बाहुबली को टिकट क्यों?
सुशासन के वादे पर भारी पड़ा चुनावी गणित, जेडीयू का यह कदम बताता है कि बिहार में अब चरित्र नहीं, प्रभाव ही टिकट की कुंजी है।
प्रतिज्ञा राय
पटना, 3 नवंबर: सुशासन या संरक्षण? बिहार में 28 मुकदमों वाले बाहुबली को टिकट क्यों दिया जेडीयू ने?
नीतीश की ‘साफ सियासत’ पर सवाल: अनंत सिंह पर हत्या, अपहरण, रंगदारी समेत 28 केस, फिर भी मोकामा से उम्मीदवार
बिहार की राजनीति में अपराध और सत्ता का रिश्ता नया नहीं है, लेकिन जनता दल (यूनाइटेड), यानी जेडीयू, का हालिया कदम इस रिश्ते को एक बार फिर सवालों के कटघरे में खड़ा कर देता है।
मोकामा से बाहुबली नेता अनंत सिंह को टिकट देकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी ने यह संदेश दिया है कि “सत्ता की राह सुशासन से नहीं, ताकत के जोर से चल रही है।”
28 मुकदमों का बोझ, फिर भी टिकट
‘छोटे सरकार’ के नाम से विख्यात अनंत सिंह पर कुल 28 आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, रंगदारी, अवैध हथियार, पुलिस बल पर हमला और आचार संहिता उल्लंघन जैसे गंभीर आरोप शामिल हैं।
यह सिर्फ आंकड़े नहीं हैं, बल्कि उस राजनीतिक विडंबना का प्रतीक हैं जहाँ अपराध के बोझ तले दबे नेता भी चुनावी टिकट पाने के लिए कतार में सबसे आगे खड़े मिलते हैं।
उन पर दर्ज प्रमुख धाराएँ हैं—
धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 364 (अपहरण), 384-506 (रंगदारी व धमकी), 353 (पुलिस बल में बाधा), आर्म्स एक्ट (अवैध हथियार), और धारा 188-147 (सार्वजनिक शांति भंग व आचार संहिता उल्लंघन)।
दुलारचंद यादव हत्याकांड: अपराध और राजनीति की साझी परछाई
मोकामा के तातार गांव में हुई दुलारचंद यादव की हत्या इस पूरे मामले का सबसे ताज़ा और गंभीर अध्याय है।
आरोप है कि चुनाव प्रचार के दौरान अनंत सिंह और उनके समर्थकों ने गोली चलाई और बाद में गाड़ी से कुचलकर दुलारचंद की हत्या कर दी।
इस सनसनीखेज वारदात के बाद चुनाव आयोग के आदेश पर सीआईडी ने अनंत सिंह को गिरफ्तार किया।
हालांकि, गिरफ्तारी के बावजूद जेडीयू ने उनका टिकट वापस नहीं लिया।
पार्टी का यह रवैया बताता है कि बिहार की राजनीति में “वोट जीतने की गारंटी, सुशासन की शपथ से ज्यादा अहमियत रखती है।”
संपत्ति और शक्ति, छोटे सरकार का साम्राज्य
चुनाव आयोग को दिए गए हलफनामे के मुताबिक, अनंत सिंह की घोषित संपत्ति करीब 38 से 100 करोड़ रुपये के बीच है।
उनके पास लैंड क्रूजर, महंगी एसयूवी, हाथी-घोड़े और कई एकड़ में फैले फार्महाउस हैं।
राजनीति में उनके प्रभाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मोकामा और आसपास के इलाकों में “छोटे सरकार” का नाम आज भी कानून से ज्यादा असरदार माना जाता है।
जेडीयू का यह फैसला दरअसल बिहार की उस राजनीति की झलक है जहाँ सिद्धांत और सियासत का रिश्ता अब सिर्फ भाषणों तक सीमित रह गया है।
पार्टी खुले तौर पर भले ही सुशासन और कानून की बात करे, लेकिन टिकट बंटवारे में वही पुराना जातीय गणित हावी दिखता है।
अनंत सिंह का मोकामा क्षेत्र में प्रभाव किसी से छिपा नहीं। भूमिहार समुदाय में उनकी पकड़ और स्थानीय डर-प्रभाव को जेडीयू ने “राजनीतिक पूंजी” की तरह इस्तेमाल किया है।
पार्टी जानती है कि चुनाव में यह प्रभाव वोट में तब्दील होगा, चाहे उसके पीछे अपराध का साया ही क्यों न हो।
असल में, यह निर्णय बताता है कि नीतीश कुमार की “साफ सियासत” अब समझौते की राजनीति में बदल चुकी है।
सिद्धांतों की बात करने वाली पार्टी भी अब उन्हीं बाहुबलियों की शरण में है, जिनके खिलाफ उसने कभी “अपराधमुक्त बिहार” का नारा दिया था।
इस पूरे घटनाक्रम ने यह साफ कर दिया है कि बिहार में आज भी “लोकप्रियता” और “सत्ता का गणित” चरित्र और साख से कहीं ज्यादा भारी पड़ते हैं।
और यही राजनीति की सबसे बड़ी विडंबना है, जहां सुशासन का दावा करने वाले खुद ही उसके सबसे बड़े अपवाद बनते जा रहे हैं।
पर सवाल यह भी उठता है क्या सुशासन का मतलब अब सिर्फ सीट जीतने तक सिमट गया है?
सुशासन के दावे पर धब्बा
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लंबे समय से खुद को सुशासन बाबू कहे जाने पर गर्व महसूस करते हैं, लेकिन अनंत सिंह जैसे विवादास्पद चेहरों को टिकट देना उस साख पर सीधा आघात है