‘एक और युद्ध नहीं झेल सकता पाकिस्तान’ – मौलाना फजलुर रहमान
पाकिस्तान की सेना प्रमुख आसिम मुनीर पर मौलाना का प्रहार
- युद्ध की चेतावनी: मौलाना फजलुर रहमान ने पाकिस्तानी सेना को आगाह किया कि देश दूसरा ‘आत्मघाती युद्ध’ नहीं झेल सकता, आर्थिक हालात इसकी इजाजत नहीं देते।
- ऐतिहासिक संदर्भ: उन्होंने 1971 बांग्लादेश और 1999 कारगिल युद्ध को ‘लापरवाही भरे कारनामों’ का उदाहरण बताया, जिससे पाकिस्तान की वैश्विक साख को नुकसान पहुँचा।
- इस्लामिक दृष्टिकोण: मौलाना ने कहा कि इस्लाम किसी मुस्लिम पड़ोसी देश के खिलाफ ‘अनुचित आक्रमण’ की इजाजत नहीं देता, जो अफगानिस्तान के प्रति सेना के रुख पर एक अप्रत्यक्ष हमला था।
समग्र समाचार सेवा
इस्लामाबाद, 01 नवंबर: पाकिस्तान के प्रमुख धर्मगुरु और जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (F) के मुखिया मौलाना फजलुर रहमान ने पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल आसिम मुनीर और सेना की नीतियों पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दी है कि पाकिस्तान अब किसी भी ‘आत्मघाती युद्ध’ का खामियाजा नहीं उठा सकता, खासकर अफगानिस्तान के साथ बढ़ते तनाव के संदर्भ में। मौलाना ने 1971 के बांग्लादेश और 1999 के कारगिल युद्धों का हवाला देते हुए सेना के ‘लापरवाही भरे कारनामों’ की आलोचना की है।
⚔️ ‘आत्मघाती युद्ध’ से बचें, देश की प्राथमिकताएं बदलें
मौलाना फजलुर रहमान, जिन्हें पाकिस्तान की राजनीति में ‘मौलाना डीजल’ के नाम से भी जाना जाता है, ने सेना के उस रवैये की कड़ी निंदा की है जिसके चलते पाकिस्तान और उसके पड़ोसी देश अफगानिस्तान के बीच सीमा पर लगातार तनाव बना हुआ है। हाल ही में दोनों देशों के बीच हुए हवाई हमलों और झड़पों के बाद यह बयान काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
सेना की प्राथमिकताओं पर सवाल
न्यूज रिपोर्टों के अनुसार, मौलाना ने पाकिस्तानी सेना से कहा है कि उसे सीमाओं पर लड़ने या जनता में भय पैदा करने के बजाय, अपनी प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि सेना को ख़ैबर पख्तूनख्वा प्रांत में आतंकवाद, देश के आर्थिक पतन और गवर्नेंस की कमी जैसे गंभीर आंतरिक मुद्दों को दूर करने के लिए काम करना चाहिए। यह बयान पाकिस्तान की कमजोर होती आर्थिक स्थिति और आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों के बीच आया है, जब देश अंतरराष्ट्रीय ऋण पर निर्भर है।
अफगानिस्तान नीति पर धार्मिक हमला
मौलाना फजलुर रहमान ने अफगानिस्तान के प्रति सेना के आक्रामक रुख को न केवल राजनीतिक रूप से आत्मघाती बताया, बल्कि इसे गैर-इस्लामी भी करार दिया। उन्होंने तर्क दिया कि अफगानिस्तान एक मुस्लिम पड़ोसी देश है, और इस्लाम किसी मुस्लिम पड़ोसी के खिलाफ अन्यायपूर्ण हमले की अनुमति नहीं देता। यह धार्मिक बयान सेना पर रणनीतिक दबाव बनाने की एक कोशिश मानी जा रही है, क्योंकि फजलुर रहमान पाकिस्तान के धार्मिक और राजनीतिक हलकों में एक प्रभावशाली व्यक्ति हैं।
आन्तरिक असंतोष और बढ़ता दबाव
मौलाना फजलुर रहमान का यह तीखा बयान पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर के लिए एक बड़ी चुनौती है, जो पहले से ही इमरान खान के समर्थकों और बलूचिस्तान व सिंध के विद्रोहियों के निशाने पर हैं। देश के अंदर से ही सेना की नीतियों पर सवाल उठना यह दर्शाता है कि पाकिस्तानी अवाम और राजनेता अब और अधिक संघर्ष नहीं चाहते। सूत्रों के अनुसार, यह बयान अफगान तालिबान के व्यापक मनोवैज्ञानिक प्रतिरोध का भी हिस्सा माना जा रहा है।
पाकिस्तान की विदेश नीति और सैन्य रणनीति पर आंतरिक विरोध बढ़ने से यह साफ है कि देश एक नाजुक मोड़ पर खड़ा है, जहाँ उसे अपनी विदेश नीति और पड़ोसी देशों के साथ संबंधों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।