बोइंग: ‘इतना बड़ा कि हत्या का भी मुकदमा नहीं?’

विमान दुर्घटनाएँ, कॉर्पोरेट छूट और अमेरिकी नीति पर बहुराष्ट्रीय निगमों का नियंत्रण: एक विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण

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अशोक कुमार
हाल ही में, अमेरिकी न्याय प्रणाली ने एक ऐसा निर्णय सुनाया जिसने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या कॉर्पोरेट शक्ति कानूनी जवाबदेही से ऊपर हो गई है। बोइंग (Boeing) के खिलाफ दो घातक 737 मैक्स विमान दुर्घटनाओं से संबंधित आपराधिक मामले को अमेरिकी अदालत ने खारिज कर दिया। इन दुर्घटनाओं में 346 लोगों की जान चली गई थी। यह निर्णय केवल एक कानूनी फाइल का बंद होना नहीं है; यह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि कैसे बहुराष्ट्रीय निगम ‘इतना बड़ा कि मुकदमा नहीं’ (Too Big to Prosecute) के सिद्धांत के तहत काम करते हैं, जहाँ मुनाफा मानव जीवन पर हावी हो जाता है।

यह लेख केवल बोइंग के आपराधिक मामले को खारिज किए जाने की रिपोर्टिंग नहीं है, बल्कि यह एक गहन विश्लेषणात्मक मंथन है। इसका उद्देश्य यह समझना है कि क्यों अमेरिकी सरकार द्वारा की गई पैरवी (Lobbying) और नीतिगत फंडिंग इन निगमों को पूर्ण दंडमुक्ति (Absolute Impunity) प्रदान करती है, जबकि जनता को वास्तविक शक्ति केंद्रों से ध्यान भटकाने के लिए ‘बलि के बकरों’ (Scapegoats) में उलझा दिया जाता है।

346 मौतों पर न्याय का अंत: एक कानूनी विफलता

बोइंग 737 मैक्स की त्रासदी अक्टूबर 2018 (लायन एयर फ्लाइट 610) और मार्च 2019 (इथियोपियन एयरलाइंस फ्लाइट 302) में हुई। इन दुर्घटनाओं की जड़ में मैन्यूवरिंग कैरेक्टरिस्टिक्स ऑग्मेंटेशन सिस्टम (MCAS) नामक एक स्वचालित उड़ान नियंत्रण प्रणाली में मौजूद घातक खामी थी। यह खामी व्यवस्थित लापरवाही और सुरक्षा को दरकिनार कर प्रमाणन (Certification) को जल्दबाजी में पास कराने के कॉर्पोरेट दबाव का सीधा परिणाम थी।

अमेरिकी जस्टिस डिपार्टमेंट के अनुरोध पर, टेक्सास के यूएस डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के न्यायाधीश रीड ओ’कॉनर ने आपराधिक मामले को खारिज करने को मंजूरी दे दी। हालांकि, इस मंजूरी के साथ न्यायाधीश ने जो तीखी टिप्पणी की, वह कॉर्पोरेट जवाबदेही की कमी को उजागर करती है।

न्यायाधीश ओ’कॉनर ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह सार्वजनिक हित में इस मामले को खारिज करने के निर्णय से असहमत थे। उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार का गैर-अभियोजन समझौता (Non-Prosecution Agreement – DPA) “उड़ान भरने वाले आम लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक जवाबदेही हासिल करने में विफल रहा है।” यह ध्यान देने योग्य है कि 2023 में जज ओ’कॉनर ने बोइंग के अपराध को “अमेरिकी इतिहास में सबसे घातक कॉर्पोरेट अपराध” करार दिया था।

समझौते के तहत, बोइंग ने पीड़ितों के परिवारों को $444.5 मिलियन की अतिरिक्त राशि और $243.6 मिलियन का जुर्माना देने की सहमति दी है। लेकिन क्या इतनी बड़ी त्रासदी के लिए वित्तीय मुआवजा ही एकमात्र ‘न्याय’ है? क्या किसी कॉर्पोरेट इकाई पर आपराधिक मुकदमा चलाकर जेल की सजा का डर पैदा करना ज़रूरी नहीं है ताकि भविष्य में ऐसी मुनाफा-संचालित लापरवाहियाँ न हों? यह कानूनी निर्णय कॉर्पोरेट नैतिकता के बजाय कॉर्पोरेट वित्तीय शक्ति की विजय है।

व्यवस्थित लापरवाही और मुनाफे का सिद्धांत

बोइंग की दुर्घटनाएं कोई अकेली तकनीकी खराबी नहीं थीं, बल्कि यह एक संरचनात्मक विफलता थी जो कंपनी के भीतर मुनाफे को सुरक्षा से ऊपर रखने की संस्कृति को दर्शाती है। MCAS प्रणाली में खामी को छिपाने का प्रयास, पायलटों को उचित प्रशिक्षण न देना, और संघीय विमानन प्रशासन (FAA) को गुमराह करना दर्शाता है कि यह आपराधिक व्यवहार जानबूझकर, व्यवस्थित तरीके से किया गया था।

यह मुनाफा-संचालित लापरवाही (Profit-Driven Negligence) सिर्फ विमानन तक सीमित नहीं है।

बिग फार्मा: दवा कंपनियाँ अक्सर भारी मुनाफे के लिए जोखिम भरी दवाओं को जल्दी बाजार में उतारती हैं, जिसके कारण बाद में बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य संकट और कानूनी निपटान होते हैं।

ऑटोमेकर्स: वाहन निर्माता, सुरक्षा सुविधाओं को महंगा मानकर उन्हें दरकिनार करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप दोषपूर्ण पुर्जों के कारण दुर्घटनाएं होती हैं।

ये सभी उद्योग एक ही दंडमुक्ति के सिद्धांत का लाभ उठाते हैं: वे इतने शक्तिशाली हैं कि उन्हें गंभीर रूप से दंडित करने से अर्थव्यवस्था को खतरा हो सकता है, इसलिए उन्हें केवल जुर्माना लगाकर छोड़ दिया जाता है, जो उनके लिए व्यवसाय की लागत (Cost of Doing Business) मात्र होती है, न कि सजा।

अमेरिकी नीति का वास्तविक चालक: लॉबिंग और थिंक टैंक

बोइंग जैसे मामलों में आपराधिक मुकदमा खारिज होने के पीछे की असली ताकत अमेरिकी सरकार पर बहुराष्ट्रीय निगमों का व्यापक नियंत्रण है।

अक्सर, जब अमेरिकी नीति पर बाहरी प्रभाव की बात आती है, तो ध्यान छोटे समूहों, जैसे कि AIPAC के राजनीतिक अभियानों में दिए जाने वाले एकल-अंक प्रतिशत योगदान पर केंद्रित हो जाता है। यह ध्यान भटकाने वाला है। असली शक्ति का प्रवाह निम्न प्रकार से होता है:

भारी लॉबिंग फंड: बोइंग और अन्य बड़े निगम (बिग फार्मा, रक्षा कंपनियाँ) कांग्रेस, व्हाइट हाउस और नियामक एजेंसियों पर प्रभाव डालने के लिए विशाल लॉबिंग राशि खर्च करते हैं। यह राशि राजनीतिक अभियानों में जाने वाले धन से कहीं अधिक विशाल होती है।

थिंक टैंक फंडिंग: ये निगम प्रमुख नीतिगत थिंक टैंकों को भारी फंड देते हैं। ये थिंक टैंक बदले में ऐसी नीतिगत सिफारिशें तैयार करते हैं जो सीधे तौर पर इन निगमों के हितों की पूर्ति करती हैं, चाहे वह विदेशी नीति हो या घरेलू विनियमन।

दरवाजे घूमना (Revolving Door): नियामक एजेंसियों (जैसे FAA, FDA) और सरकार के उच्च पदों पर बैठे अधिकारी सेवानिवृत्त होने के बाद सीधे इन निगमों में भारी वेतन वाली नौकरियों में चले जाते हैं। यह ‘रिवॉल्विंग डोर’ सुनिश्चित करता है कि नियामक हमेशा कॉर्पोरेट हितों के प्रति नरम रहें।

यही कॉर्पोरेट-सरकारी गठजोड़ बोइंग को यह गारंटी देता है कि जब सैकड़ों लोगों की मौत के बावजूद आपराधिक मुकदमा चलाने का समय आएगा, तो सरकार खुद ही न्यायाधीश से इसे खारिज करने का अनुरोध करेगी, क्योंकि इन निगमों की ‘आर्थिक अस्थिरता’ को ‘राष्ट्रीय हित’ के रूप में पेश किया जाता है।

वैचारिक भ्रम और जनता का भटकाव

सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जब वास्तविक शक्ति केंद्र (बहुराष्ट्रीय निगम) कानून और नीति पर कब्जा कर रहे हैं, तब भी जनता को वैचारिक भ्रम और बलि के बकरों (Scapegoats) में उलझा दिया जाता है। मीडिया और राजनीतिक बहस में छोटे और कम प्रभावशाली समूहों के योगदान को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है, जबकि खरबों डॉलर के लॉबिंग खर्च और थिंक टैंक के एजेंडा को अनदेखा कर दिया जाता है।

यह भटकाव जानबूझकर किया जाता है। यदि लोग कॉर्पोरेट शक्ति की जड़ को पहचान लेंगे, तो वे वास्तविक जवाबदेही की मांग करेंगे।

जस्टिस ओ’कॉनर ने अपने dissent में जो जवाबदेही की कमी पर जोर दिया, वह इसी बात को रेखांकित करता है कि जब तक नागरिकों का ध्यान कॉर्पोरेट शक्ति दंडमुक्ति के इस विशाल ढांचे पर केंद्रित नहीं होगा, तब तक किसी भी ‘बलि के बकरे’ के खिलाफ आवाज उठाना या किसी छोटे समूह पर गुस्सा करना समय की बर्बादी और राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा बनना मात्र है।

निष्कर्ष: वास्तविक शक्ति केंद्र के विरुद्ध आवाज

बोइंग का मामला कॉर्पोरेट सर्वोच्चता का एक दर्दनाक प्रमाण है। यह हमें सिखाता है कि न्याय केवल तभी मिलता है जब वह शक्तिशाली संस्थाओं के वित्तीय हितों में फिट बैठता हो। 346 निर्दोषों की जान चली गई, लेकिन कंपनी बच गई।

सच्चा बदलाव तभी आएगा जब जनता, पत्रकार, और राजनीतिज्ञ कॉर्पोरेट शक्ति दंडमुक्ति के इस विशाल ढांचे पर सवाल उठाना शुरू करेंगे। हमें बलि के बकरों की तलाश बंद करनी होगी और वास्तविक शक्ति केंद्रों के खिलाफ आवाज उठानी होगी। तभी लोकतांत्रिक संस्थाएं और न्याय प्रणाली फिर से नागरिकों के हित में काम कर पाएंगी, न कि केवल बहुराष्ट्रीय निगमों के मुनाफे के लिए।

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