महागठबंधन में ‘तेजस्वी प्रण’ पर मंथन: राहुल गांधी की अनुपस्थिति के मायने
'तेजस्वी प्रण' बनाम 'साझा घोषणापत्र': घोषणापत्र का नाम सीधे तौर पर तेजस्वी यादव पर केंद्रित, जो RJD के बढ़ते वर्चस्व को दर्शाता है और गठबंधन की 'साझा' भावना पर सवाल उठाता है।
अशोक कुमार
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की रणभूमि में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेतृत्व वाले महागठबंधन ने अपना बहुप्रतीक्षित घोषणापत्र ‘बिहार का तेजस्वी प्रण’ जारी कर दिया है। यह सिर्फ एक चुनावी वादा नहीं, बल्कि 35 वर्षीय तेजस्वी यादव के बढ़ते राजनीतिक कद और गठबंधन के भीतर उनके निर्विवाद वर्चस्व का स्पष्ट दस्तावेज है। लेकिन इस ‘प्रण’ की लॉन्चिंग से लेकर इसके नामकरण तक, कई ऐसे संकेत मिले हैं, जो विपक्षी महागठबंधन बिहार चुनाव की एकता पर गंभीर सवाल उठाते हैं।
सबसे बड़ा सवाल गठबंधन के प्रमुख सहयोगी दल, कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी की अनुपस्थिति को लेकर उठा है। जिस मंच पर RJD के तेजस्वी यादव, CPI(ML) के दीपांकर भट्टाचार्य और कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा जैसे नेता मौजूद थे, वहां से राहुल गांधी का गायब रहना और घोषणापत्र के कवर पर उनकी तस्वीर का बेहद छोटा होना, एक रणनीतिक कदम से कहीं अधिक राजनीतिक संदेश दे रहा है। क्या यह कांग्रेस की ‘जानबूझकर दूरी’ की रणनीति है, या फिर यह RJD द्वारा कांग्रेस को उसकी ‘जगह’ दिखाने का स्पष्ट संकेत? राजनीतिक गलियारों में इस पर गहन मंथन जारी है।
राहुल गांधी की गैर-मौजूदगी: सिर्फ रणनीति या मनमुटाव?
राहुल गांधी का घोषणापत्र लॉन्च जैसे महत्वपूर्ण इवेंट से दूर रहना एक साधारण अनुपस्थिति नहीं है। यह महागठबंधन के भीतर चल रही खींचतान और पावर डायनेमिक्स को उजागर करता है।
RJD का बढ़ता दबदबा:
घोषणापत्र का नाम ‘बिहार का तेजस्वी प्रण’ रखना ही RJD के प्रभुत्व को प्रमाणित करता है। 2020 के चुनाव में, गठबंधन ने अपने घोषणापत्र का नाम ‘प्रण हमारा’ रखा था, जो साझा नेतृत्व की भावना को दर्शाता था। लेकिन इस बार, नाम सीधे तौर पर तेजस्वी यादव से जुड़ा है। राजनीतिक विश्लेषक इसे कांग्रेस और अन्य छोटे सहयोगियों की मजबूरी के रूप में देखते हैं, जिन्होंने अंततः तेजस्वी को ‘वन मैन शो’ के रूप में स्वीकार कर लिया है। कांग्रेस के कई बड़े नेता, जिनमें बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरू शामिल हैं, लॉन्चिंग से नदारद रहे। मंच पर पवन खेड़ा की उपस्थिति एक सांकेतिक उपस्थिति से अधिक कुछ नहीं थी, जिसने कांग्रेस की बेरुखी या मनमसोसकर शामिल होने की भावना को दर्शाया।
कांग्रेस की चुप्पी:
कांग्रेस सूत्रों ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि राहुल गांधी की अनुपस्थिति एक रणनीतिक दूरी का हिस्सा है। कांग्रेस का मानना है कि बिहार चुनाव में स्थानीय मुद्दों और नेतृत्व पर ध्यान केंद्रित करना अधिक फलदायी होगा, जहां तेजस्वी यादव पहले से ही मुख्यमंत्री पद का चेहरा हैं। इसके अलावा, हाल ही में टिकट बंटवारे को लेकर RJD और कांग्रेस के बीच काफी खींचतान हुई थी। कुछ विश्लेषकों का यह भी मानना है कि राहुल की दूरी इसलिए है ताकि वे अपनी पार्टी के खराब स्ट्राइक रेट के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार न ठहराए जाएं, जैसा कि 2020 के चुनाव में हुआ था।
BJP का हमला:
भाजपा ने इस मौके को तुरंत भुनाया। भाजपा प्रवक्ता ने तंज कसते हुए कहा कि “कांग्रेस का सम्मान चोरी हो गया” और क्या तेजस्वी ने कांग्रेस को उसकी ‘औकात’ दिखा दी है। चुनाव के बीच गठबंधन के सबसे बड़े नेता का पोस्टर से गायब होना और लॉन्च इवेंट से नदारद रहना, NDA को विपक्ष की एकता पर सवाल उठाने का एक सुनहरा मौका देता है।
‘तेजस्वी प्रण’ के महा-वादे और उनका विश्लेषण
‘बिहार का तेजस्वी प्रण’ मुख्य रूप से युवा, महिला, किसान और वंचित वर्ग पर केंद्रित 25 सूत्रीय संकल्प है। इसके कुछ सबसे बड़े वादे बिहार की चुनावी राजनीति की दिशा बदल सकते हैं:
हर परिवार में एक सरकारी नौकरी
यह सबसे बड़ा चुनावी दांव है। 20 दिन में कानून और 20 महीने में प्रक्रिया शुरू करने का वादा युवाओं को सीधे अपील करता है। हालांकि, इतने बड़े पैमाने पर नौकरियों के लिए धन और प्रशासनिक ढांचा जुटाना एक बड़ी चुनौती है, जिस पर तेजस्वी ने केवल ‘ब्लूप्रिंट जल्द जारी करने’ का आश्वासन दिया है।
महिलाओं को ₹2,500 मासिक सहायता
‘माई-बहिन मान योजना’ के तहत यह वादा महिला मतदाताओं को साधने का प्रयास है। बिहार में महिला मतदाताओं का मतदान प्रतिशत हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है। यह वित्तीय सहायता महिलाओं के सशक्तिकरण के साथ-साथ महंगाई के मुद्दे पर भी राहत देने की कोशिश है।
पुरानी पेंशन योजना (OPS) की वापसी
सरकारी कर्मचारियों के एक बड़े वर्ग को आकर्षित करने का सीधा प्रयास। कई राज्यों में OPS की वापसी एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन चुका है।
200 यूनिट मुफ्त बिजली
आम जनता को राहत देने वाला लोकलुभावन वादा, जिसका उद्देश्य आम आदमी पार्टी की रणनीति का अनुसरण करना भी हो सकता है।
शराबबंदी कानून की समीक्षा घोषणापत्र में शराबबंदी कानून की समीक्षा और ताड़ी-महुआ आधारित पारंपरिक रोजगार को मुक्त करने का वादा पासी (दलित) समुदाय को साधने का प्रयास है, जो इस कानून से सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं। यह कदम एक बड़े वोट बैंक को आकर्षित कर सकता है।
वादा बनाम वास्तविकता का द्वंद्व
तेजस्वी ने घोषणापत्र को ‘व्यावहारिक और लागू करने योग्य’ बताया है, लेकिन ‘हर परिवार को एक सरकारी नौकरी’ का वादा आर्थिक व्यवहार्यता के प्रश्नचिह्न लगाता है। आलोचकों का कहना है कि यह एक ‘खोखले दावों का पुलिंदा’ है। तेजस्वी को अब जल्द ही अपने इस रोजगार गारंटी वाले प्रण का विस्तृत खाका (ब्लूप्रिंट) जनता के सामने रखना होगा, अन्यथा यह विपक्ष के लिए सबसे बड़ा हथियार बन जाएगा।
‘एकला चलो’ का प्रभाव और गठबंधन का भविष्य
‘बिहार का तेजस्वी प्रण’ स्पष्ट करता है कि तेजस्वी यादव अब अपने पिता लालू प्रसाद यादव की परछाई से बाहर निकलकर, गठबंधन के निर्विवाद ‘कप्तान’ बन गए हैं।
RJD का आत्मविश्वास: घोषणापत्र पर RJD का स्पष्ट छाप और तेजस्वी का मुखर नेतृत्व दिखाता है कि पार्टी ‘माई‘ (मुस्लिम-यादव) समीकरण से आगे बढ़कर युवा और महिला (MY+All) समीकरण पर दांव लगा रही है।
कांग्रेस का कमजोर होना: कांग्रेस, जिसने 2020 में खराब प्रदर्शन किया था, इस बार भी RJD के सामने झुकती नजर आ रही है। राहुल गांधी की अनुपस्थिति ने गठबंधन में कांग्रेस की घटती हुई मोलभाव की शक्ति को सबके सामने ला दिया है।
एकजुटता की चुनौती: चुनाव से ठीक पहले गठबंधन के भीतर पोस्टर विवाद, सीटों पर दोस्ताना मुकाबला और राहुल गांधी की अनुपस्थिति जैसी घटनाएं महागठबंधन बिहार चुनाव की एकजुटता की धारणा को कमजोर करती हैं।
यह चुनाव केवल नीतीश बनाम तेजस्वी नहीं है, बल्कि यह गठबंधन की राजनीति में शक्ति संतुलन, वादों की विश्वसनीयता और युवा नेतृत्व की अग्निपरीक्षा है। ‘तेजस्वी प्रण’ ने बिहार की राजनीतिक चर्चा को बेरोजगारी और पलायन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर केंद्रित कर दिया है, लेकिन राहुल गांधी की अनुपस्थिति ने उस एकता के धागे को कमजोर कर दिया है, जिसकी उम्मीद INDIA गठबंधन से की जाती है।
 
			