ओसामा शहाब को RJD टिकट: जंगलराज की आहट या मजबूरी?

बाहुबली शहाबुद्दीन के बेटे को पहला सिंबल देकर तेजस्वी की पार्टी ने बिहार की राजनीति को किस ओर मोड़ा?

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अशोक कुमार
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की शुरुआत ही एक विस्फोटक सियासी दांव से की है। पार्टी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने बाहुबली और सीवान के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा शहाब को रघुनाथपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए सबसे पहला पार्टी सिंबल दिया। यह निर्णय न केवल RJD की पारंपरिक ‘माई’ (मुस्लिम-यादव) समीकरण को साधने की मजबूरी दिखाता है, बल्कि तेजस्वी यादव के उस ‘युवा नेतृत्व’ और ‘बदलाव’ की छवि पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है, जिसे वह पिछले कुछ समय से गढ़ने की कोशिश कर रहे थे।

ओसामा शहाब को सिंबल दिए जाने की घटना एक प्रतीकात्मक संकेत है। यह रघुनाथपुर के मौजूदा RJD विधायक हरिशंकर यादव द्वारा अपनी सीट ओसामा के लिए स्वेच्छा से छोड़ने के बाद हुआ। इस कदम से स्पष्ट होता है कि शहाबुद्दीन परिवार को वापस पार्टी के पाले में लाना लालू परिवार के लिए एक उच्च प्राथमिकता थी। इस परिवार के प्रभाव को देखते हुए, RJD को डर था कि यदि ओसामा निर्दलीय चुनाव लड़ते हैं, तो मुस्लिम वोट बैंक में विभाजन होगा, जिसका सीधा फायदा NDA गठबंधन को मिल सकता है।

जंगलराज की वापसी: विपक्ष का सबसे बड़ा हथियार

ओसामा शहाब को RJD का सिंबल मिलते ही विपक्षी दल NDA ने तुरंत हमलावर रुख अपना लिया है। NDA नेताओं का मानना है कि यह फैसला RJD के असली इरादों को उजागर करता है: सत्ता मिलने पर बिहार को 1990 से 2005 तक के लालू-राबड़ी राज के दौरान के ‘जंगलराज’ की तरफ धकेलना।

आरोप है कि शहाबुद्दीन का सीवान में 1990 के दशक में समानांतर सरकार चलाने का एक काला इतिहास रहा है, जिसे ‘जंगलराज’ के प्रतीक के रूप में देखा जाता था। उनके बेटे को सबसे पहले टिकट देना, विपक्षी दलों को यह कहने का मौका देता है कि RJD ने साफ कर दिया है कि सत्ता इन आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं के हाथों में होगी।

भाजपा के नेताओं ने तेजस्वी यादव के ‘नई राजनीति’ के दावों पर सवाल उठाते हुए कहा है कि यह ‘वही पुरानी लालटेन’ है, जो बाहुबल के अंधेरे में जलती थी। उन्होंने कहा कि यह टिकट ‘बिहार की जनता को एक चेतावनी’ है कि अगर RJD सत्ता में आती है, तो भय और अपराध का माहौल वापस आ सकता है। यह आरोप चुनाव प्रचार के दौरान कानून-व्यवस्था और सुशासन के मुद्दे को NDA के लिए एक मुख्य हथियार बना देगा।

तेजस्वी के ‘A to Z’ नारे और ओसामा की पृष्ठभूमि का विरोधाभास

पिछले कुछ चुनावों से, RJD के युवा नेता तेजस्वी यादव लगातार पार्टी को ‘A to Z’ की पार्टी (यानी सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व) और ‘युवा सोच’ वाली पार्टी के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने खुद को शहाबुद्दीन जैसे बाहुबलियों की विरासत से दूर दिखाने का प्रयास किया था। ओसामा को टिकट देना सीधे तौर पर इस नई और प्रगतिशील छवि के विपरीत है।

ओसामा शहाब पर भी आपराधिक मामले दर्ज हैं, जो उनके पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाते हैं। इस फैसले से RJD के भीतर के प्रगतिशील वर्ग और मध्यम वर्ग के युवा मतदाताओं में भी एक असहजता की स्थिति पैदा हुई है, जिन्हें तेजस्वी अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रहे थे।

विश्लेषण बताता है कि RJD ने ‘नई सोच’ की राजनीतिक आदर्शवादिता के मुकाबले जमीनी चुनावी गणित को प्राथमिकता दी है। सीवान-रघुनाथपुर बेल्ट में शहाबुद्दीन परिवार का दबदबा इतना गहरा है कि उसे अनदेखा करना RJD के लिए मुस्लिम-वोट बैंक और यादव-वोट बैंक दोनों की एकजुटता को खतरे में डाल सकता था। लालू यादव का यह कदम, एक अनुभवी राजनेता के रूप में, डर बनाम जीत के समीकरण को दिखाता है – RJD ने एक सीट पर बाहुबल के प्रभाव का लाभ उठाने के लिए जंगलराज के आरोपों को झेलने का जोखिम उठाना बेहतर समझा।

RJD के लिए दोधारी तलवार: जीत और नैतिकता का संघर्ष

ओसामा शहाब को टिकट देना RJD के लिए एक दोधारी तलवार साबित हो सकता है:

सकारात्मक प्रभाव:

सीवान और आसपास के क्षेत्रों में शहाबुद्दीन समर्थकों का एकमुश्त वोट RJD को मिल सकता है।

यह संदेश जाएगा कि RJD अपने पुराने और वफादार राजनीतिक परिवारों को महत्व देती है, जिससे कैडर का मनोबल बढ़ेगा।

माई समीकरण (मुस्लिम-यादव) मजबूत होगा और वोट विभाजन (Vote Split) का खतरा कम होगा।

नकारात्मक प्रभाव:

NDA को RJD पर जंगलराज और बाहुबली संरक्षण का आरोप लगाने का ठोस आधार मिलेगा।

RJD की ‘नई राजनीति’ और ‘विकास’ की छवि को धक्का लगेगा, जिससे शहरी और युवा मतदाता दूर हो सकते हैं।

नैतिकता के सवाल पर RJD को हर मंच पर सफाई देनी होगी।

निष्कर्ष

ओसामा शहाब को राजद टिकट देना सिर्फ एक उम्मीदवार का चयन नहीं है, बल्कि यह बिहार की राजनीति में सत्ता के लिए बाहुबल की निरंतर प्रासंगिकता को दर्शाता है। यह लालू यादव का अपने राजनीतिक गढ़ को सुरक्षित करने का एक स्पष्ट प्रयास है, भले ही इसके लिए तेजस्वी की गढ़ी हुई ‘बदलाव’ की छवि को दांव पर लगाना पड़े। यह चुनाव रघुनाथपुर में बाहुबल की विरासत बनाम सुशासन के दावों के बीच का सीधा मुकाबला बनने जा रहा है, और इसका परिणाम बताएगा कि बिहार की जनता अतीत के ‘जंगलराज’ के आरोपों को कितनी गंभीरता से लेती है।

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