बिहार में फिर लौटा वादों का मौसम, पर विकास की फाइल अब भी धूल में दबा है

फिर वही चुनावी मौसम, फिर वही वादों की बरसात, लेकिन बिहार के लोगों को अब घोषणाएं नहीं, नतीजे चाहिए।

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  • महागठबंधन का नया नारा, ‘संपूर्ण बिहार, संपूर्ण परिवर्तन’, पर क्या वाकई कुछ बदलेगा?
  • हर परिवार में एक नौकरी, 25 लाख तक मुफ्त बीमा, 500 रुपये में सिलेंडर, वादे बड़े हैं, पर भरोसा कम।
  • कांग्रेस के पुराने चुनावी दांवों की झलक ‘तेजस्वी प्रण’ में भी।
  • 1990-2005 के लालू-राबड़ी शासन में हुए वादों का क्या हुआ,कोई रिपोर्ट कार्ड नहीं।

प्रतिज्ञा राय
नई दिल्ली, 29 अक्टूबर: बिहार चुनाव 2025 के लिए विपक्षी महागठबंधन ने अपना नया घोषणा पत्र ‘तेजस्वी प्रण’ जारी किया है। नारा दिया गया है, “संपूर्ण बिहार के संपूर्ण परिवर्तन के लिए”।
वादों की भरमार है, हर परिवार में एक सरकारी नौकरी, 8वीं से 12वीं तक के छात्रों को टैबलेट, महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा, 500 रुपये में गैस सिलेंडर और 25 लाख रुपये तक का मुफ्त स्वास्थ्य बीमा।

लेकिन क्या यह सब संभव है?
और क्या बिहार के लोगों ने पहले भी ऐसे ही वादे नहीं सुने?

वादों की राजनीति का पुराना पैटर्न

साल 1990 से 2005 तक लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी की सरकार ने भी शिक्षा, रोजगार, महिला सुरक्षा और विकास के कई वादे किए थे।
उन वर्षों के घोषणापत्रों में “गांव में रोजगार”, “हर घर में बिजली”, “सड़क और शिक्षा सुधार” जैसे नारे थे।
मगर हकीकत यह रही कि बिहार उस दौर में देश के सबसे पिछड़े राज्यों में गिना गया।
रोजगार दर गिरी, शिक्षा व्यवस्था बदहाल हुई, और उद्योग लगभग खत्म हो गए।

ऐसे में अब वही परिवार जब फिर से वादे कर रहा है, तो जनता के मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है,
क्या ‘तेजस्वी प्रण’ पुराने अधूरे वादों की नई पैकिंग भर है?

वादे बहुत, भरोसा कम

रोजगार का वादा:
पिछली बार महागठबंधन ने 10 लाख नौकरियां देने की बात कही थी। इस बार हर परिवार से एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की घोषणा है।
लेकिन यह कैसे संभव होगा, जब राज्य की वित्तीय स्थिति पहले से दबाव में है?
सरकारें केवल वादे नहीं, बजट और रोडमैप से चलती हैं, जो फिलहाल ‘तेजस्वी प्रण’ में साफ नहीं दिखता।

महिलाओं को मुफ्त यात्रा:
‘सीएम दीदी’ को राज्य कर्मचारी का दर्जा और महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा अच्छी पहल हो सकती है,
पर 2005 से पहले जब महिलाएं घर से निकलने में भी डरती थीं, तो उस दौर में क्या बदलाव हुए थे, यह भी याद रखना चाहिए।

स्वास्थ्य और शिक्षा:
‘तेजस्वी प्रण’ में शिक्षा और स्वास्थ्य को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है,हर गरीब छात्र को टैबलेट और 25 लाख रुपये तक का मुफ्त स्वास्थ्य बीमा देने का वादा किया गया है।

दरअसल, पिछले पंद्रह वर्षों में बिहार में इन दोनों क्षेत्रों में उल्लेखनीय सुधार हुए हैं। राज्य के शिक्षा तंत्र में विद्यालयों की संख्या बढ़ी, शिक्षक भर्ती की प्रक्रिया नियमित हुई और छात्राओं की स्कूल में उपस्थिति में बड़ा इज़ाफ़ा देखने को मिला। स्वास्थ्य सेवाओं में भी जिला अस्पतालों से लेकर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तक ढांचे को मज़बूती मिली,मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य के क्षेत्र में बिहार ने कई राष्ट्रीय सूचकांकों में सुधार दर्ज किया।

फिर भी यह भी सच है कि इन क्षेत्रों में गुणवत्ता, संसाधन और पहुँच को लेकर चुनौतियाँ अब भी बनी हुई हैं। ऐसे में जब महागठबंधन अपने घोषणा पत्र में इन्हीं मुद्दों को लेकर नए वादे कर रहा है, तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है,क्या यह प्रयास पहले से चल रही योजनाओं को आगे बढ़ाने का है, या केवल राजनीतिक पुनर्पैकेजिंग भर?

जनता अब जानना चाहती है कि जिन क्षेत्रों में निरंतर प्रगति हो रही है,
वहाँ महागठबंधन का नया मॉडल क्या वास्तविक सुधार लाएगा या केवल नारे बदल देगा।

कांग्रेस की छाप या गठबंधन की पुनरावृत्ति?

घोषणा पत्र में कांग्रेस के वादों की झलक साफ है, मुफ्त यात्रा, परीक्षा शुल्क माफी, सस्ती रसोई गैस, ये वही वादे हैं जो कांग्रेस ने हिमाचल और कर्नाटक में किए और सत्ता में आई। पर सवाल यह है, क्या बिहार की जमीनी हकीकत वैसी है? क्या केवल वादे दोहराने से राज्य का चेहरा बदलेगा?

निष्कर्ष:

‘तेजस्वी प्रण’ में वादे बहुत हैं, जज़्बा भी दिखता है।
लेकिन वादों का मूल्यांकन पुराने अनुभवों से करना चाहिए।
1990 से 2005 तक जिन लोगों ने राज्य की बागडोर संभाली, उन्होंने जो वादे किए थे, उनका हिसाब अब तक अधूरा है।

बिहार की जनता अब आंकड़ों से नहीं, नतीजों से भरोसा चाहती है।

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