RJD संकट में: तेजस्वी के सामने करारी हार की चुनौती
सीटों का आँकड़ा सिमटा 25 पर; परिवारवाद, महिलाओं से दूरी और 'जंगल राज' का नैरेटिव बना हार की मुख्य वजह
- बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की सीटों का आँकड़ा 25 (प्रारंभिक रुझानों के आधार पर) पर सिमटने से पार्टी नेता तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
- पारिवारिक कलह, महिलाओं से दूरी और विपक्षी ‘जंगल राज’ के नैरेटिव का जवाब न दे पाना RJD की करारी हार के प्रमुख कारण बने हैं।
- पार्टी के सामने अब नेतृत्व संकट और गठबंधन की विफलता की समीक्षा करने की बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है।
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 15 नवंबर: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के निराशाजनक परिणामों ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के भीतर एक बड़ा राजनीतिक भूचाल ला दिया है। जहाँ NDA ने प्रचंड बहुमत के साथ 200 से अधिक सीटें हासिल कीं, वहीं तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाला महागठबंधन महज़ 33 सीटों पर ही सिमट गया, जिसमें RJD का प्रदर्शन (लगभग 25 सीटों तक सिमटना) सबसे अधिक निराशाजनक रहा। तेजस्वी यादव, जिन्होंने 2020 में RJD को 75 सीटें दिलाकर सबसे बड़ी पार्टी बनाया था, इस बार अपनी ही सीट राघोपुर में कड़ी टक्कर के बाद मुश्किल से जीत दर्ज कर पाए।
RJD की यह करारी हार न केवल पार्टी के मनोबल को तोड़ने वाली है, बल्कि यह लालू परिवार के भीतर के संघर्ष और तेजस्वी की नेतृत्व क्षमता पर भी गंभीर सवाल खड़े करती है।
हार के मुख्य कारण: खोखले वादे और आंतरिक कलह
RJD की हार के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण रहे, जिनकी ओर राजनीतिक विश्लेषक इशारा कर रहे हैं:
खोखले साबित हुए वादे: 2020 में तेजस्वी का 10 लाख सरकारी नौकरियों का वादा गेम चेंजर था। लेकिन 2025 में ‘हर परिवार को एक सरकारी नौकरी’ का उनका नया वादा युवाओं के बीच प्रभावहीन साबित हुआ। कई मौकों पर नौकरी और पेपर लीक जैसे मुद्दों पर सड़क पर उतरे युवाओं के बीच तेजस्वी की अनुपस्थिति की छवि उनके खिलाफ गई।
पारिवारिक दरार का असर: चुनाव प्रचार की शुरुआत से ही लालू परिवार में बिखराव दिखा। लालू यादव द्वारा बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को दरकिनार करने और तेज प्रताप द्वारा अलग पार्टी (मान लीजिए, जनशक्ति परिषद्) बनाकर चुनाव लड़ना RJD को शुरुआती दौर में ही नुकसान पहुँचा गया।
महिला मतदाता की उपेक्षा: RJD महिला मतदाताओं को आकर्षित करने में पूरी तरह असफल रही। NDA ने महिलाओं को चुनाव पूर्व ₹10,000 नकद सहायता देने की घोषणा जैसे वादों का प्रभावी प्रचार किया, जिसके मुकाबले तेजस्वी की ₹30,000 की घोषणा देर से और अप्रभावी रही।
कमजोर गठबंधन और नकारात्मक छवि
तेजस्वी ने चुनाव की घोषणा (6 अक्टूबर) के बाद 22 अक्टूबर तक प्रचार से दूर रहकर एक ‘गायब रहने’ वाले नेता की छवि बनाई, जिसका नुकसान पार्टी को हुआ। इसके अलावा:
गठबंधन की विफलता: सीट बंटवारे को लेकर आखिरी दिन तक स्पष्टता नहीं आई, और 10 सीटों पर INDIA गठबंधन के दल ही एक-दूसरे के खिलाफ लड़ते दिखे। कांग्रेस 61 में से केवल 6 सीटें जीत सकी। VIP (मुकेश सहनी) को डिप्टी सीएम चेहरा घोषित करने के बावजूद निषाद समुदाय उनसे दूर रहा और VIP एक भी सीट नहीं जीत सकी।
‘जंगल राज’ नैरेटिव: NDA ने RJD के अतीत के ‘जंगल राज’ के नैरेटिव को सफलतापूर्वक पुनर्जीवित किया। तेजस्वी यादव इस नकारात्मक छवि को प्रभावी ढंग से काट नहीं पाए, और जनता ने अंततः ‘सुशासन और विकास’ के एजेंडे को अधिक महत्व दिया।
इस करारी हार के बाद, RJD को अब एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है: क्या तेजस्वी यादव पार्टी को एकजुट रख पाएंगे, और क्या पार्टी वंशवाद के आरोपों और आंतरिक कलह से उबरकर भविष्य की राजनीति में अपनी प्रासंगिकता बरकरार रख पाएगी?