पूनम शर्मा
हरियाणा विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक बार फिर “वोट चोरी” का मुद्दा उछालकर राजनीति में तूफान ला दिया है। दिल्ली में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने दावा किया कि हरियाणा में लोकतंत्र “चुराया जा चुका” है और अब भारत में चुनावों पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
राहुल गांधी ने कहा कि हरियाणा विधानसभा चुनाव में करीब 25 लाख वोट चोरी हुए थे — जबकि राज्य में कुल लगभग 2 करोड़ मतदाता हैं। यानी उनके अनुसार हर आठ में से एक वोट फर्जी है। उन्होंने यह भी कहा कि सभी एग्जिट पोल में कांग्रेस की जीत दिखाई गई थी, लेकिन नतीजों में बीजेपी ने बाजी मार ली। राहुल गांधी ने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा नेता और मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने नतीजों से पहले मीडिया में कहा था कि “इंतज़ाम हो गए हैं, बीजेपी जीत रही है।” राहुल गांधी ने सवाल उठाया — “आखिर ये इंतज़ाम क्या थे?”
लेकिन राहुल गांधी के इन आरोपों ने उनकी खुद की विश्वसनीयता पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपने दावों को साबित करने के लिए एक ब्राज़ील की मॉडल की तस्वीर दिखा दी, यह कहते हुए कि यह एक “फर्जी वोटर” का उदाहरण है। अब यह तस्वीर उनके लिए उलटी पड़ गई है, क्योंकि सवाल उठ रहे हैं कि आखिर एक विदेशी मॉडल की तस्वीर भारतीय वोटर लिस्ट में कैसे दिखाई जा सकती है? भाजपा नेताओं ने इसे राहुल गांधी की “घबराहट और झूठी रणनीति” बताया है।
भाजपा प्रवक्ताओं ने कहा कि राहुल गांधी ने बिना सबूत भारत की संवैधानिक संस्थाओं — चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट — की साख को बदनाम किया है। उन्होंने मांग की है कि राहुल गांधी पर मानहानि, फर्जी प्रचार और राष्ट्रविरोधी बयानबाज़ी के आरोप में केस दर्ज कर उन्हें जेल भेजा जाए।
राहुल गांधी की यह बयानबाज़ी न केवल संवैधानिक संस्थाओं की अवमानना है बल्कि भारत की लोकतांत्रिक छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नुकसान पहुँचाने का प्रयास भी है। उन्होंने जिन महिलाओं और व्यक्तियों के नाम और तस्वीरें प्रेस कॉन्फ्रेंस में लीं, उनके बारे में कोई ठोस प्रमाण पेश नहीं किया गया।
राहुल गांधी को “लोकतांत्रिक अधिकार” के तहत सवाल उठाने का हक़ है, लेकिन अधिकतर राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह सब केवल चुनावी नौटंकी है। राहुल गांधी हर बार चुनाव से पहले “वोट चोरी” का शोर मचाते हैं, फिर हार के बाद कोई सबूत नहीं देते।
राहुल गांधी इससे पहले भी कर्नाटक और बिहार चुनावों में ऐसे ही आरोप लगा चुके हैं। और वो भी बिना किसी ठोस प्रमाण के — तो यह स्पष्ट है कि वे हार का ठीकरा पहले से ही सरकारी संस्थाओं पर फोड़ना चाहते हैं।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि राहुल गांधी का यह रवैया न केवल गैर-जिम्मेदाराना है बल्कि राष्ट्रविरोधी प्रवृत्ति का परिचायक है। भारत के लोकतंत्र को “चोरी हुआ” कहना, विदेशी मंचों पर भारत की संस्थाओं को बदनाम करना और फर्जी तस्वीरें दिखाकर जनता को भ्रमित करना – यह सब किसी जिम्मेदार नेता का आचरण नहीं हो सकता।
अब यह मामला सिर्फ बयानबाज़ी तक सीमित नहीं रह गया है। भाजपा नेता और कानूनी विशेषज्ञ मांग कर रहे हैं कि राहुल गांधी के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाए। अगर वे बिना सबूत संवैधानिक संस्थाओं की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचा रहे हैं, तो उन्हें जेल भेजना ही सही संदेश देगा कि कोई भी व्यक्ति देश की संस्थाओं से ऊपर नहीं है।
चुनाव के ठीक पहले राहुल गांधी का यह आरोप न केवल उनके राजनीतिक असंतुलन को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कांग्रेस अब हार को छुपाने के लिए झूठ और अफवाहों का सहारा लेने लगी है। लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर राहुल गांधी द्वारा फैलाया गया भ्रम अब खुद उन्हीं के लिए राजनीतिक जाल बन गया है।