कांग्रेस-महागठबंधन की मुस्लिम राजनीति नाकाम
बिहार चुनाव 2025: विकास एजेंडा जीता, नीतीश का काम और NDA का घोषणापत्र भारी
समग्र समाचार सेवा
पटना ,बिहार 14 नवंबर –बिहार चुनाव 2025: विकास सबसे बड़ा मुद्दा—नीतीश के काम, NDA के घोषणापत्र और कांग्रेस-महागठबंधन की असफल मुस्लिम राजनीति ने तय किया जनादेश बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के रुझानों ने एक बात स्पष्ट कर दी है—इस बार जनता ने जातीय जोड़-तोड़, तुष्टिकरण और भावनात्मक नारों को ठुकराकर विकास, स्थिरता और प्रशासनिक विश्वसनीयता को प्राथमिकता दी है। NDA का बढ़त बनाना इस बात का संकेत है कि बिहार की जनता अब परफॉर्मेंस देख रही है, न कि वादों का शोर।
सबसे बड़ी भूमिका रही नीतीश कुमार की विकास-आधारित छवि, भाजपा का आक्रामक संगठनात्मक अभियान और 2025 का घोषणापत्र, जिसमें रोजगार, आधारभूत ढांचा, महिला सशक्तिकरण और उद्योग नीति सबसे केंद्र में थे।
लेकिन इस चुनाव की कहानी का एक दूसरा बड़ा पहलू भी है—कांग्रेस और महागठबंधन द्वारा खेली गई मुसलमान-केन्द्रित राजनीति का विफल होना।
नीतीश कुमार: बिहार के विकास मॉडल का भरोसा
नीतीश कुमार प्रशासनिक रूप से बिहार का सबसे स्थिर चेहरा रहे हैं।
कानून-व्यवस्था, सड़क, स्कूल, छात्रवृत्ति, महिला आरक्षण—इन क्षेत्रों में उनका काम सीधे-सीधे वोट में बदलता दिखा है।
भले बीच-बीच में उनके राजनीतिक गठबंधन बदले हों, लेकिन जनता के मन में उनका एक स्थिर भाव बना रहा—
“काम करने वाला नेता।”
यही विश्वास इस चुनाव में NDA की ओर जनादेश खींचने में निर्णायक साबित हुआ।
NDA का घोषणापत्र—वादों से ज्यादा नीतियों पर आधारित
2025 का घोषणापत्र पूरी तरह विकास के रोडमैप जैसा था।
मुख्य बिंदु:
20 लाख युवाओं को कौशल प्रशिक्षण
10 लाख स्थानीय रोजगार
नई इंडस्ट्रियल पॉलिसी
महिला सुरक्षा बल की भर्ती
मेडिकल व इंजीनियरिंग कॉलेजों का विस्तार
गाँव व शहरों में सड़क व बिजली की नई योजनाएँ
इस घोषणापत्र में चुनावी लालच कम और प्रशासनिक संरचना ज्यादा थी। मतदाता इसे “सच में लागू होने वाला एजेंडा” मानकर चल रहे थे—यही NDA की जीत की आधारशिला बनी।
कांग्रेस की सबसे बड़ी हार—‘तुष्टिकरण आधारित राजनीति’ अस्वीकार
कांग्रेस और महागठबंधन की रणनीति इस चुनाव में स्पष्ट दिख रही थी—
मुसलमान वोट को एकजुट कर सत्ता तक पहुँचना।
लेकिन बिहार की जनता ने इस बार साफ संदेश दिया है कि—
तुष्टिकरण की राजनीति अब काम नहीं करती।
कांग्रेस को क्यों नकारा गया?
विकास पर कोई ठोस दृष्टिकोण नहीं कांग्रेस अपनी पुरानी “विरोध की राजनीति” से बाहर नहीं आ सकी।
नीतीश और बीजेपी जहाँ योजनाओं के लाभार्थी मॉडल पर वोट माँग रहे थे, वहीं कांग्रेस सिर्फ भावनात्मक भाषणों तक सीमित रही।
मुस्लिम-केन्द्रित बयानबाजी उलटी पड़ी कांग्रेस के कई नेताओं के बयान सीधे ‘मुस्लिम तुष्टिकरण वाले दिखे। बिहार के बहुसंख्यक मतदाताओं ने इसे विभाजनकारी राजनीति के रूप में देखा।
जमीनी संगठन कमजोर
कांग्रेस केवल सभाओं में मौजूद रही—बूथों पर नहीं। महागठबंधन की एकजुटता टूट चुकी थी सीट बंटवारे और नेतृत्व को लेकर अंदरूनी खींचतान पहले ही जनता के सामने आ चुकी थी। इसलिए कांग्रेस को नकारा जाना केवल चुनावी हार नहीं, बल्कि जनता का स्पष्ट संदेश है—
“विकास की राजनीति—हाँ, तुष्टिकरण—ना।”
(मुस्लिम-आधारित) राजनीति क्यों फेल हुई?
मुस्लिम वोट बैंक अब पहले जैसा एकतरफा नहीं रहा। कई क्षेत्रों में युवाओं, महिलाओं और लाभार्थियों ने अपने मुद्दों के आधार पर वोट किया।
मुस्लिम-केन्द्रित रैलियाँ और बयानबाजी बिहार के नवीन सामाजिक-सियासी माहौल में अप्रासंगिक लगने लगीं।
जहाँ NDA ने सभी वर्गों को जोड़ने की कोशिश की, वहीं कांग्रेस और RJD का कुछ इलाकों में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पर आधारित अभियान जनता को प्रभावित नहीं कर पाया।
2025 का यह चुनाव साबित करता है कि बिहार अब विकास, रोजगार और शिक्षा जैसे मुद्दों पर वोट कर रहा है—न कि धार्मिक कट्टरता या तुष्टिकरण पर।
विकास बनाम भावनात्मक राजनीति—NDA क्यों जीतेगा?
1. विकास की योजनाएँ सीधे लोगों तक पहुँचीं
उज्ज्वला, स्कॉलरशिप, साइकिल योजना, पंचायत आरक्षण—लोगों ने प्रभाव महसूस किया।
2. नीतीश की विश्वसनीयता प्रशासनिक अनुभव और साफ-सुथरी छवि उन्हें बाकी नेताओं से अलग करती है।
3. भाजपा की बूथ रणनीति
पहली बार वोट करने वालों, महिलाओं और लाभार्थियों को मजबूत तरीके से साधा गया।
4. कांग्रेस का दिशा संकट कांग्रेस अपने मतदाता को ही समझ नहीं पाई—विकास चाहने वाली जनता को तुष्टिकरण में बदलने की गलती महँगी पड़ी।
5. बिहार का बदलता सामाजिक वातावरण
अब मतदाता काम देखकर वोट करता है—भाषा, जाति और धर्म की राजनीति सीमित हो चुकी है।
निष्कर्ष:
NDA की जीत का कारण विकास, कांग्रेस की हार का कारण तुष्टिकरण
2025 का यह चुनाव एक निर्णायक राजनीतिक संदेश देता है—
“बिहार विकास चाहता है, न कि विभाजन या तुष्टिकरण।”
नीतीश कुमार के काम, BJP के संगठन और NDA के विकास-आधारित घोषणापत्र ने मिलकर जनादेश को अपनी तरफ झुका दिया।
कांग्रेस की मुस्लिम-केन्द्रित रणनीति पूरी तरह विफल हुई और जनता ने उसे स्पष्ट रूप से नकार दिया