NCW ने मांगी साइबर कानूनों की समीक्षा, महिलाओं की डिजिटल गरिमा होगी सुरक्षित”

महिलाओं की डिजिटल सुरक्षा के लिए बड़ा कदम — राष्ट्रीय महिला आयोग ने साइबर कानूनों की समीक्षा की सिफारिश की

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली | 5 नवंबर: डिजिटल युग में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते साइबर अपराधों और ऑनलाइन उत्पीड़न को देखते हुए राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने महिलाओं की सुरक्षा को लेकर एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट जारी की है।
आयोग ने भारत के मौजूदा साइबर कानूनों की व्यापक समीक्षा और सुधार की सिफारिश की है ताकि महिलाओं के डिजिटल अधिकारों की रक्षा की जा सके, प्राइवेसी को मजबूत बनाया जाए और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स को जवाबदेह ठहराया जा सके।

महिलाओं की डिजिटल सुरक्षा पर फोकस

रिपोर्ट में कहा गया है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने महिलाओं को सीखने और अभिव्यक्ति के नए अवसर दिए हैं, लेकिन इसके साथ ही साइबर बुलिंग, ट्रोलिंग, डीपफेक और निजी डेटा के दुरुपयोग जैसे खतरे भी बढ़े हैं।

आयोग का कहना है कि इन अपराधों को भारतीय न्याय संहिता 2023 के अंतर्गत लाया जाए ताकि पीड़िताओं को न्याय और सुरक्षा दोनों मिल सके।
इसके साथ ही पीड़िता की पहचान को गोपनीय रखने और हानिकारक सामग्री को 36 घंटे के भीतर हटाने की सिफारिश की गई है।
200 से अधिक कानूनी सिफारिशें

आयोग ने एक वर्ष तक विभिन्न विशेषज्ञों और हितधारकों से परामर्श के बाद यह रिपोर्ट तैयार की है। इसमें 200 से अधिक कानूनी और संस्थागत सुधारों का प्रस्ताव रखा गया है।

यह रिपोर्ट कानून और न्याय मंत्रालय, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और गृह मंत्रालय को सौंपी गई है।

मुख्य सिफारिशें

1.भारतीय न्याय संहिता, 2023

साइबर बुलिंग, ट्रोलिंग, डीपफेक और निजी जीवन में दखल जैसे अपराधों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाए।

पीड़िता की पहचान की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।

हानिकारक या अभद्र ऑनलाइन सामग्री को 36 घंटे के भीतर हटाना अनिवार्य किया जाए।

2. सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2002 और आईटी नियम, 2021

सभी सोशल मीडिया अकाउंट्स का अनिवार्य सत्यापन (वेरिफिकेशन) किया जाए।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) से बनाए गए भ्रामक चित्रों या वीडियो और लैंगिक उत्पीड़न को नए अपराधों की श्रेणी में शामिल किया जाए।

अंतरराष्ट्रीय (क्रॉस-बॉर्डर) कंटेंट नियंत्रण, पीड़िता सहायता कोष (Victim Fund) और कड़े दंड का प्रावधान किया जाए।

3.बाल यौन अपराधों से संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO Act, 2012)

डिजिटल छेड़छाड़ और ऑनलाइन बहकावे (ग्रूमिंग) को अपराध घोषित किया जाए।

बच्चों के खिलाफ साइबर अपराधों के लिए सज़ा और जुर्माने दोनों में वृद्धि की जाए।

4.डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023

“संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा” और “लैंगिक रूप से विशेष नुकसान” की परिभाषा तय की जाए।

बिना अनुमति पोस्ट की गई सामग्री को 12 घंटे के भीतर हटाने की बाध्यता तय की जाए।

उपयोगकर्ता डेटा को 360 दिनों तक सुरक्षित रखने का प्रावधान किया जाए ताकि जांच में सहायता मिल सके।

5.कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न से संरक्षण अधिनियम, 2013 (POSH Act, 2013)

ऑनलाइन या दूरस्थ कार्यस्थलों (रिमोट वर्कस्पेस) में होने वाले यौन उत्पीड़न को भी इस कानून के तहत लाया जाए।

6.महिलाओं की अश्लील प्रस्तुति (निषेध) अधिनियम, 1986

ऑनलाइन और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर महिलाओं की अभद्र या आपत्तिजनक प्रस्तुति को इस कानून के दायरे में शामिल किया जाए।

मानसिक और तकनीकी सहयोग पर ज़ोर

रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि हर ज़िले में मनोवैज्ञानिक (साइकोलॉजिस्ट) और फॉरेंसिक विशेषज्ञ की नियुक्ति की जाए ताकि साइबर अपराध पीड़ित महिलाओं को परामर्श और सहायता मिल सके।
साथ ही, आयोग ने AI ऑडिट, पीड़ित सहायता प्रणाली, और डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों के ज़रिए लोगों में जागरूकता बढ़ाने पर भी ज़ोर दिया है।

विजया रहाटकर का बयान

राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष विजया रहाटकर ने कहा,

> “डिजिटल दुनिया ने महिलाओं को सीखने, अभिव्यक्ति और अवसरों की नई दिशा दी है,
लेकिन इसके साथ डर, धमकी और अपमान के नए रूप भी सामने आए हैं।
हमारी जिम्मेदारी है कि तकनीक सशक्तिकरण का माध्यम बने, शोषण का नहीं।
हम ऐसा साइबर माहौल बनाना चाहते हैं जहां कानून केवल सज़ा न दें बल्कि गरिमा और सुरक्षा दोनों सुनिश्चित करें,
ताकि हर महिला आत्मविश्वास के साथ डिजिटल दुनिया में आगे बढ़ सके।”

क्यों ज़रूरी है यह सुधार

पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं से जुड़े साइबर अपराधों में तेज़ी से वृद्धि हुई है।
डीपफेक, फर्जी प्रोफाइल, ट्रोलिंग और निजी तस्वीरों के दुरुपयोग ने महिलाओं के डिजिटल जीवन को असुरक्षित बना दिया है।
इस रिपोर्ट का उद्देश्य एक लैंगिक-संवेदनशील (Gender-Sensitive) साइबर कानूनी ढांचा तैयार करना है,
जहां महिलाओं को ऑनलाइन भी वही सुरक्षा और सम्मान मिले जो वास्तविक जीवन में मिलना चाहिए।

निष्कर्ष

राष्ट्रीय महिला आयोग की यह रिपोर्ट भारत में महिलाओं की डिजिटल सुरक्षा की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।
अगर ये सिफारिशें लागू होती हैं, तो भारत एक ऐसा डिजिटल वातावरण बना सकेगा
जहां ऑनलाइन स्वतंत्रता और ऑनलाइन सुरक्षा दोनों साथ-साथ चलें।
यह पहल महिलाओं के डिजिटल अधिकारों को मज़बूत करने और सुरक्षित साइबर भविष्य की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी।

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