चिकन नेक पर कड़ा सन्देश: सीमा सुरक्षा,भारत की रणनीति

नए गढ़ और बढ़ते सैन्य तथा कूटनीतिक तनाव

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पूनम शर्मा
 हाल की परिस्थितियाँ साफ़ दिखाती हैं कि हमारी सैनिक  व नैतिक  तैयारी अब परवान चढ़ रही है। सूत्रों के मुताबिक़—और यह  जानकारी है कि इंडियन आर्मी ने सिलिगुड़ी कॉरिडोर यानी “चिकन नेक” के पास तीन नए आर्मी गेररिसन  स्थापित कर दिए हैं। यह कदम सिर्फ़ तात्कालिक मोर्चा सैट करने जैसा नहीं, बल्कि रणनीतिक रूप से उस संकरी जमीन को पूरी तरह से सुरक्षित करने की कोशिश है जो देश के पूरे नॉर्थ-ईस्ट को मुख्य भारत से जोड़ती है।

चिकन नेक का भू-राजनीतिक महत्व वही है जिसका अक्सर जिक्र होता है — लगभग 20-22 किलोमीटर का वह पतला हिस्सा जो उत्तर-पूर्वी राज्यों को बाकी भारत से जोड़ता है। यही सबसे संवेदनशील कड़ी है और बार-बार अफसरों ने कहा है कि इसे सुरक्षित रखना राष्ट्रीय सुरक्षा की प्राथमिकता है। अब तीन नए गढ़ों के साथ सेना की तैनाती और उनकी लोकेशन इस तरह चुनी गई है कि उस कॉरिडोर की रक्षा “कम्प्लीट” कर दी गई है—यह दावा स्थानीय सूत्रों व पोस्टरों में भी सामने आया है जिनमें एक तरह का ‘काउंटडाउन’ भी दिखाई दे रहा है।

क्या बदला है — तैनाती से लेकर सैद्धांतिक संदेश तक

सामरिक रूप से देखा जाए तो ये तैनातियाँ सिर्फ़ मोर्चा मजबूत करने के हालिया कदम नहीं हैं, बल्कि एक सन्देश भी हैं — पड़ोस में उठते कदमों और मैप-पॉलिटिक्स पर हमारी संवेदनाएँ तीखी हैं। आपकी बातों के मुताबिक़, सेना के ये कदम कुछ नए सरकारी पोस्टरों, सोशल मीडिया पोस्ट और आधिकारिक-नजर आने वाले संदेशों के साथ समन्वित हैं — जिनमें हाई कमांड की चेतावनी का टोन है कि सीमा संरक्षण के मामले में अब कोई समझौता बर्दाश्त नहीं होगा।

इसी बीच रक्षा खरीद और एयर डिफेन्स के बड़े ऑर्डर की भी चर्चाएँ हैं — तेजस विमानों के और ऑर्डर, विभिन्न हथियार प्रणालियों के बढ़ते आदेश—यह सब दर्शाता है कि भारत अपनी क्षमताओं को दोगुना करने की ओर कदम बढ़ा रहा है। इन खरीदों को लेकर सोशल मीडिया पर तरह-तरह की बातें हैं — कुछ कहते हैं ये अभेद्यरण के लिए हैं, तो कुछ का मानना है कि यह वैश्विक रणनीतिक इशारों का असर है। असलियत क्या है, यह अलग विषय है — पर जमीन पर तैनाती और खरीदें दोनों मिलकर संकेत दे रही हैं कि तैयारी तेज है।

पड़ेसी रिश्ते — बांग्लादेश, पाकिस्तान और चीन का परिप्रेक्ष्य

आपने  बांग्लादेश और पाकिस्तान के कूटनीतिक और सुरक्षा कृत्यों का ज़िक्र —मछुआरों की गिरफ्तारी, सीमा पर तकरार, और नक्शों पर दावों की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि पड़ोसी संबंधों में तनाव एक प्रमुख कारण बने हुए हैं. ऐसे में भारत की सक्रियता न केवल रक्षा की, बल्कि कूटनीतिक मोर्चे पर भी संदेश देने वाली मिली है.

इसके साथ ही चीन द्वारा मानचित्रों में कथित रूप से कुछ क्षेत्रों को दिखाने की चर्चाएँ और ‘ग्रेटर बंगला’ जैसी अवधारणाओं के आस-पास बनी चर्चा ने स्थिति को संवेदनशील बना दिया है। भारत की सटिक निगरानी, हवाई मार्गों की सुरक्षा और सीमा पर तैनाती का मतलब यही निकला कि नई चुनौतियों को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा।

GPS जैमिंग, साइबर हमले  और फाल्स सिग्नल

यह याद दिलाता है कि आधुनिक युद्ध केवल जमीन और हवा का नहीं रहा, बल्कि सूचना युद्ध का भी हिस्सा बन चुका है. फ्लाइट रूट में छेड़छाड़, सिग्नल में हस्तक्षेप — ये सब ऐसे तरीके हैं जिनसे शान्ति-स्थापना या युद्ध की दिशा बदली जा सकती है. इसलिए सिर्फ़ सैनीक तैनाती ही नहीं, साइबर-डिफेंस और संसद स्तर पर नीति निर्धारण भी जरूरी हो गया है.

आवाज़ें, पोस्टर और जनता का मनोभाव

सोशल मीडिया पोस्टर्स, ‘काउंटडाउन’ वाले मेसेज और पब्लिक कमेंट्स दिखाते हैं कि यह मुद्दा भावनात्मक हो चुका है। लोग सुरक्षा के लिए गहरी चिंता कर रहे हैं और हर छोटी-बड़ी खबर का तेज़ी से असर राजनीतिक और सामाजिक विमर्श पर पड़ रहा है। ऐसे समय में जिम्मेदार पत्रकारिता, थर्राती अफ़वाहों से बचने और ठोस जानकारी पर ध्यान देने की ज़रूरत और बढ़ जाती है।

निष्कर्ष

सतर्कता के साथ संयम और कूटनीति का मिश्रण जरूरी अंत में यह कहना ज़रूरी है कि सीमा सुरक्षा—चाहे वह चिकन नेक हो या कोई और संवेदनशील इलाका—राष्ट्रीय प्राथमिकता है। तैनाती, हथियार ऑर्डर और कूटनीतिक चुनौती—इन सबको एक साथ संतुलित तरीके से संभालना ही भविष्य की नीति का मूल मंत्र होना चाहिए। संवेदनशीलता के साथ-साथ संयम और कूटनीति भी उतनी ही महत्वपूर्ण है—क्योंकि सुरक्षा केवल लड़ाई से नहीं, समझौते और बेहतर पड़ोसी नीतियों से भी बनती है। दोस्तों, आपने जो कच्चा और सजीव सामग्री दी है, उसी आधार पर यह लेख तैयार किया गया है—जहाँ संभव, विचार-स्रोत और दावे “सूत्रों के अनुसार” बताये गए हैं। आगे और तथ्यात्मक रिपोर्टिंग, आधिकारिक बयान या प्रमाण मिलने पर इन दावों का और विस्तार किया जा सकता है।

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