अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने ट्रंप के वैश्विक टैरिफ की वैधता पर उठाए गंभीर सवाल

राष्ट्रीय आपातकालीन शक्तियों के तहत राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा लगाए गए टैरिफ पर सुप्रीम कोर्ट में कड़ी बहस; न्यायाधीशों ने कार्यपालिका बनाम विधायिका की सीमाओं पर जताई चिंता

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  • सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को राष्ट्रपति ट्रंप के वैश्विक टैरिफ की वैधता पर साढ़े दो घंटे तक चली सुनवाई
  • मुख्य न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट्स ने कहा, टैरिफ कर लगाने जैसा है, जो कांग्रेस का मूल अधिकार है
  • न्यायाधीशों ने पूछा, क्या 1977 का कानून (IEEPA) राष्ट्रपति को ऐसे व्यापक आर्थिक निर्णय लेने की अनुमति देता है?
  • मामला अमेरिकी अर्थव्यवस्था और वैश्विक व्यापार दोनों के लिए निर्णायक साबित हो सकता है

समग्र समाचार सेवा
वॉशिंगटन, 6 नवंबर:अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने बुधवार को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उन व्यापक टैरिफों की वैधता पर संदेह व्यक्त किया जिन्हें उन्होंने अपने आर्थिक और विदेश नीति के अहम औज़ार के रूप में इस्तेमाल किया है। यह मामला अमेरिकी संविधान में राष्ट्रपति की शक्तियों और कांग्रेस के अधिकारों के टकराव का प्रतीक बन गया है।

सुनवाई के दौरान, रूढ़िवादी और उदारवादी दोनों न्यायाधीशों ने ट्रंप प्रशासन के वकील से यह स्पष्ट करने को कहा कि क्या 1977 के “इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पावर्स एक्ट (IEEPA)”  जिसे राष्ट्रीय आपातकालीन परिस्थितियों के लिए बनाया गया था, राष्ट्रपति को इतने व्यापक स्तर पर टैरिफ लगाने का अधिकार देता है। कुछ न्यायाधीशों ने आशंका जताई कि ट्रंप ने इस कानून का इस्तेमाल कांग्रेस की कराधान संबंधी शक्तियों को दरकिनार करने के लिए किया।

मुख्य न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट्स ने अमेरिकी सॉलिसिटर जनरल डी. जॉन सॉअर, जो प्रशासन की ओर से पेश हुए थे, से कहा,

> “टैरिफ अमेरिकी नागरिकों पर लगाए गए कर के समान हैं, और यह अधिकार सदैव कांग्रेस का रहा है। यह तो संविधान की मूल भावना है।”

रॉबर्ट्स ने यह भी कहा कि अदालत इस मामले में “मेजर क्वेश्चन डॉक्ट्रिन” लागू करने पर विचार कर सकती है, एक ऐसा सिद्धांत जिसके तहत कार्यपालिका के किसी बड़े आर्थिक और राजनीतिक निर्णय के लिए कांग्रेस की स्पष्ट अनुमति आवश्यक होती है।

उन्होंने कहा,

> “यह अधिकार किसी भी उत्पाद, किसी भी देश, किसी भी मात्रा और किसी भी समय के लिए टैरिफ लगाने तक विस्तृत किया जा रहा है। यह बहुत बड़ा दावा है, और यह स्पष्ट नहीं है कि इसके लिए कानूनी आधार कितना मजबूत है।”

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने इसी सिद्धांत के आधार पर पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन की कई नीतियों को रद्द किया था।

न्यायालय की बहस का केंद्र:

ट्रंप प्रशासन के वकील सॉअर ने दलील दी कि राष्ट्रपति ने यह अधिकार IEEPA के तहत सही तरीके से इस्तेमाल किया है, क्योंकि यह कानून राष्ट्रीय आपातकाल की स्थिति में आर्थिक खतरों से निपटने के लिए बनाया गया था। उन्होंने कहा कि अमेरिका का बढ़ता व्यापार घाटा राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए “असाधारण और असामान्य खतरा” बन गया था, और इन टैरिफ ने अमेरिका को “आर्थिक शक्ति” के रूप में स्थापित किया है।

उनका कहना था कि यदि इन टैरिफों को समाप्त किया गया, तो इससे अमेरिका “रुथलेस ट्रेड रिटेलिएशन” यानी निर्दयी व्यापारिक प्रतिशोध का शिकार होगा और “राष्ट्र आर्थिक असफलता की ओर बढ़ जाएगा।”

हालांकि, न्यायमूर्ति एमी कोनी बैरेट ने सॉअर से पूछा,

> “क्या आप इतिहास में किसी ऐसे उदाहरण का हवाला दे सकते हैं जहां ‘regulate importation’ जैसे शब्दों का प्रयोग टैरिफ लगाने के अधिकार देने के लिए किया गया हो?”

दूसरी ओर, न्यायमूर्ति केतान्जी ब्राउन जैक्सन ने कहा कि IEEPA का उद्देश्य राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियों को सीमित करना था, न कि उन्हें बढ़ाना।

> “यह स्पष्ट है कि कांग्रेस इस कानून के ज़रिए राष्ट्रपति की शक्ति को नियंत्रित करना चाहती थी,” उन्होंने कहा।

राष्ट्रपति के समर्थक न्यायाधीशों की राय:

कुछ रूढ़िवादी न्यायाधीशों ने राष्ट्रपति की विदेशी नीति के अधिकारों की ओर झुकाव दिखाया। न्यायमूर्ति ब्रेट कैवनॉ ने कहा कि राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने 1970 के दशक में IEEPA के पूर्ववर्ती कानून के तहत इसी तरह का वैश्विक टैरिफ लगाया था।

> “यह आपके पक्ष में एक अच्छा उदाहरण है,” कैवनॉ ने सॉअर से कहा।

रॉबर्ट्स ने भी यह स्वीकार किया कि ट्रंप के टैरिफ ने उन्हें विदेशी व्यापार समझौतों में “लेवरेज” यानी दबाव का साधन दिया है।

> “हाँ, टैरिफ कर की तरह हैं, जो कांग्रेस की शक्ति है, लेकिन यह विदेशी व्यापार से जुड़ा कर है, और विदेशी मामलों में तो कार्यपालिका की प्रमुख भूमिका होती है,” रॉबर्ट्स ने कहा।

वैश्विक और आर्थिक प्रभाव:

IEEPA के तहत लगाए गए टैरिफ से अमेरिका को 89 अरब डॉलर की अनुमानित आय फरवरी से सितंबर 2025 के बीच हुई है। इन टैरिफों ने वैश्विक बाजारों में अस्थिरता बढ़ाई और कई देशों के साथ व्यापारिक संबंधों को प्रभावित किया।

ट्रंप ने जनवरी में पद संभालने के बाद इन टैरिफों को “वैश्विक व्यापार सुधार” के साधन के रूप में प्रस्तुत किया था। उन्होंने दावा किया कि इससे अमेरिका ने चीन, कनाडा और मेक्सिको जैसे देशों से फेंटानिल और अन्य अवैध दवाओं की तस्करी को रोकने के लिए “आर्थिक दबाव” बनाया।

हालांकि, आलोचकों का कहना है कि इन टैरिफों ने अमेरिकी उपभोक्ताओं पर बोझ बढ़ाया, व्यापारिक अनिश्चितता पैदा की और वैश्विक आर्थिक अस्थिरता को जन्म दिया।

संवैधानिक प्रश्न और संभावित असर:

न्यायमूर्ति नील गोर्सच ने चेतावनी दी कि यदि राष्ट्रपति को इतनी व्यापक शक्तियाँ दी गईं, तो यह संविधान में निहित “सेपरेशन ऑफ पावर” (शक्तियों के विभाजन) के सिद्धांत को कमजोर करेगा। उन्होंने पूछा,

> “कांग्रेस को क्या रोकता है कि वह विदेशी व्यापार या युद्ध की घोषणा जैसी अपनी सारी जिम्मेदारियाँ राष्ट्रपति को सौंप दे?”

विश्लेषकों का मानना है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला यह तय करेगा कि भविष्य में कोई भी राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपातकाल का हवाला देकर कितनी दूर तक आर्थिक नीतियाँ लागू कर सकता है।

हालांकि, ट्रंप प्रशासन आश्वस्त है। अमेरिकी ट्रेज़री सचिव स्कॉट बेसेंट, जो सुनवाई में मौजूद थे, ने कहा कि यदि अदालत ट्रंप के खिलाफ निर्णय देती है, तो प्रशासन टैरिफ बनाए रखने के लिए अन्य कानूनी प्रावधानों का उपयोग करेगा। उन्होंने सुनवाई के बाद कहा,

> “हम बहुत, बहुत आशावादी हैं।”

अगला कदम:

सुप्रीम कोर्ट आमतौर पर सुनवाई के बाद निर्णय देने में कई महीने लगाता है, लेकिन इस बार ट्रंप प्रशासन ने अदालत से शीघ्र फैसला देने की अपील की है। यह फैसला न केवल अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए बल्कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था के लिए भी ऐतिहासिक महत्व रखेगा।

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