लोकमाता अहिल्याबाई होलकर पर राष्ट्रीय संगोष्ठी
स्वामी श्रद्धानंद कॉलेज, दिल्ली में अहिल्याबाई होलकर के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पुनरुत्थान पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ।
- स्वामी श्रद्धानंद कॉलेज में ‘लोकमाता अहिल्याबाई होलकर’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी शुरू हुई।
- वक्ताओं ने औपनिवेशिक इतिहास लेखन को चुनौती देते हुए अहिल्याबाई के योगदान को उजागर किया।
- डॉ. बालमुकुंद पाण्डेय ने कहा, अहिल्याबाई का जीवन स्त्री नेतृत्व और राष्ट्र स्वाभिमान का प्रतीक है।
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 09 नवंबर: स्वामी श्रद्धानंद महाविद्यालय, अलीपुर, दिल्ली में दिनांक 7 नवंबर, 2025 को एक महत्त्वपूर्ण दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी का केंद्रीय विषय ‘लोकमाता अहिल्याबाई होलकर के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पुनरुत्थान’ था।
यह आयोजन दीनदयाल उपाध्याय अध्ययन केंद्र, भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (ICHR), भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद (ICPR) और भारतीय इतिहास संकलन योजना समिति, दिल्ली प्रांत के संयुक्त तत्वावधान में संपन्न हुआ। इस संयुक्त प्रयास ने इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के महत्व को और भी बढ़ा दिया।

🗣️ प्राचार्य प्रो. गर्ग: अहिल्याबाई का जीवन औपनिवेशिक विचारों के विरुद्ध प्रेरणा
स्वागत वक्तव्य में महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. प्रवीण गर्ग जी ने आमंत्रित अतिथियों का गर्मजोशी से स्वागत किया। उन्होंने लोकमाता अहिल्याबाई की तत्कालीन संदर्भों में वैश्विक और मानवीय दृष्टि के विषय में अपने विचार रखे।
प्रो. गर्ग ने कहा कि लोकमाता अहिल्याबाई के जीवन को पढ़कर हमें स्त्रीत्व की भारतीय दृष्टि प्राप्त होती है। उन्होंने जोर दिया कि अहिल्याबाई का संघर्ष किसी भी प्रकार की औपनिवेशिक वैचारिकता के विरुद्ध प्रेरणा के सूत्र प्रदान करता है। उनका जीवन भारतीय स्वाभिमान और मूल्यों का मजबूत आधार है।

मुख्य अतिथि डॉ. बालमुकुंद पाण्डेय: इतिहास लेखन की औपनिवेशिक दृष्टि को चुनौती
मुख्य अतिथि के रूप में पधारे डॉ. बालमुकुंद पाण्डेय जी ने इतिहास लेखन में मौजूद विसंगतियों पर गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि औपनिवेशिक दृष्टि ने जिस तरह विदेशी आक्रांताओं को नायक की तरह प्रस्तुत किया, ठीक उसी प्रकार भारतीय स्वाभिमानियों को जानबूझकर दरकिनार किया गया है।
डॉ. पाण्डेय ने ‘अभिज्ञानशाकुंतलम’ का जिक्र करते हुए अहिल्याबाई के संस्कारों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा, “अहिल्याबाई का जीवन हमें बताता है कि भारतीय सांस्कृतिक व्यवस्था में स्त्री नेतृत्व की स्वाभाविक भागीदार है।” उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि अहिल्याबाई ने महिलाओं की सैन्य टुकड़ी बनाकर यह साबित किया कि स्त्री न केवल नेतृत्व कर सकती है, बल्कि राष्ट्र स्वाभिमान की रक्षा के लिए अपने प्राण भी न्योछावर कर सकती है।
उन्होंने माँग की कि राज्य व्यवस्था, सैन्य व्यवस्था, वित्तीय व्यवस्था, धार्मिक व्यवस्था एवं सांस्कृतिक व्यवस्था में माता अहिल्याबाई के योगदान को एक शैक्षिक अनुशासन (Academic Discipline) की तरह जगह मिलनी चाहिए। उनकी दूरगामी दृष्टि ने ही उन्हें ‘लोकमाता’ बनाया, जिसने संपूर्ण राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधा।
📖 बीज वक्तव्य: डॉ. ओमजी उपाध्याय ने खोले नए आयाम
डॉ. ओमजी उपाध्याय ने अपना बीज वक्तव्य रखते हुए महाविद्यालय के प्रांगण को एक आश्रम की अनुभूति देने वाला बताया। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस्लामिक आक्रांताओं ने भारत को केवल लूटा ही नहीं, बल्कि भारतीयता के मर्म को भी नष्ट करने का निरंतर प्रयास किया।
उन्होंने कहा, अहिल्याबाई द्वारा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण ही वह शक्ति थी, जिसने उन्हें लोकमाता की उपाधि से सम्मानित किया। डॉ. उपाध्याय ने अहिल्याबाई की राजनीतिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक दृष्टि के नए-नए आयामों को उद्घाटित किया। उन्होंने अहिल्याबाई के राजनीतिक काल को लोकतंत्र का अप्रतिम उदाहरण बताया, जहाँ अंतिम व्यक्ति ही नहीं, बल्कि अंतिम जीव तक उनकी प्राथमिकता में था। उन्होंने इतिहास लेखन की उपहास व्यवस्था को ठोस, तार्किक और भारतीय स्वरूप की प्रशंसनात्मक व्यवस्था में बदलने की आवश्यकता पर बल दिया।
🚺 विशिष्ट अतिथि पूजा व्यास: महिला सशक्तिकरण की प्रेरणास्रोत
विशिष्ट अतिथि पूजा व्यास जी ने ऐतिहासिक तथ्यों के साथ अहिल्याबाई के ‘लोकमाता’ बनने की प्रक्रिया को प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि इतिहास में अहिल्याबाई को महिला सशक्तिकरण के लिए सदैव याद रखा जाएगा और वर्तमान नारी दृष्टि के क्षेत्र में माता अहिल्याबाई हमारी सबसे बड़ी प्रेरणा हैं।
कार्यक्रम के प्रथम दिन भोजनोपरांत प्रथम और द्वितीय सत्र का आयोजन हुआ, जिसमें डॉ. रत्नेश त्रिपाठी और डॉ. उमेश कुमार दुबे विषय विशेषज्ञ के रूप में शामिल हुए। सत्रों की अध्यक्षता प्रो. वेदपाल राणा ने की और डॉ. ज्योति लक्ष्मी ने संचालन किया। इन सत्रों में कुल 12 शोध पत्रों का वाचन किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. उमेश कुमार दुबे ने किया और संयोजन डॉ. अजय कुमार सिंह ने किया। प्रथम दिवस के सत्र का समापन राष्ट्रगीत के साथ हुआ।