60 साल पहले बड़े पर्दे पर छठ पूजा: पहली फिल्म का अनूठा इतिहास
1961 की फिल्म 'भैया' ने बॉलीवुड के बड़े गायकों के साथ छठ गीत को बड़े पर्दे पर उतारा; जानें इस ऐतिहासिक फ़िल्मी अनुष्ठान की पूरी कहानी।
- छठ पूजा का फ़िल्मी आगाज़: 1961 में रिलीज़ हुई फ़िल्म ‘भैया’ पहली ऐसी फिल्म थी जिसमें छठ पूजा को बड़े पर्दे पर दिखाया गया था।
- पहला छठ गीत: इस फिल्म में ‘सूपवे नरियरवे बझलीं मोरी मैया…’ गीत था, जिसे लता मंगेशकर और अन्य बड़े गायकों ने आवाज दी थी।
- पुरुष पात्र का व्रत: इस फिल्म में मुख्य अभिनेता तरुण बोस को छठ का कठिन व्रत-अनुष्ठान करते दिखाया गया था, जो एक दुर्लभ चित्रण था।
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली/पटना, 26 अक्टूबर: बिहार और हिंदी भाषी पट्टी का महापर्व छठ पूजा अपनी आध्यात्मिकता और लोकगीतों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। जहाँ आज हर साल सैकड़ों नए छठ गीत रिलीज़ होते हैं, वहीं कम ही लोग जानते हैं कि छठ पूजा का बड़े पर्दे पर पदार्पण 60 साल से भी पहले हो चुका था। यह ऐतिहासिक क्षण 1961 में आई फ़िल्म ‘भैया’ के साथ साकार हुआ था।
‘भैया’: भोजपुरी सिनेमा के इतिहास में एक मील का पत्थर
फिल्म ‘भैया’ को अक्सर मगही भाषा की पहली साउंड फिल्म के रूप में भी जाना जाता है, हालांकि इसका कथानक और संवाद हिंदी भाषी लोग भी आसानी से समझ सकते थे। तरुण बोस, विजय चौधरी, पद्मा खन्ना जैसे कलाकारों से सजी इस पारिवारिक ड्रामा फिल्म का निर्देशन फणी मजूमदार ने किया था। यह फिल्म उस दौर में क्षेत्रीय सिनेमा के विकास की एक महत्वपूर्ण कड़ी थी।
लता मंगेशकर और रफी ने गाए छठ के बोल
इस फिल्म का सबसे बड़ा आकर्षण इसके गीत थे, जिन्हें बॉलीवुड के दिग्गज गायकों ने अपनी आवाज दी थी। लता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी, उनकी बहनें आशा भोसले और ऊषा मंगेशकर, तथा मन्ना डे जैसे महान गायकों ने ‘भैया’ के लिए पार्श्व गायन किया था।
फिल्म की शुरुआत ही छठ पूजा के एक भावपूर्ण सीक्वेंस से होती है, जिसमें एक अत्यंत मधुर छठ गीत शामिल है। इसके बोल हैं: ‘सूपवे नरियरवे बझलीं मोरी मैया…’। यह गीत छठ की उस पौराणिक कथा पर आधारित है जिसमें यह बताया गया है कि माता सीता ने भी यह व्रत किया था।
परंपरा से हटकर चित्रण
छठ पूजा में आमतौर पर महिलाएं ही व्रत करती हैं, लेकिन ‘भैया’ फिल्म का चित्रण थोड़ा अलग और अनूठा था। इस फिल्म में मुख्य अभिनेता तरुण बोस को छठ का अनुष्ठान करते हुए दिखाया गया था। यह दृश्य उस समय की फिल्मों के लिए एक दुर्लभ और प्रगतिशील कदम था, जिसने समाज में पुरुष और महिला दोनों द्वारा व्रत किए जाने के संदेश को मजबूती से प्रस्तुत किया।
‘भैया’ ने न केवल ‘लगल करेजवा में’ और ‘पूरब पच्छिमवा से अइलें सोन दुलहा’ जैसे हिट गाने दिए, बल्कि छठ पूजा के सीन्स के लिए भी इसे आज भी एक प्रतिष्ठित फिल्म माना जाता है। इस फिल्म के कलाकारों ने बाद के कुछ सालों में भोजपुरी सिनेमा के शुरुआती दौर में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिसने 1963 में ‘गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो’ के साथ अपनी औपचारिक शुरुआत की।
यह फिल्म यह दर्शाती है कि लोकपर्व छठ का सांस्कृतिक महत्व दशकों से भारतीय सिनेमा का एक अभिन्न अंग रहा है और इसने क्षेत्रीय सिनेमा की नींव रखने में एक अमूल्य भूमिका निभाई है।