मेडिकल आधार पर आसाराम को 6 महीने की अंतरिम जमानत
रेप के दोषी स्वयंभू संत आसाराम को राजस्थान हाईकोर्ट से बड़ी राहत, स्वास्थ्य कारणों के चलते मिली अस्थायी रिहाई।
- राजस्थान हाईकोर्ट ने आसाराम को स्वास्थ्य आधार पर छह महीने की अंतरिम जमानत दी है।
- नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे आसाराम पिछले 12 वर्षों से जेल में बंद हैं।
- कोर्ट ने बढ़ती उम्र और गंभीर बीमारियों (हृदय रोग, प्रोस्टेट) को देखते हुए यह राहत प्रदान की है।
समग्र समाचार सेवा
जोधपुर, 30 अक्टूबर: नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे स्वयंभू संत आसाराम को राजस्थान हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। हाईकोर्ट ने बुधवार को आसाराम को छह महीने की अंतरिम जमानत (Interim Bail) मंजूर कर ली। यह जमानत उन्हें मेडिकल ग्राउंड यानी स्वास्थ्य कारणों के आधार पर दी गई है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजीव प्रकाश शर्मा और न्यायमूर्ति संगीता शर्मा की खंडपीठ ने आसाराम की याचिका पर सुनवाई की। आसाराम की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत ने पैरवी की, जिन्होंने दलील दी कि 84 वर्षीय आसाराम कई गंभीर बीमारियों जैसे हृदय रोग, हाई ब्लड प्रेशर, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ब्लीडिंग और प्रोस्टेट संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं। उनकी दलील थी कि जेल के अंदर उनका समुचित इलाज संभव नहीं है, इसलिए बिना कस्टडी के जमानत मिलने से उन्हें उपचार में राहत मिल सकेगी।
12 साल जेल में, पहले भी मिली थी राहत
आसाराम को अगस्त 2013 में जोधपुर के पास अपने आश्रम में एक नाबालिग लड़की से बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। अप्रैल 2018 में जोधपुर की विशेष अदालत ने उन्हें दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। तब से वह लगातार जोधपुर सेंट्रल जेल में बंद हैं।
यह पहली बार नहीं है जब आसाराम को स्वास्थ्य आधार पर राहत मिली है। इससे पहले, उन्हें इस वर्ष जनवरी में पहली बार अंतरिम जमानत मिली थी, जिसे बाद में बढ़ाया भी गया था, लेकिन 27 अगस्त को हाईकोर्ट की एक अन्य खंडपीठ ने उनकी जमानत अवधि बढ़ाने की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उनकी हालत स्थिर है। इस आदेश के बाद, उन्होंने 30 अगस्त को जेल में वापस आत्मसमर्पण कर दिया था। जेल लौटने के कुछ दिनों बाद ही उनकी तबीयत फिर बिगड़ने लगी, जिसके कारण उन्हें फिर से जमानत के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा।
पीड़िता पक्ष और सरकार का विरोध
जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान, राजस्थान सरकार की ओर से एडिशनल एडवोकेट जनरल दीपक चौधरी ने और पीड़िता की ओर से एडवोकेट पी.सी. सोलंकी ने जमानत का कड़ा विरोध किया। उन्होंने तर्क दिया कि दोषसिद्ध व्यक्ति को बार-बार राहत देना न्याय के सिद्धांतों के विपरीत है और जेल में भी पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हैं। उन्होंने यह भी कहा कि पहले दी गई अंतरिम जमानत के दौरान भी आसाराम ने कहीं भी नियमित इलाज या फॉलो-अप नहीं कराया।
हालांकि, सभी पक्षों की दलीलें सुनने और आसाराम की बढ़ती उम्र व मौजूदा स्वास्थ्य स्थिति की गंभीरता को देखते हुए, खंडपीठ ने उन्हें छह महीने की अंतरिम जमानत मंजूर करने का फैसला सुनाया। कोर्ट ने जमानत की अवधि के दौरान आसाराम पर लगाई गई कुछ पुरानी शर्तें (जैसे पुलिस सुरक्षा) को हटाने का भी आदेश दिया है। इस फैसले के बाद आसाराम के समर्थकों में खुशी की लहर दौड़ गई है, जबकि पीड़िता पक्ष कानूनी विकल्पों पर विचार कर रहा है।
कानून और स्वास्थ्य का संतुलन
यह मामला एक बार फिर न्यायपालिका के समक्ष अपराधी को सजा और मानवीय आधार पर स्वास्थ्य अधिकार के बीच संतुलन बनाने की चुनौती को सामने लाता है। कोर्ट ने भले ही उन्हें सजा सुनाई हो, लेकिन गंभीर बीमारी की स्थिति में उपचार के लिए अस्थायी रिहाई एक कानूनी प्रावधान है, जिसका इस्तेमाल उनकी उम्र और बिगड़ते स्वास्थ्य को देखते हुए किया गया है। आसाराम को अब अगले छह महीने तक जेल से बाहर रहकर अपना इलाज कराने का मौका मिलेगा।
 
			