ट्रम्प चाहते हैं फ़िलिस्तीन में ब्रिटिश मेनडेट की पुनरावृत्ति

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पूनम शर्मा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इस समय संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में एक ऐसा प्रस्ताव धकेल रहे हैं, जो लगभग सौ वर्ष पुराने ब्रिटिश मेनडेट सिस्टम को फिर से ज़िंदा कर देगा। फर्क सिर्फ़ इतना होगा कि इस बार नियंत्रण ब्रिटेन के हाथ में नहीं, बल्कि अमेरिका के हाथ में होगा। यह प्रस्ताव न केवल फ़िलिस्तीन की राज्य-व्यवस्था को कमजोर करता है, बल्कि उसे अमेरिका-इज़रायल की सामरिक अधीनता में एक लंबे समय के लिए धकेल देता है।

अमेरिकी प्रस्ताव का असली उद्देश्य

ट्रम्प प्रशासन जिस इज़रायल-निर्मित प्रस्ताव को आगे बढ़ा रहा है, वह तीन खतरनाक कदम उठाता है:

गाज़ा पट्टी पर अमेरिकी राजनीतिक नियंत्रण स्थापित करना

गाज़ा को बाकी फ़िलिस्तीन से स्थायी रूप से अलग करना

इज़रायल की वापसी को “समय-सीमा” के बहाने अनिश्चित भविष्य तक टाल देना

यह एक ऐसा “शांति-प्रक्रिया” मॉडल है जिसमें साम्राज्यवाद को शांति की आड़ में पेश किया जा रहा है। हैरानी इस बात की है कि अमेरिका और इज़रायल इस त्रासदीपूर्ण प्रस्ताव को अंतरराष्ट्रीय मंच पर धकेलने में सफल भी हो सकते हैं — जब तक कि दुनिया एकजुट होकर इसका कड़ा प्रतिरोध न करे।

‘बोर्ड ऑफ पीस’: आधुनिक मेनडेट का नया नाम

ड्राफ्ट प्रस्ताव एक अमेरिका-ब्रिटेन नियंत्रित बोर्ड ऑफ पीस बनाने की बात करता है, जिसका अध्यक्ष स्वयं राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प होंगे। इस बोर्ड को गाज़ा की शासन-व्यवस्था, सीमा नियंत्रण, पुनर्निर्माण, सुरक्षा और यहां तक कि फ़िलिस्तीनी संस्थाओं पर अंतिम निर्णय लेने की पूर्ण शक्ति दी जाएगी।

यह बिल्कुल वैसा ही प्रशासनिक ढांचा है जैसा ब्रिटिश मेनडेट के दौरान था—जहाँ फ़िलिस्तीनियों को अपनी भूमि पर पूर्ण अधिकार से वंचित रखा गया था। एक शताब्दी बाद, वही ढांचा अमेरिकी नेतृत्व के साथ वापस लाने की तैयारी है।

कार्ल मार्क्स की उक्ति कि “इतिहास स्वयं को दोहराता है—पहले त्रासदी के रूप में, फिर प्रहसन के रूप में”—यहीं चरितार्थ होती है। फर्क बस इतना है कि यह प्रहसन फ़िलिस्तीनियों के लिए भयावह त्रासदी बन चुका है, क्योंकि इज़रायल की हिंसा और जनसंहार आज भी जारी है।

फ़िलिस्तीनी संप्रभुता को ‘बोर्ड’ की कृपा पर छोड़ना

प्रस्ताव में लिखा है कि फ़िलिस्तीनियों को तब तक शासन का अधिकार नहीं दिया जाएगा, जब तक “बोर्ड” यह न तय करे कि वे स्वयं को शासन करने के लिए “तैयार” हैं। यह तैयारियाँ सौ वर्ष और खिंच सकती हैं — जैसा ब्रिटिश शासन के दौरान हुआ था।

यहां तक कि सुरक्षा बल भी इस बोर्ड के निर्देशों पर काम करेंगे, न कि फ़िलिस्तीनी सरकार या अंतरराष्ट्रीय समुदाय के प्रति जवाबदेह होंगे। इससे स्पष्ट है कि यह प्रस्ताव फ़िलिस्तीनी राज्य-व्यवस्था को समाप्त कर अमेरिकी-इज़रायली नियंत्रण को स्थायी बनाने का प्रयास है।

विश्व में बदलते माहौल से अमेरिका-इज़रायल की बेचैनी

यह प्रस्ताव इसलिए लाई जा रही है क्योंकि दुनिया के अधिकांश देश अब दो स्पष्ट सच्चाइयाँ समझ चुके हैं:

इज़रायल गाज़ा और वेस्ट बैंक में प्रत्यक्ष जनसंहार कर रहा है।

फ़िलिस्तीन एक वास्तविक राज्य है, जिसे संयुक्त राष्ट्र महासभा ने जुलाई और सितंबर में भारी बहुमत से मान्यता दी है।

इसी बदलते माहौल से घबराकर अमेरिका और इज़रायल फ़िलिस्तीन की राज्य-मान्यता को रोकने और उसे एक “अधीन इकाई” के रूप में बनाए रखने के लिए हर संभव औजार का इस्तेमाल कर रहे हैं। अमेरिका का वीटो फ़िलिस्तीन की स्थायी सदस्यता का सबसे बड़ा अवरोध बना हुआ है।

अमेरिका की वर्गीकृत रणनीति: दबाव, धमकी और युद्ध

इज़रायल के “ग्रेटर इज़रायल” के भू-राजनीतिक लक्ष्य को पूरा करने के लिए अमेरिका वही पुरानी ‘डिवाइड एंड रूल’ रणनीति अपनाए हुए है:

अरब और मुस्लिम देशों पर बराबर धमकियों और लालच का दबाव

तकनीकी और वित्तीय प्रतिबंध

वर्ल्ड बैंक और IMF जैसी संस्थाओं से दूर कर देना

इज़रायल द्वारा सीधे सैन्य हमले—भले ही उन देशों में अमेरिकी सैन्य ठिकाने मौजूद हों

यह एक तरह का ‘प्रोटेक्शन रैकेट’ है—जहाँ सुरक्षा की जगह डर, अस्थिरता और राजनीतिक सौदेबाज़ी का खेल चलता है।

इज़रायल और अमेरिका वर्तमान में अफ्रीका (लिबिया, सूडान, सोमालिया), पूर्वी भूमध्यसागर (लेबनान, सीरिया), खाड़ी (यमन) और पश्चिमी एशिया (इराक, ईरान) तक फैले संघर्षों में या तो सीधे या परोक्ष रूप से शामिल हैं।

UNSC का कर्तव्य: अमेरिकी दबाव से ऊपर उठना

अगर UNSC को अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र चार्टर की वास्तविक भावना में काम करना है, तो उसे अमेरिका-इज़रायल के दबाव में नहीं आना चाहिए। असली शांति के लिए चार मुख्य कदम ज़रूरी हैं:

फ़िलिस्तीन को पूर्ण सदस्य-राज्य के रूप में स्वीकार करना—अमेरिकी वीटो हटाया जाए।

1967 की सीमाओं के आधार पर फ़िलिस्तीन और इज़रायल की क्षेत्रीय अखंडता सुरक्षित की जाए।

मुस्लिम-बहुल देशों की संयुक्त UNSC-अधिकृत सुरक्षा बल तैनात की जाए।

सभी सशस्त्र गैर-राज्य समूहों को निष्क्रिय और निरस्त्र कर दोनों पक्षों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।

दो-राष्ट्र समाधान: स्थायी शांति की अनिवार्य राह

दो-राष्ट्र समाधान न तो फ़िलिस्तीनी “राज्य हत्या” का औजार है और न ही इज़रायल पर लगातार हमलों का बहाना। यह समाधान तभी सफल होगा जब:

फ़िलिस्तीनियों को न्याय और संप्रभुता मिले

इज़रायल को सुरक्षा की गारंटी मिले

अमेरिका और इज़रायल फ़िलिस्तीनी जनता पर अनंतकालीन प्रभुत्व की भूल छोड़ें

अब वह समय आ चुका है जब दोनों—फ़िलिस्तीनी और इज़रायली—सुरक्षित, स्थिर और स्वाभिमानपूर्ण जीवन जी सकें। और यह तभी होगा जब मंडेट-शैली के इस नए साम्राज्यवादी प्रस्ताव को दुनिया एक सुर में खारिज कर दे।

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