चुनावी पिच पर ‘गायब’ हिन्दू-मुस्लिम मुद्दे: बिहार में विकास और युवा राजनीति का नया ट्रेंड

बिहार चुनाव 2025 में, हर बार चर्चा में रहने वाले धर्म आधारित सवाल इस बार मंच से गायब

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  • नेताओं ने विकास और युवाओं की उम्मीदों को मुद्दा बनाया,
    जंगल राज’ बनाम रोज़गार की बहस छिड़ी।
  • सीमांचल में कभी-कभी सांप्रदायिक मुद्दे उभरे, लेकिन चुनावी विमर्श में ये सिर्फ़ मामूली ‘स्पेशल एपियरेंस’ रहे।
  • बड़े दलों का ढांचा इस बार महिला वोटर, जातिगत समीकरण और भविष्य की योजनाओं के इर्द-गिर्द घूमता नजर आया।

प्रतिज्ञा राय

पटना, 05 नवंबर:हर चुनावी मोड़ पर कोई नया ट्विस्ट! बिहार विधानसभा चुनाव 2025 इस वाक्य को सही साबित करता है। एक महीने की पुरज़ोर रैलियों, आरोप-प्रत्यारोप की बौछार और कभी-कभी हिंसक घटनाओं के दौर में सबसे ज़्यादा चौंकाने वाली बात रही, हिंदू-मुस्लिम मुद्दों की रहस्यमयी ‘गायब’।

जहां बीते चुनावों में ‘ध्रुवीकरण’ सबसे बड़ा ट्रम्प कार्ड होता था, वहीं इस बार नेताओं ने नई ‘पिच’ तैयार की, बेरोजगारी, विकास, महिला सशक्तिकरण, और जातिगत समीकरण। एनडीए ने ‘जंगल राज’ से डराया, विपक्ष ने सरकारी नौकरियों का सपना दिखाया, और दोनों ने ही महिला वोटर पर जमकर ध्यान लगाया।

लेकिन यह सब तब और रोचक हो जाता है, जब सीमांचल जैसे कुछ क्षेत्रों में मुस्लिम घुसपैठ, वक्फ कानून, और AIMIM की एंट्री जैसे ‘स्पॉटलाइट’ मुद्दे आए, मगर वे बड़े मंच से ‘एग्जिट’ ले गए! धार्मिक ध्रुवीकरण का तेल इस बार चुनावी मशीनरी को चलाने के लिए काफी कम पड़ा। महागठबंधन, बीजेपी, कांग्रेस, और छोटे दल, सबने जाति समीकरण, बड़ा बिजनेस, युवा भविष्य, और महिला वोट जैसे ‘नए ट्रेंड’ पकड़े।

एक और दिलचस्प पहलू, इस बार करीब 7.42 करोड़ वोटर्स, जिनमें आधे से ज्यादा युवा और महिला वोटर हैं, वे ‘चुपचाप’ बदलाव की आंधी लेकर आ रहे हैं। प्रचारकों को बार-बार अपनी बात नए अंदाज में कहनी पड़ रही है। हिंसा, समर्थन की हत्या, और नेता की बयानबाजी जैसी फिल्मी घटनाएं आईं, लेकिन चुनावी विमर्श ज़्यादा गंभीर और ‘ट्रेंडिंग’ रहता गया।

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