बिहार चुनाव 2025 : महिलाओं का शांत जनादेश बदलता राजनीतिक संतुलन

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डॉ. कुमार राकेश
बिहार का यह चुनाव वास्तव में किसी बड़े राजनीतिक “सरप्राइज़” की तरह नहीं आया। जो लोग ज़मीन का मिज़ाज पढ़ रहे थे, उन्हें पहले ही अंदाज़ा था कि हवा किस दिशा में बह रही है। मैंने कई टीवी डिबेट्स में कहा था कि एनडीए सरकार में लौटेगी—और इसकी सबसे बड़ी वजह थीं महिला मतदाता। उनका शांत लेकिन दृढ़ वोट इस बार भी बिहार की राजनीति की दिशा तय कर गया। आज जब रुझान एनडीए को 200 से अधिक सीटों पर आगे दिखा रहे हैं, वह आंतरिक राजनीतिक समझ पूरी तरह सही साबित हो रही है।

अमित शाह की भविष्यवाणी और ‘राजनीतिक-सटीकता’ की वापसी

बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने चुनावों से पहले ही भरोसे के साथ कहा था कि एनडीए 160 से अधिक सीटें जीतेगा। अब यह आंकड़ा आराम से पार हो चुका है। शाह का यह आत्मविश्वास कहीं न कहीं उनके शुरुआती यूपी अभियानों की याद दिलाता है, जब उनके नेतृत्व में बीजेपी ने चुनावी इतिहास के कई रिकॉर्ड तोड़ दिए थे।
बिहार का यह चुनाव भी उसी रणनीतिक सटीकता की प्रतिध्वनि जैसा दिखाई देता है। एनडीए भले आगे—लेकिन असली कहानी आंकड़ों के नीचे छिपी है

बाहरी तौर पर यह परिणाम एक साधारण “लैंडस्लाइड” लग सकता है, लेकिन बिहार का असली संदेश इससे कहीं गहरा है। यह चुनाव भरोसे का चुनाव था—एक ऐसी व्यवस्था का चुनाव जो रोज़मर्रा के जीवन को सरल, स्थिर और सुरक्षित बनाती है। किसी भी जिले में जाइए, एक बात साफ सुनाई देती थी—मतदाता बदलाव नहीं, निरंतरता चाहते थे। और इस भावना को सबसे मजबूती से व्यक्त किया था महिलाओं ने। रैलियों में कम दिखने वाली, लेकिन मतदान केंद्रों पर निर्णायक उपस्थिति दर्ज कराने वाली महिलाएँ इस बार भी चुनावी नाड़ी की धड़कन बनीं।

बीजेपी का उभार: शक्ति-संतुलन बदलने का संकेत

इस चुनाव की सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना है—बीजेपी का बिहार में पहली बार सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरना। लगभग 96 सीटों पर बढ़त ने पार्टी की दशकों की यात्रा को एक नई दिशा दे दी है।

कभी जेडीयू के साथ “जूनियर पार्टनर” की भूमिका निभाने वाली बीजेपी आज गठबंधन की मुख्य संचालक शक्ति बनकर सामने आई है।
यह परिवर्तन धीमा था, स्थिर था—और पूरी तरह सुनियोजित था। अब बिहार में नई राजनीतिक वास्तुकला विकसित हो रही है, जिसमें बीजेपी सिर्फ सहयोगी नहीं, बल्कि नेतृत्वकारी भूमिका में है।

नीतीश कुमार का अच्छा प्रदर्शन—लेकिन बदल गया परिदृश्य

जेडीयू 2020 के 43 सीटों के निम्नतम आंकड़े से इस बार 84 सीटों तक पहुँचकर मजबूत वापसी करती दिख रही है। यह साफ है कि नीतीश कुमार की शासन-शैली, विशेषकर महिलाओं और बुजुर्ग मतदाताओं के बीच, अभी भी भरोसा पैदा करती है।

लेकिन इस मजबूत प्रदर्शन के बावजूद जेडीयू अब गठबंधन की वरिष्ठ पार्टी नहीं रही। ज़मीन बदल चुकी है। नीतीश कुमार प्रासंगिक जरूर बने हुए हैं, लेकिन राजनीतिक संतुलन पहले जैसा नहीं रहा।

महिला मतदाता: इस जनादेश की धड़कन

बिहार के इस चुनाव को अगर समझना है तो सबसे पहले महिलाओं की मतदान प्रवृत्ति को समझना होगा। उनकी बढ़ती भागीदारी ने जाति समीकरणों, युवा तरंगों और आर्थिक बहसों से कहीं अधिक गहरा प्रभाव डाला है। सरकारी योजनाओं, सुरक्षा, स्वास्थ्य और घर-परिवार से जुड़े लाभों ने उनके भीतर एक व्यावहारिक भरोसा पैदा किया है। उनका वोट न तो किसी विचारधारा के कारण था और न किसी राजनीतिक वादे के कारण—यह तो उनके वास्तविक अनुभवों पर आधारित था।

यही वजह है कि इस बार महिलाओं का वोट सबसे निर्णायक शक्ति बनकर उभरा।

विपक्ष की हार नहीं—विपक्ष की खोई हुई दिशा

महागठबंधन सिर्फ सीटें नहीं हारा—वह अपनी कहानी, अपना संदेश और अपनी दिशा भी खो बैठा। जब मतदाता स्थिरता की तलाश में थे, तब विपक्ष अनिश्चितता पेश कर रहा था। बिहार के लोग खोखले नारे नहीं चाहते; वे स्पष्ट, स्थायी और जमीन से जुड़े समाधान चाहते हैं।

परिचित जनादेश, लेकिन बदलाव की unmistakable आहट , एनडीए की वापसी पुराने चुनावी अध्याय जैसा लग सकती है, लेकिन इसके भीतर नई राजनीतिक दिशाएँ आकार ले रही हैं ।

बीजेपी का उभार

जेडीयू की बदली हुई स्थिति ,महिलाओं की निर्णायक भूमिका और चुनावी रणनीति में नया आत्मविश्वास .

अमित शाह की शुरुआती भविष्यवाणी भी उसी राजनीतिक समझ का प्रमाण है जिसने पहले यूपी को बदला था और अब बिहार के चुनावी आधार को बदल रही है। यह जनादेश सिर्फ सरकार बनाने का परिणाम नहीं है।

यह बिहार का संदेश है—

स्थिरता भी चाहिए, लेकिन नए शक्ति-संतुलन का स्वागत भी है। और यह संतुलन इस चुनाव में आकार ले चुका है।

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