांग्रेस की ‘मुख्य ताकत’, गठबंधन में ये वोट बिखरते हैं

समग्र समाचार सेवा
मुंबई, 18 नवंबर: बिहार विधानसभा चुनावों में निराशाजनक नतीजों के ठीक बाद कांग्रेस ने महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा दांव चल दिया है। मुंबई महानगरपालिका (BMC) चुनाव—जो देश के सबसे समृद्ध और प्रभावशाली निकायों में शामिल है—में पार्टी ने महा विकास अघाड़ी (MVA) का हिस्सा होते हुए भी अकेले उतरने का फैसला किया है। इससे राजनीतिक हलकों में सवाल उठ रहे हैं कि बिहार की हार के बाद आखिर कांग्रेस को इतनी ‘हिम्मत’ कहां से मिली?

बिहार का अनुभव: गठबंधन लाभ के बजाय बोझ बनता दिखा

कांग्रेस के नेतृत्व का मानना है कि बिहार चुनावों ने स्पष्ट कर दिया कि गठबंधन में लड़ने से पार्टी को न सीटें मिलीं, न वोटों में बढ़ोतरी। पार्टी विश्लेषकों के अनुसार, कांग्रेस बिहार में अकेले लड़ती तो 6 सीटें तक निकाल सकती थी, जबकि सभी सीटों पर मुकाबला करती तो उसका वोट शेयर 12–14% तक जा सकता था। लेकिन गठबंधन में सीमित सीटों से न सिर्फ उसका ग्राफ गिरा, बल्कि संगठन की ऊर्जा भी कमजोर पड़ गई।

इसी तजुर्बे के बाद कांग्रेस को लगता है कि महाराष्ट्र में अपनी जमीन बचाने के लिए ‘अपनी ताकत पर लड़ना’ ही सही विकल्प है—खासकर तब, जब राज्य की राजनीति में वह बीजेपी के बाद सबसे बड़ी पार्टी बनी हुई है।

उद्धव–राज की संभावित नजदीकियों से कांग्रेस को खतरा

मुंबई कांग्रेस की अध्यक्ष और सांसद वर्षा गायकवाड़ कई बार कह चुकी हैं कि कांग्रेस एमएनएस जैसे दल के साथ मंच साझा नहीं कर सकती। एमवीए की हालिया रैली में एमएनएस की मौजूदगी ने पार्टी को असहज कर दिया था।
कांग्रेस जानती है कि यदि उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे का ‘मराठी वोट समीकण’ मजबूत होता है, तो उसमें उसके लिए बहुत कम जगह बचेगी।

  • एमएनएस की पहचान ‘मराठी मानूस’ और ‘माइग्रेंट विरोधी’ राजनीति
  • शिवसेना-यूबीटी का मराठी नरेटिव
  • कांग्रेस का बड़ा वोट बैंक—मुस्लिम, दलित और दक्षिण भारतीय—ऐसे गठजोड़ से असहज

कांग्रेस को डर है कि MVA के भीतर रहकर वह सिर्फ 50–60 सीटों पर ही लड़ पाएगी, और जीत का पूरा श्रेय शिवसेना को जाएगा। इससे कांग्रेस का शहर स्तर पर राजनीतिक प्रभाव और भी कमजोर हो सकता है।

मुंबई में कांग्रेस का ग्राउंड नेटवर्क अब भी मजबूत

कांग्रेस को भरोसा है कि मुंबई में उसका संगठन दूसरे दलों की तुलना में कहीं बेहतर सक्रिय है।

  • 2 लाख से ज्यादा सक्रिय कार्यकर्ता
  • 50,000 नए सदस्य हाल के वर्षों में जुड़े
  • 1,150 से अधिक टिकट आवेदन—ग्राउंड ऊर्जा का संकेत
  • 2017 की 31 सीटों वाले सभी प्रमुख चेहरे आज भी सक्रिय

दक्षिण-मुंबई, वर्ली, दादर, बांद्रा, अंधेरी जैसे इलाकों में कांग्रेस का पारंपरिक वोट बेस आज भी मजबूत माना जाता है। यही कारण है कि पार्टी को लगता है कि अकेले लड़ने से उसे 100 से ज्यादा सीटों पर दावा मिल सकता है, जबकि गठबंधन में उसे आधी सीटें भी न मिलें।

मुस्लिम–दलित–दक्षिण भारतीय वोट: कांग्रेस की तीन स्तंभ वाली रणनीति

मुंबई के सामाजिक ढांचे में करीब 20–22% मुस्लिम, 10–12% दलित और 8–10% दक्षिण भारतीय मतदाता हैं। तीनों समूह परंपरागत रूप से कांग्रेस से जुड़े रहे हैं। पार्टी मानती है कि:

  • एमवीए+एमएनएस समीकरण से मुस्लिम वोट खिसक सकता है
  • दलित वोटों में शिवसेना और एमएनएस की अपील सीमित
  • दक्षिण भारतीय वोटर कांग्रेस के शहरी मॉडल और सेक्युलर छवि से जुड़ा है

वर्षा गायकवाड़ का यह बयान कि “एमएनएस के साथ मंच साझा करने से मुस्लिम वोटर हमसे दूर हो जाएंगे” इसी रणनीति की पुष्टि करता है।

कांग्रेस की ‘अकेले लड़ो’ रणनीति का अर्थ क्या है?

  • पहला, गठबंधन में “जूनियर पार्टनर” बनकर चुनाव लड़ने के बजाय अपना स्वतंत्र वजन दिखाना
  • दूसरा, BMC में 2017 की 31 सीटों को 2025 में 50+ करने का लक्ष्य
  • तीसरा, बिहार की गलती दोहराने के बजाय ‘अपने वोट बैंक को समेटने’ की कोशिश

यानी कांग्रेस BMC चुनाव को सिर्फ स्थानीय चुनाव नहीं, बल्कि अपने शहरी पुनरुत्थान के एक बड़े अवसर के रूप में देख रही है।

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