पूनम शर्मा
भारत की न्याय प्रणाली बहुत प्राचीन और गौरवशाली मानी जाती है। सदियों से यह न केवल न्याय देने का कार्य करती आई है, बल्कि समय-समय पर ऐसे ऐतिहासिक फैसले भी दिए हैं, जिन्होंने भारतीय संविधान और कानून व्यवस्था को नई दिशा दी। कुछ मुकदमे तो इतने महत्वपूर्ण रहे कि उनके आधार पर नए कानून बनाए गए और कुछ ने मौजूदा संवैधानिक व्यवस्थाओं को चुनौती दी। भोपाल स्थित मानसरोवर ग्लोबल यूनिवर्सिटी (MGU) देश के उन प्रमुख विश्वविद्यालयों में से एक है जो विद्यार्थियों को श्रेष्ठ वकील बनने की दिशा में प्रशिक्षित करती है। यहां विधि (Law) की पढ़ाई स्नातक से लेकर स्नातकोत्तर तक के सभी स्तरों पर कराई जाती है। प्रवेश मेरिट के आधार पर दिए जाते हैं और छात्रों को सैद्धांतिक ज्ञान के साथ-साथ ऐतिहासिक मामलों के जरिए व्यावहारिक कानूनी समझ विकसित कराई जाती है।
आइए जानते हैं भारत के कुछ ऐसे ऐतिहासिक मुकदमों के बारे में जिन्होंने भारतीय कानून के इतिहास में अमिट छाप छोड़ी—
ए. के. गोपालन बनाम मद्रास राज्य, 1950
ए. के. गोपालन एक प्रसिद्ध कम्युनिस्ट नेता थे जिन्हें 1947 में सामान्य आपराधिक कानून के तहत गिरफ्तार किया गया था। 1950 में उन्हें पुनः ‘प्रिवेंटिव डिटेंशन एक्ट’ के तहत हिरासत में लिया गया। उन्होंने इस आदेश की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में ‘हैबियस कॉर्पस’ याचिका के माध्यम से चुनौती दी। अदालत ने निर्णय दिया कि अनुच्छेद 21 के तहत यह गिरफ्तारी संवैधानिक रूप से वैध है। हालांकि, एक्ट की धारा 12 और 14 को असंवैधानिक घोषित किया गया। यह मामला व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सरकारी शक्ति के संतुलन का प्रारंभिक उदाहरण बना।
एस. आर. बोम्मई बनाम भारत संघ, 1994
कर्नाटक के मुख्यमंत्री एस. आर. बोम्मई की सरकार को 1989 में अनुच्छेद 356 के तहत बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। बोम्मई ने इस निर्णय को उच्च न्यायालय और फिर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए कहा कि राष्ट्रपति की शक्तियां पूर्ण नहीं हैं। किसी राज्य की सरकार को बर्खास्त करने का निर्णय संसद के दोनों सदनों की स्वीकृति के बिना अंतिम नहीं माना जाएगा। इस निर्णय ने संघीय ढांचे और राज्यों की स्वायत्तता को मजबूत किया।
शायरा बानो बनाम भारत संघ, 2017
यह मामला ‘ट्रिपल तलाक केस’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। शायरा बानो ने अपने पति द्वारा तीन तलाक दिए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। पांच जजों की संविधान पीठ ने 22 अगस्त 2017 को फैसला सुनाते हुए तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया। इस फैसले ने मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की दिशा में ऐतिहासिक कदम रखा और बाद में ‘मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम 2019’ लाया गया।
के. एम. नानावटी बनाम महाराष्ट्र राज्य, 1959
यह वह मशहूर मामला है जिस पर बॉलीवुड फिल्म रुस्तम बनी। नौसेना अधिकारी नानावटी ने अपनी पत्नी के प्रेमी की हत्या कर दी थी। जूरी ने पहले उन्हें निर्दोष ठहराया, परंतु बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला पलट दिया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी। इस मामले के बाद भारत में जूरी प्रणाली (jury trial) को समाप्त कर दिया गया क्योंकि यह जनभावनाओं से प्रभावित पाई गई।
इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण, 1975
रायबरेली से विपक्षी उम्मीदवार राज नारायण ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर चुनावी गड़बड़ियों का आरोप लगाया। 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उन्हें दोषी ठहराया और छह साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी। इस फैसले के बाद इंदिरा गांधी ने आपातकाल (Emergency) घोषित किया जो 1977 तक चला। हजारों लोगों को जेल में डाला गया और प्रेस पर सेंसर लगा। यह मामला भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज हुआ।
विशाखा बनाम राजस्थान राज्य, 1997
राजस्थान की सामाजिक कार्यकर्ता भंवरी देवी के साथ हुए सामूहिक बलात्कार के बाद जब आरोपी बरी कर दिए गए, तो ‘विशाखा’ नाम से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। जस्टिस जे. एस. वर्मा की पीठ ने कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न की परिभाषा और निवारण के दिशा-निर्देश तय किए। इन्हीं दिशा-निर्देशों के आधार पर ‘कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध और निवारण) अधिनियम 2013’ बनाया गया।
मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ, 1980
कर्नाटक की एक प्रसिद्ध सिल्क फैक्ट्री ‘मिनर्वा मिल्स’ के राष्ट्रीयकरण के बाद मालिकों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। अदालत ने निर्णय दिया कि संसद को संविधान में संशोधन करने का अधिकार है, लेकिन वह ‘मौलिक संरचना’ को नष्ट नहीं कर सकती। इस निर्णय ने ‘Basic Structure Doctrine’ को और स्पष्ट किया और संसद की शक्तियों को सीमित किया।
मेनका गांधी बनाम भारत संघ, 1978
पत्रकार मेनका गांधी का पासपोर्ट 1976 में सरकार द्वारा ‘सार्वजनिक हित’ के नाम पर जब्त कर लिया गया। बिना कोई कारण बताए इस आदेश को चुनौती देते हुए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। अदालत ने कहा कि विदेश यात्रा का अधिकार व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Article 21) का हिस्सा है और सरकार बिना उचित कारण इसे नहीं छीन सकती। यह फैसला नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए मील का पत्थर साबित हुआ।
निष्कर्ष
इन सभी मामलों ने भारतीय न्याय प्रणाली को नई दिशा दी। कभी उन्होंने नागरिक अधिकारों की व्याख्या की, कभी सरकार की शक्तियों पर अंकुश लगाया, और कभी समाज में समानता और न्याय की भावना को मजबूत किया। आज हर विधि छात्र के लिए इन मामलों का अध्ययन आवश्यक है, क्योंकि इन्हीं से भारतीय संविधान की आत्मा को समझा जा सकता है।
मानसरोवर ग्लोबल यूनिवर्सिटी जैसे संस्थान छात्रों को इन्हीं ऐतिहासिक मुकदमों के अध्ययन के माध्यम से सक्षम और संवेदनशील विधि विशेषज्ञ बनाने का कार्य कर रहे हैं — ताकि भविष्य में वे भी न्याय और सत्य की इस महान परंपरा को आगे बढ़ा सकें।