SC का कठोर आदेश सुन रोईं वकील: ‘ईश्वरीय न्याय’
आवारा कुत्तों को सार्वजनिक स्थानों से हटाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश से डॉग लवर्स निराश; वकील ननिता शर्मा की आँखों में आए आंसू।
- आवारा कुत्तों द्वारा काटे जाने के बढ़ते मामलों पर सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक स्थानों से कुत्तों को हटाकर री-लोकेट करने का सख्त आदेश दिया।
- सुप्रीम कोर्ट की वकील और याचिकाकर्ता ननिता शर्मा आदेश सुनने के बाद रो पड़ीं, उन्होंने इसे “बहुत पीड़ादायक” बताते हुए ईश्वरीय न्याय (Divine Justice) में विश्वास जताया।
- पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने भी आदेश की आलोचना करते हुए कहा कि कुत्तों को हटाने के लिए पर्याप्त आश्रय गृहों (Shelter Houses) की कमी के कारण यह निर्णय अव्यावहारिक है।
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 09 नवंबर: राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (दिल्ली-एनसीआर) में आवारा कुत्तों द्वारा काटे जाने की घटनाओं में खतरनाक वृद्धि के मद्देनजर, सुप्रीम कोर्ट ने एक कड़ा आदेश जारी किया है। यह आदेश उन डॉग लवर्स और पशु अधिकार कार्यकर्ताओं के लिए एक झटका है, जो कुत्तों को उनके प्राकृतिक आवास से हटाने का विरोध करते रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट के इस नए आदेश में 11 अगस्त को दिए गए पुराने आदेश की तर्ज पर ही कई निर्देश शामिल हैं। मुख्य रूप से, कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि सरकारी दफ्तरों, शैक्षणिक संस्थानों (स्कूल/कॉलेज), रेलवे स्टेशनों और बस स्टॉपों जैसे सार्वजनिक स्थानों से आवारा कुत्तों को हटाकर उन्हें दूसरी सुरक्षित जगह पर री-लोकेट किया जाएगा।
आदेश के सफल कार्यान्वयन के लिए, एक नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाएगा। इस अधिकारी की मुख्य जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करना होगी कि हटाए गए कुत्ते वापस इन संवेदनशील क्षेत्रों में न लौटें। कोर्ट ने डॉग बाइट की बढ़ती शिकायतों को इस कठोर कदम का आधार बताया है।
आँसुओं से छलकी पीड़ा: ‘बेज़ुबान जानवरों के साथ नाइंसाफी’
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को सुनने के बाद, याचिकाकर्ता और वकील ननिता शर्मा की आँखें भर आईं। मीडिया से बात करते हुए, उन्होंने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान करती हैं, लेकिन यह फैसला बहुत पीड़ादायक है।
ननिता शर्मा ने अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए कहा, “आज जो हुआ, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। इतना कड़ा आदेश आज जारी किया गया है।” उन्होंने तर्क दिया कि एबीसी (Animal Birth Control) नियमों के तहत कुत्तों को उनके क्षेत्र से हटाना मना है, लेकिन काटने की घटनाओं के आधार पर इस नियम को दरकिनार किया गया है।
पशुओं के प्रति अपनी गहरी चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा, “इन बेजुबान जानवरों के साथ इतनी ना-इंसाफी नहीं होना चाहिए। उन्हें नहीं पता कि उनके साथ क्या होने जा रहा है।” निराशा के बावजूद, ननिता शर्मा ने उम्मीद नहीं छोड़ी है। उन्होंने कहा, “मुझे अब भी उम्मीद है और मैं ईश्वरीय न्याय (Divine Justice) में विश्वास रखती हूँ।” उन्होंने यह भी कहा कि अगर पशुओं को आश्रय गृहों (Shelter Houses) में रखा जाता है, तो उनकी हालत भी अच्छी होनी चाहिए।
मेनका गांधी की प्रतिक्रिया: अव्यावहारिक फैसला
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर केवल ननिता शर्मा ने ही नहीं, बल्कि पशु अधिकार कार्यकर्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने इस आदेश को अव्यावहारिक और खराब बताया।
मेनका गांधी ने न्यूज एजेंसी एएनआई से बात करते हुए कहा कि यह फैसला जस्टिस पारदीवाला के पुराने जजमेंट जितना ही खराब है। उन्होंने शेल्टर हाउसों की कमी के मुद्दे पर ज़ोर दिया। उन्होंने सवाल किया, “यह जजमेंट कहता है कि आप पाँच हज़ार कुत्तों को सब जगह से उठाएँ। इन कुत्तों को उठाने के लिए आपको पचास शेल्टर चाहिए, लेकिन जगह कहाँ हैं?” उन्होंने तर्क दिया कि यदि यह व्यावहारिक रूप से संभव होता, तो अब तक हो चुका होता। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस तरह के व्यापक पैमाने पर कुत्तों को स्थानांतरित करने और उन्हें अच्छी स्थिति में रखने के लिए बुनियादी ढाँचा देश में मौजूद नहीं है, जिससे यह आदेश कार्यान्वयन में विफल हो सकता है।
यह विवाद एक बार फिर मानव सुरक्षा बनाम पशु अधिकार के बीच संतुलन की चुनौती को उजागर करता है, जहाँ अदालत का फैसला भले ही जन सुरक्षा के मद्देनजर आया हो, लेकिन इसने पशु प्रेमियों के बीच गहरी निराशा पैदा कर दी है।