कलकत्ता हत्याकांड: हिंदुओं पर हुए अत्याचार और गांधी की नीरसता

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पूनम शर्मा
डायरेक्ट एक्शन डे का काला दिन
16 अगस्त 1946 का दिन भारतीय इतिहास में एक काला अध्याय है। इसे इतिहास में डायरेक्ट एक्शन डे या द ग्रेट कॉलकत्ता किलिंग्स के नाम से जाना जाता है। उस दिन मुस्लिम लीग द्वारा घोषित हड़ताल का उद्देश्य राजनीतिक था—पाकिस्तान के लिए जनसंख्या आधारित दबाव बनाना—लेकिन इसका सबसे बड़ा शिकार सामान्य हिंदू नागरिक बने। कलकत्ता के उत्तरी इलाकों में सुबह से ही लाठी-भैस, पत्थरबाज़ी और छुरा-घात की घटनाएँ शुरू हो गईं। बाजार, दुकानें और आवास—सब हिंसक भीड़ का निशाना बन गए। चार दिनों तक इस हिंसा ने शहर को युद्धक्षेत्र बना दिया और हज़ारों लोग मारे गए।

 गांधी और कांग्रेस की नीरस नीति
इस घटना के पीछे कांग्रेस और गांधी की भूमिका पर भी गंभीर सवाल उठते हैं। जिस समय हिंदू समुदाय पर अत्याचार और नरसंहार हो रहा था, गांधीजी की नीति केवल सत्याग्रह और अहिंसा तक सीमित रही। उन्होंने हिंदुओं को हथियार उठाने या अपनी रक्षा करने का कोई आदेश नहीं दिया। नतीजतन, हजारों निर्दोष हिंदू मारे गए, उनके घर जला दिए गए, और व्यापारी और आम नागरिक बेघर हो गए।

 निष्क्रियता और मार्जिनलाइजेशन
कांग्रेस और गांधी की नीति केवल “निरक्षमता और आत्मसमर्पण” तक सीमित रही। मुस्लिम लीग की ओर से जनता पर हमला किया गया और हिंदुओं ने अपनी रक्षा के लिए प्रयास किए, लेकिन उन्हें संघटनात्मक समर्थन या सरकारी सुरक्षा नहीं मिली। गांधीजी के आहिंसा के सिद्धांत ने उस समय हिंदू समुदाय को न केवल असुरक्षित छोड़ा, बल्कि उन्हें एक तरह से सिस्टमेटिक मार्जिनलाइजेशन का शिकार बनाया।

संगठित हिंसा और प्रशासन की विफलता
घटना की रणनीति और भयावहता का आलंब इस बात से समझा जा सकता है कि मुस्लिम लीग ने पहले से ही हिंसा को योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया। पेट्रोल बम, छुरा-घात, और लाठी-भैस का इस्तेमाल करके हज़ारों लोगों की जान ली गई। पुलिस और प्रशासन को भी हिंसा पर नियंत्रण नहीं मिला क्योंकि गांधीजी और कांग्रेस नेतृत्व ने सक्रिय कदम नहीं उठाए।

मानवता के चुनिंदा पहलू
ऐसे समय में भी इंसानियत के चुनिन्दा इशारे दिखाई दिए। कुछ स्थानीय लोगों ने—चाहे उनकी पहचान कोई भी रही हो—निकलने वालों की रक्षा की, महिलाओं और बच्चों को सुरक्षित ठिकानों तक पहुँचाया। इतिहास में ऐसे कई किस्से बचे हैं जहाँ साधारण लोग खून के बीच मानवीय कर्तव्य निभाते दिखे।

 सामाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव
कलकत्ता की बाशिंदों के लिए जो मुश्किलें आईं वे महीनों नहीं—सालों तक महसूस की गयीं। घर तबाह हुए, व्यापार बिखर गए, और अनेक परिवारों की पीढ़ियाँ विस्थापित हुईं। जिस शहर को कभी “कल्चरल कैपिटल” कहा जाता था, वही जगह कुछ ही दिनों में भय और अवसाद की निशानी बन गई।

गांधी और कांग्रेस की आलोचना
गांधी और कांग्रेस की नीरसता ने यह स्पष्ट किया कि राजनीतिक सिद्धांतों के नाम पर निर्दोष लोगों की जान की कोई अहमियत नहीं थी। चार दिनों में हुई हत्या और तबाही ने न केवल कलकत्ता की सांस्कृतिक और आर्थिक प्रतिष्ठा को ध्वस्त किया, बल्कि हिंदू समुदाय की सामाजिक और मानसिक स्थिति पर भी दीर्घकालिक असर डाला।

 इतिहास से सीख
डायरेक्ट एक्शन डे केवल एक तारीख नहीं थी, यह हिंदू समुदाय के प्रति राजनीतिक और सामाजिक निरंकुशता की निशानी भी थी। यह घटना हमें सिखाती है कि नेतृत्व केवल नैतिक उपदेश देने तक सीमित नहीं होना चाहिए; उसे अपने लोगों की सुरक्षा और न्याय सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय कदम उठाने चाहिए।

 निष्कर्ष: चेतावनी आज के लिए
आज भी जब हम 16 अगस्त 1946 की घटनाओं को याद करते हैं, हमें यह सवाल उठाना चाहिए कि क्या गांधी और कांग्रेस के फैसले केवल असहाय और निष्क्रिय देखने वाले की भूमिका निभा रहे थे। राजनीतिक और धार्मिक उन्माद के बीच नेतृत्व की निष्क्रियता कितना विनाशकारी हो सकता है, यह डायरेक्ट एक्शन डे हमें हमेशा याद दिलाता रहेगा।

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