‘ब्लडबाथ की धमकी’ पर CEC का सीधा जवाब: बंगाल में SIR होकर रहेगा

मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने TMC के विरोध और धमकियों को किया खारिज; कहा- आयोग अपना संवैधानिक कर्तव्य निभाएगा।

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    • मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने साफ कहा कि पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची का विशेष सघन पुनरीक्षण (SIR) बिना किसी बाधा के पूरा किया जाएगा।
    • TMC नेताओं द्वारा ‘ब्लडबाथ‘ (रक्तपात) की धमकी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के विरोध को CEC ने सिरे से खारिज किया।
    • CEC ने जोर देकर कहा कि राज्य सरकारें संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग को कर्मचारी उपलब्ध कराने और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए बाध्य हैं।

समग्र समाचार सेवा

नई दिल्ली, 29 अक्टूबर: देश के 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) के दूसरे चरण की घोषणा के बाद से ही पश्चिम बंगाल की राजनीति गरमा गई है। राज्य की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस (TMC) और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस प्रक्रिया का पुरजोर विरोध किया है। TMC नेताओं ने यहां तक धमकी दी है कि अगर यह अभ्यास राज्य में किया गया तो ‘ब्लडबाथ‘ (रक्तपात) हो सकता है।

TMC का आरोप है कि केंद्र सरकार और चुनाव आयोग इस प्रक्रिया का उपयोग NRC (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) को पिछले दरवाजे से लागू करने के लिए कर रहे हैं, जिसका उद्देश्य राज्य के कुछ विशेष समुदायों के मतदाताओं का नाम सूची से हटाना है। उनका कहना है कि यह ‘SIR नहीं, बल्कि पिछले दरवाजे से NRC’ है।

CEC ज्ञानेश कुमार का दो टूक जवाब

सोमवार (27 अक्टूबर, 2025) को नई दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान, मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार से पश्चिम बंगाल में TMC के कड़े विरोध और ‘ब्लडबाथ‘ की धमकी के बारे में पूछा गया। CEC का जवाब बिल्कुल स्पष्ट और दो टूक था।

ज्ञानेश कुमार ने कहा, “कोई गतिरोध नहीं है।” उन्होंने स्पष्ट किया कि चुनाव आयोग अपना संवैधानिक कर्तव्य निभा रहा है और संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत, सभी राज्य सरकारें मतदाता सूची तैयार करने और चुनाव कराने के लिए आयोग को आवश्यक कर्मी (Personnel) उपलब्ध कराने के लिए संवैधानिक रूप से बाध्य हैं।

CEC ने आगे कहा, “कानून और व्यवस्था बनाए रखना राज्य की संवैधानिक जिम्मेदारी है। सभी संवैधानिक निकाय संविधान में निहित अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हैं।” उन्होंने दृढ़ता से यह संदेश दिया कि राजनीतिक विरोध के बावजूद, मतदाता सूची को शुद्ध करने का यह राष्ट्रीय स्तर का अभ्यास पश्चिम बंगाल में भी निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार आगे बढ़ेगा।

क्यों हो रहा है SIR? आयोग ने बताए 4 कारण

CEC ज्ञानेश कुमार ने SIR की आवश्यकता पर बल देते हुए इसके चार मुख्य कारण बताए:

प्रवासन (Migration): बड़ी संख्या में लोगों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना।

दोहरी/एकाधिक प्रविष्टि: प्रवासन के कारण मतदाताओं का नाम पुरानी और नई दोनों जगहों पर पंजीकृत हो जाना।

मृतकों का नाम न हटना: मतदाता की मृत्यु के बावजूद उसका नाम सूची में बना रहना।

विदेशी नागरिकों का नाम: गलती से किसी भी विदेशी नागरिक का नाम मतदाता सूची में शामिल हो जाना।

आयोग ने बताया कि यह राष्ट्रीय स्तर पर SIR आठवीं बार हो रहा है, लेकिन पिछली बार यह 2002 से 2004 के बीच हुआ था। इस लंबे अंतराल और मतदाता सूचियों में बड़े बदलावों को देखते हुए, यह पुनरीक्षण अत्यंत आवश्यक है ताकि कोई भी योग्य मतदाता छूटे नहीं और कोई भी अयोग्य व्यक्ति शामिल न हो।

असम को क्यों मिली छूट?

SIR के इस चरण से असम को बाहर रखा गया है। CEC ने स्पष्ट किया कि भारतीय नागरिकता कानून में असम के लिए अलग प्रावधान (धारा 6A) हैं और वहां नागरिकता की जांच (NRC) सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में लगभग पूरी होने वाली है। इसलिए, असम के लिए मतदाता सूची के संशोधन के लिए अलग से आदेश जारी किए जाएंगे।

CEC के इस स्पष्टीकरण और TMC की धमकियों को खारिज करने के बाद, अब सबकी निगाहें पश्चिम बंगाल सरकार के अगले कदम पर टिकी हैं, जहां 4 नवंबर से घर-घर जाकर SIR की प्रक्रिया शुरू होनी है।

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