कुलगाम पुलिस : आतंक की फसल ,नेटवर्क पर शिकंजा

पर पड़ोसी की ज़िद अब भी बरकरार

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!

पूनम शर्मा
900 शब्द कुलगाम , जम्मू-कश्मीर से एक बार फिर यह साबित हो गया है कि आतंक का जाल न तो पूरी तरह खत्म हुआ है और न ही उसका पोषक पड़ोसी पाकिस्तान अपनी आदतों से बाज़ आने वाला है । हाल ही में कुलगाम पुलिस ने एक व्यापक अभियान चलाते हुए पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर PoK में बैठे जम्मू-कश्मीर के राष्ट्रविरोधी तत्वों के नेटवर्क पर करारी चोट की । इन तत्वों के रिश्तेदारों और ‘ओवरग्राउंड वर्कर्स’ के ठिकानों पर छापे मारे गए , जहाँ से कई डिजिटल डिवाइस और आपत्तिजनक सामग्री बरामद की गई । लेकिन सवाल यह है कि इतने ऑपरेशन , इतनी सख्त निगरानी और “ऑपरेशन सिंदूर” जैसी मुहिमों के बावजूद आतंक की यह फसल आखिर क्यों नहीं सूख रही ?

पाकिस्तान का डिजिटल जिहाद

वह भारत की स्थिरता और लोकतंत्र को अपने लिए सबसे बड़ा ख़तरा मानता है । इसीलिए वह लगातार अपने पुराने ‘जिहादी प्रोजेक्ट’ को नए नाम , नए चेहरों और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के सहारे आगे बढ़ा रहा है । कुलगाम पुलिस की कार्रवाई यह भी दिखाती है कि आतंक अब केवल बंदूक या बारूद तक सीमित नहीं है । अब इसका चेहरा “डिजिटल जिहाद” बन चुका है । जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया या जिन पर मुकदमे दर्ज हुए , वे सोशल मीडिया और डिजिटल चैनलों के ज़रिए पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं से संपर्क में थे । वे यहाँ भारत में “नैरेटिव वारफेयर” चला रहे थे—कश्मीर में अलगाववाद को भावनात्मक रूप देकर युवाओं को भड़काने का काम । इस डिजिटल युद्ध का एक और पहलू आर्थिक है । जांच एजेंसियों के अनुसार , पाकिस्तान से भेजे गए ‘हवाला फंड’ के जरिए इन ओवरग्राउंड नेटवर्क को सक्रिय रखा जाता था । ये लोग कभी राहत कार्यों के नाम पर , तो कभी धार्मिक संगठनों के बहाने , युवाओं तक पैसा और प्रचार सामग्री पहुँचाते थे । दिल्ली एयरपोर्ट घटना – चेतावनी की घंटी सिर्फ कुलगाम ही नहीं , हालिया दिल्ली एयरपोर्ट की घटना ने भी यह स्पष्ट कर दिया कि भारत के हृदय में बैठे इन जिहादी तंत्रों को हल्के में लेना आत्मघाती भूल होगी ।

राजधानी की सुरक्षा व्यवस्था को तोड़ने का यह प्रयास इस बात का प्रमाण है कि आतंकवादी संगठनों की पहुँच केवल सीमित इलाकों तक नहीं रह गई है । यह अब पूरे भारत की लोकतांत्रिक संरचना को चुनौती देने पर आमादा हैं । भारत की लोकतंत्र की जड़ें जहाँ विविधता , सहिष्णुता और संवाद में हैं , वहीं इस्लामी आतंकवाद का मकसद उन जड़ों को खोखला करना है । यह आतंकवाद केवल हत्या या बम धमाकों का नहीं , बल्कि विचारों का युद्ध है — जहाँ धर्म के नाम पर असहिष्णुता , अलगाव और हिंसा को जायज़ ठहराने की कोशिश की जाती है । “सबका साथ-सबका विश्वास” से आगे — “पहले अपना विकास” की जरूरत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नारा “सबका साथ , सबका विकास , सबका विश्वास” भारत के समावेशी विकास की आत्मा है । लेकिन जब कुछ वर्ग इस विश्वास का दुरुपयोग कर देश के खिलाफ खड़े हों , तब नीति को “सबका साथ” से आगे बढ़कर “पहले अपना विकास” के रास्ते पर चलना ही विवेकपूर्ण होगा ।

ऑपरेशन सिंदूर और आगे की लड़ाई

भारत को अब यह स्वीकार करना होगा कि उसके उदार लोकतंत्र को चरमपंथी मानसिकता बार-बार कमजोर करने की कोशिश कर रही है । ऐसे में “सबका विश्वास” तभी सार्थक होगा जब पहले देश की सुरक्षा , स्थिरता और आंतरिक एकता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए । जम्मू-कश्मीर में विकास तभी संभव है जब वहां से पाकिस्तान प्रायोजित नेटवर्क पूरी तरह समाप्त हो । ऐसे ओवरग्राउंड वर्कर्स को केवल गिरफ्तार करना काफी नहीं—उनके वित्तीय और वैचारिक स्रोतों को भी नष्ट करना होगा । स्कूलों , मदरसों और ऑनलाइन प्लेटफार्मों में व्याप्त कट्टरता की जड़ को पहचानना और काटना ही अब असली राष्ट्र-निर्माण का कार्य है ।  “ऑपरेशन सिंदूर” और अन्य अभियानों ने यह संदेश दिया है कि भारतीय सुरक्षा एजेंसियाँ आतंकवाद के खिलाफ कोई नरमी नहीं बरतेंगी । लेकिन इस जंग का सबसे कठिन पहलू यह है कि अब दुश्मन सीमा पार से नहीं , बल्कि भीतर से काम कर रहा है । वह इंटरनेट , फेक न्यूज़ , धार्मिक नारों और विदेशों में बैठे प्रोपेगंडा गुरुओं के सहारे भारतीय युवाओं के मन में विष घोल रहा है ।

भारत के लोकतंत्र की असली परीक्षा

कुलगाम की कार्रवाई इसी व्यापक दृष्टि का हिस्सा है — आतंक के जड़ तक पहुँचने  का प्रयास । पुलिस ने स्पष्ट कहा है कि जब तक आतंक का पूरा पारिस्थितिक तंत्र ecosystem खत्म नहीं होता , अभियान जारी रहेगा । भारत के लोकतंत्र की असली परीक्षा आज भारत की सबसे बड़ी परीक्षा यह है कि क्या वह अपने लोकतंत्र की रक्षा सिर्फ भाषणों और नीतियों से कर सकता है , या फिर उसे अपने भीतर के असुरों से भी लड़ना होगा । पाकिस्तान और उसके पोषित आतंकी गिरोह भारत की प्रगति से भयभीत हैं , क्योंकि एक मजबूत , आत्मनिर्भर , तकनीकी रूप से सशक्त भारत उनके चरमपंथी सपनों का अंत है । भारत को अब अपने विकास को ही सबसे बड़ा जवाब बनाना होगा । जब हर युवा के हाथ में हथियार की जगह तकनीक , शिक्षा और रोज़गार होगा , तब न आतंक का रास्ता बचेगा और न उसके समर्थक ।

निष्कर्ष

कुलगाम की यह कार्रवाई केवल एक पुलिस ऑपरेशन नहीं , बल्कि भारत की चेतावनी है—उन सभी के लिए जो देश के खिलाफ किसी विदेशी योजना के मोहरे बनते हैं । यह भी याद रखना होगा कि आतंकवाद केवल गोली से नहीं , बल्कि एकजुट संकल्प से हारता है । भारत को अब यह स्पष्ट करना होगा कि लोकतंत्र कमजोरी नहीं , बल्कि सबसे बड़ी ताकत है । परंतु इस ताकत को बनाए रखने के लिए हमें अपनी सुरक्षा नीति में कठोरता और अपने समाज में सजगता दोनों लानी होंगी । अब समय आ गया है कि हम “सबका साथ , सबका विकास” की आत्मा को सुरक्षित रखते हुए , “पहले अपना विकास – पहले अपनी सुरक्षा” के संकल्प को राष्ट्रीय नीति का केंद्र बनाएं । तभी आतंकवाद के हर रंग , हर रूप और हर चेहरे को समाप्त किया जा सकेगा ।

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.