30 साल बाद बिहार की चुप्पी टूटी: रिकॉर्ड तोड़ मतदान, किसका पलड़ा भारी?

बिहार चुनाव 2025 का पहला चरण: 121 सीटों पर 64.46% वोटिंग का विश्लेषण, महिला मतदाताओं का रिकॉर्ड उत्साह और सियासी समीकरण पर इसका असर

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अशोक कुमार
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का पहला चरण सिर्फ़ मतदान का दिन नहीं था, बल्कि यह बिहार के राजनीतिक इतिहास में एक टर्निंग पॉइंट साबित हुआ है। 18 जिलों की 121 विधानसभा सीटों पर हुए मतदान ने पिछले 30 वर्षों के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं, जहाँ 64.46 प्रतिशत का अभूतपूर्व मतदान दर्ज किया गया। यह आंकड़ा अपने आप में एक कहानी बयां करता है—एक ऐसी कहानी जिसमें जनता ने अपनी चुप्पी तोड़ी है और बदलाव या मज़बूती के लिए बड़े पैमाने पर बाहर निकली है।

राजनीतिक पंडितों, मीडिया विश्लेषकों और दोनों प्रमुख गठबंधनों (NDA और महागठबंधन) के लिए यह उच्च मतदान प्रतिशत एक जटिल पहेली बन गया है। ऐतिहासिक रूप से, बिहार में उच्च मतदान अक्सर सत्ता विरोधी लहर (Anti-Incumbency) का संकेत माना जाता रहा है, लेकिन इस बार का मतदान पैटर्न इतना एकतरफा नहीं है। महिला मतदाताओं का उत्साह और युवा भागीदारी इस बार के परिणामों को अप्रत्याशित बना सकती है।

प्रमुख विश्लेषण बिंदुरिकॉर्ड तोड़ वोटिंग:

रिकॉर्ड तोड़ वोटिंग: 64.46% मतदान, जो 1995 के बाद पहले चरण का सबसे बड़ा आंकड़ा है।

महिला वोटरों का प्रभाव: कई सीटों पर महिला मतदान प्रतिशत पुरुष मतदाताओं से अधिक रहा, जो नीतीश कुमार की ‘साइलेंट वोटर’ थ्योरी को मज़बूत करता है, लेकिन तेजस्वी यादव के युवा नेतृत्व की लहर का भी संकेत है।

उच्च मतदान का अर्थ: विश्लेषक इस रिकॉर्ड वोटिंग को मज़बूत एंटी-इनकम्बेंसी (महागठबंधन के पक्ष में) और गरीब/पिछड़े वर्ग की बढ़ी हुई जागरूकता (जो NDA के कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थी हैं) के बीच विभाजित देख रहे हैं।

30 साल की चुप्पी क्यों टूटी? मतदान के पीछे की शक्ति

बिहार का यह रिकॉर्ड मतदान प्रतिशत (64.46%) महज एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि यह मतदाताओं की गहन प्रेरणा को दर्शाता है। यह तीन प्रमुख शक्तियों के कारण संभव हुआ है:

A. ‘साइलेंट वोटर्स’ की दहाड़: महिला सशक्तिकरण

पहले चरण के मतदान की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता महिला मतदाताओं का अभूतपूर्व उत्साह रहा है। चुनाव आयोग के शुरुआती आकलन और बूथवार रिपोर्ट बताती है कि कई सीटों पर महिला मतदान का प्रतिशत पुरुष मतदान से 3-5% अधिक रहा है।

नीतीश कुमार का आधार: यह पैटर्न सीधे तौर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ‘साइलेंट वोटर’ आधार को मज़बूत करता है। उनकी योजनाएँ जैसे शराबबंदी, पंचायती राज में आरक्षण, साइकिल योजना, और जीविका समूह की सफलता ने महिला वोटरों को एकजुट किया है, जो आमतौर पर कम बोलती हैं लेकिन वोटिंग के दिन बड़ी संख्या में बाहर निकलती हैं।

सुरक्षित मतदान की भावना: सुरक्षा व्यवस्था में सुधार के कारण भी महिलाएँ निडर होकर मतदान केंद्र तक पहुंची हैं, जिससे उच्च भागीदारी सुनिश्चित हुई है।

B. युवा और नए मतदाताओं का निर्णायक गुस्सा या उम्मीद

इस चरण में 18-19 आयु वर्ग के लाखों युवा मतदाताओं ने पहली बार वोट डाला है।

महागठबंधन का आकर्षण: तेजस्वी यादव का ‘नौकरी और रोज़गार’ पर केंद्रित अभियान इस युवा वर्ग को सबसे ज़्यादा आकर्षित कर रहा है। उच्च मतदान इस बात का संकेत हो सकता है कि युवा बेरोजगारी के मुद्दे पर मौजूदा सरकार के प्रति अपना ‘गुस्सा’ ज़ाहिर करने के लिए बाहर निकले हैं।

पैटर्न मैपिंग: युवा वोटर पारंपरिक जातीय गठबंधनों से कम बंधे होते हैं और सीधे विकास और अवसर के मुद्दों पर वोट करते हैं। यह रिकॉर्ड वोटिंग युवा शक्ति के पक्ष में एक मज़बूत फैसला दे सकती है, जिसका सीधा फ़ायदा उस गठबंधन को मिलेगा जिसने रोज़गार को केंद्रीय मुद्दा बनाया है।

ECI और प्रशासन की भूमिका

चुनाव आयोग ने जिस तरह से वेबकास्टिंग, सुरक्षा बलों की तैनाती और जागरूकता अभियानों का संचालन किया, उसने मतदाताओं के बीच यह विश्वास जगाया कि मतदान निष्पक्ष और सुरक्षित होगा। कोविड-19 महामारी के बाद, इतने बड़े पैमाने पर सुरक्षित मतदान कराना प्रशासन की बड़ी सफलता है।

रिकॉर्ड मतदान: NDA या महागठबंधन? चुनावी गणित की पहेली

64.46% का यह आंकड़ा किस गठबंधन के पक्ष में जाएगा, यह सबसे बड़ा सवाल है। विश्लेषक इसे दो प्रमुख सिद्धांतों में बाँटकर देख रहे हैं:

सिद्धांत I: एंटी-इनकम्बेंसी का मज़बूत प्रमाण (महागठबंधन का दावा)

यदि उच्च मतदान सत्ता विरोधी लहर का परिणाम है, तो इसका सीधा फ़ायदा महागठबंधन को मिलना चाहिए।

असंतुष्ट वोटर: माना जाता है कि जो वोटर अपनी सरकार से असंतुष्ट होता है, वह अधिक प्रेरित होकर वोट डालने निकलता है। बेरोजगारी, बाढ़ प्रबंधन में असफलता और कृषि संबंधी मुद्दे इस असंतोष का मुख्य कारण हो सकते हैं।

यादव और मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण: तेजस्वी यादव के नेतृत्व में यादव और मुस्लिम वोटों (M-Y) का ध्रुवीकरण मज़बूत हुआ है। यदि इस कोर वोटर आधार ने बड़े पैमाने पर वोट डाला है, तो यह कई सीटों पर महागठबंधन को बढ़त दिलाएगा।

सिद्धांत II: कल्याणकारी लाभार्थी (NDA का दावा)

यदि उच्च मतदान केंद्र और राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थियों का परिणाम है, तो यह NDA के पक्ष में जा सकता है।

गरीब और पिछड़े वर्ग की एकजुटता: पीएम मोदी की आवास योजना, मुफ्त राशन, पीएम किसान सम्मान निधि और बिहार सरकार की जीविका जैसी योजनाओं के लाभार्थी (विशेष रूप से गरीब महिलाएँ) बड़ी संख्या में NDA को वोट देने के लिए प्रेरित हो सकते हैं।

जातीय समीकरण में सेंध: जीतन राम मांझी (HAM) और वीआईपी जैसी छोटी पार्टियों का NDA के साथ आना दलित और अति पिछड़ा वर्ग (EBC) के वोटों को मज़बूती से NDA के खेमे में बनाए रख सकता है, जिससे राजद के MY समीकरण की धार कम हो सकती है।

मामला सीटों पर भारी

यह तय है कि इस रिकॉर्ड मतदान ने ‘जाति समीकरण + बूथ प्रबंधन’ के पुराने गणित को ‘जाति + लाभार्थी + युवा’ के नए जटिल समीकरण में बदल दिया है। विश्लेषकों का मानना है कि जो उम्मीदवार या गठबंधन अपनी ओर युवा (रोज़गार की उम्मीद) और महिला (सुरक्षा और योजना) दोनों वर्गों को खींचने में सफल रहा होगा, वही निर्णायक बढ़त लेगा।

रिकॉर्ड के बाद सियासी समीकरण और भविष्य की दिशा

उच्च मतदान का मतलब है कि लोगों ने निश्चित रूप से अपनी राय दी है, और यह राय सत्ता परिवर्तन या सत्ता की मज़बूती दोनों में से एक हो सकती है।

कम अंतर वाली सीटें: रिकॉर्ड वोटिंग के कारण कई सीटों पर जीत का अंतर कम हो सकता है, जिससे मतगणना के दिन तक अनिश्चितता बनी रहेगी।

दिग्गजों की चिंता: इस चरण में चुनाव लड़ रहे तेजस्वी यादव (राघोपुर), सम्राट चौधरी (तारापुर) और विजय कुमार सिन्हा (लखीसराय) जैसे दिग्गजों के लिए यह उच्च मतदान एक साथ आशा और चिंता लेकर आया है।

आगे का संदेश: यह रिकॉर्ड मतदान अगले चरणों के लिए एक मज़बूत संदेश है कि बिहार का मतदाता अब अपनी ताकत दिखा रहा है।

अंतिम विश्लेषण: परिणाम कुछ भी हो, बिहार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उसकी जनता अब चुपचाप बैठने वाली नहीं है। लोकतंत्र अब मतपेटियों के माध्यम से मज़बूती से बोल रहा है।

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