मौखिक सूचना या दावा अब अस्वीकार्य — लिखित प्रमाण ही गिरफ़्तारी की वैधता तय करेगा।
कोर्ट ने बंद किया "कंप्लायंस गैप", अब मौखिक सूचना नहीं, लिखित कारण देना ज़रूरी
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सुप्रीम कोर्ट का 6 नवंबर 2025 का फैसला, अब हर गिरफ़्तारी में लिखित कारण देना अनिवार्य।
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आरोपी और उसके रिश्तेदार या मित्र, दोनों को दी जानी चाहिए लिखित जानकारी।
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पुलिस स्टेशन के रिकॉर्ड और मजिस्ट्रेट की जांच अब होगी कानूनी बाध्यता।
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मौखिक सूचना या दावा अब अस्वीकार्य, लिखित प्रमाण ही गिरफ़्तारी की वैधता तय करेगा।
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली | 9 नवंबर: भारत में जब किसी व्यक्ति को पुलिस गिरफ़्तार करती है, तो अक्सर उसके परिवार को केवल इतना पता चलता है कि व्यक्ति को ले जाया गया है, लेकिन क्यों, यह नहीं बताया जाता। ऐसे में न परिजन वकील की मदद ले पाते हैं, न ज़मानत की तैयारी कर पाते हैं, और न ही यह जान पाते हैं कि गिरफ़्तारी वैध है या नहीं। यह अस्पष्टता केवल निर्दयता नहीं, बल्कि संविधान द्वारा दिए गए व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार (Article 22) का उल्लंघन है।
संविधान का अनुच्छेद 22 क्या कहता है
अनुच्छेद 22(1) के तहत, किसी भी व्यक्ति को गिरफ़्तार करने से पहले उसे गिरफ़्तारी के कारणों की जानकारी दी जानी चाहिए। लेकिन दशकों से यह प्रावधान एक औपचारिक रस्म बनकर रह गया था। पुलिस अक्सर आरोपी को अंग्रेज़ी में तैयार एक तयशुदा बयान पढ़कर सुनाती थी, जिसे आरोपी समझ भी नहीं पाता था, और फिर दावा करती थी कि “सूचना दे दी गई।”
6 नवंबर 2025 का ऐतिहासिक फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 6 नवंबर 2025 को (मिहिर राजेश शाह बनाम महाराष्ट्र राज्य, आपराधिक अपील संख्या 2195/2025) में यह स्थिति पूरी तरह बदल दी।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति मसीह की पीठ ने कहा,
> “अब केवल मौखिक रूप से बताना पर्याप्त नहीं होगा, गिरफ़्तारी के कारण लिखित रूप में दिए जाने अनिवार्य हैं।”
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
1. 1960 – हरिकिशन बनाम महाराष्ट्र राज्य
कोर्ट ने कहा था कि अगर किसी हिंदी भाषी आरोपी को अंग्रेज़ी में नोट दे दिया जाए, तो यह ‘जानकारी देना’ नहीं कहलाएगा। सूचना का अर्थ है — आरोपी समझे कि उसे क्यों गिरफ़्तार किया गया है।
2. 1980 – लल्लुभाई जोगीभाई पटेल बनाम भारत संघ
कोर्ट ने दोहराया कि गिरफ़्तारी के कारण बताना केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि आरोपी का मौलिक अधिकार है।
3. 2023 – पंकज बंसल बनाम भारत संघ
कोर्ट ने कहा कि पुलिस-आरोपी विवाद खत्म करने के लिए एक सरल तरीका है, कारण लिखित में दें और उसकी पावती लें।
4. 2024 – प्रभीर पुरकायस्थ बनाम राज्य (दिल्ली एनसीटी)
कोर्ट ने बिना लिखित कारण के की गई गिरफ़्तारी को अवैध घोषित कर दिया।
5. 2025 – विहान कुमार बनाम हरियाणा राज्य
जस्टिस अभय ओका और जस्टिस कोटिश्वर सिंह ने कहा कि न सिर्फ आरोपी को बल्कि उसके रिश्तेदार या मित्र को भी लिखित कारण दिए जाएं।
परिवार को लिखित सूचना क्यों ज़रूरी है?
अक्सर गिरफ़्तार व्यक्ति मानसिक दबाव में होता है और वह मौखिक सूचना भूल सकता है।
ऐसे में यदि कारण लिखित रूप में उसके परिवार या मित्र को दिए जाएं, तो वे तुरंत वकील से संपर्क कर सकते हैं, ज़मानत आवेदन तैयार कर सकते हैं और गिरफ़्तारी की वैधता को चुनौती दे सकते हैं।
इससे धारा 50A CrPC (अब BNSS की धारा 48) का वास्तविक उद्देश्य पूरा होता है,
कि परिवार को केवल “सूचित” नहीं किया जाए, बल्कि वे सक्रिय रूप से मदद कर सकें।
पुलिस स्टेशन में लिखित एंट्री और मजिस्ट्रेट की ज़िम्मेदारी
सुप्रीम कोर्ट ने अब यह भी स्पष्ट किया है कि,
- पुलिस को स्टेशन रजिस्टर में लिखित रूप से दर्ज करना होगा कि किस रिश्तेदार को, कब और कैसे सूचना दी गई।
- मजिस्ट्रेट को रिमांड के समय यह सुनिश्चित करना होगा कि यह एंट्री मौजूद है।
- यदि यह रिकॉर्ड नहीं है, तो रिमांड नहीं दी जा सकती।
यह प्रावधान अब मौखिक दावा नहीं, बल्कि दस्तावेज़ी सबूत बन गया है।
मजिस्ट्रेट — स्वतंत्रता के संरक्षक
कोर्ट ने कहा कि यदि लिखित कारण और पावती नहीं दी गई, तो
> “गिरफ़्तारी असंवैधानिक होगी और उसकी संपूर्ण प्रक्रिया, चाहे पुलिस रिमांड हो या न्यायिक, अवैध मानी जाएगी।”
यह भी साफ़ किया गया कि बाद में चार्जशीट दाखिल हो जाने या मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान लेने से गिरफ़्तारी की यह मौलिक त्रुटि ठीक नहीं होती।
वैश्विक मानक के अनुरूप
भारत का यह कदम अब यूके और यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय के मानकों के समान है, जहाँ गिरफ़्तारी के कारण “स्पष्ट और लिखित रूप में” देना अनिवार्य है।
कोर्ट ने कहा कि गिरफ़्तारी सिर्फ़ कानूनी कार्यवाही नहीं, बल्कि व्यक्ति और परिवार के जीवन में एक बड़ा झटका होती है। इसमें मान-सम्मान की हानि, मानसिक आघात और सामाजिक कलंक शामिल है।
इसलिए, लिखित कारण देना केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि मनुष्य की गरिमा की रक्षा है
निष्कर्ष
मिहिर राजेश शाह केस के बाद अब अनुच्छेद 22(1) केवल कागज़ पर लिखा अधिकार नहीं, बल्कि वास्तविक सुरक्षा कवच बन गया है।
अब पुलिस के लिए मौखिक सूचना देना पर्याप्त नहीं,
लिखित कारण देना संवैधानिक न्यूनतम आवश्यकता है। इससे कम कुछ भी अवैध माना जाएगा।
फैसला
मामला: मिहिर राजेश शाह बनाम महाराष्ट्र राज्य
तारीख: 6 नवंबर 2025
निर्णायक पीठ: मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति मसीह