अफगानिस्तान का पानी पाकिस्तान के लिए संकट: कुनार और काबुल नदी पर तालिबान का बांध योजना

काबुल और कुनार नदी पर बांध से पाकिस्तान की सिंचाई, पीने का पानी और हाइड्रोपावर पर बड़ा असर; सीमा पर बढ़ सकता है राजनीतिक तनाव

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  • तालिबान ने कुनार नदी पर बांध बनाने की घोषणा की, जो पाकिस्तान में सिंचाई और बिजली उत्पादन प्रभावित कर सकता है।
  • काबुल और कुनार नदी पाकिस्तान के कई प्रांतों के लिए पीने के पानी और कृषि का मुख्य स्रोत हैं।
  • पानी रोकने से फसलें बर्बाद, पेयजल संकट और हाइड्रोपावर उत्पादन घट सकता है।
  • एकतरफा जल नीति से अफगानिस्तान-पाकिस्तान संबंधों में और तनाव बढ़ने की संभावना।

समग्र समाचार सेवा

नई दिल्ली,25 अक्टूबर: अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच जल राजनीति अब नए विवाद में बदलती दिख रही है। तालिबान सरकार ने कुनार नदी पर बांध बनाने की योजना की घोषणा की है, जो सीधे पाकिस्तान की सिंचाई और जल विद्युत प्रणाली को प्रभावित कर सकती है।

अफगानिस्तान से बहने वाली प्रमुख नदियां

काबुल नदी: यह नदी अफगानिस्तान के पूर्वी हिस्से से निकलकर पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में प्रवेश करती है और अंततः सिंधु नदी में मिलती है। काबुल नदी पाकिस्तान के कई शहरों के लिए पीने के पानी और खेती दोनों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।

कुनार नदी: काबुल नदी की सहायक नदी कुनार, हिंदू कुश पर्वतों से निकलती है और जलालाबाद से होते हुए पाकिस्तान के चित्राल क्षेत्र में प्रवेश करती है। यह लगभग 480 किलोमीटर की यात्रा करती है और सिंचाई तथा हाइड्रोपावर के लिए अहम है।

गोमल नदी: सिंधु प्रणाली की एक और सहायक नदी, जो दक्षिण-पूर्व अफगानिस्तान से होकर पाकिस्तान में बहती है।

पानी रोकने से पाकिस्तान पर संभावित असर

1. कृषि संकट: पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा जैसी प्रदेशों की खेती काबुल और कुनार नदी पर निर्भर है। पानी रुकने पर फसलें बर्बाद होने का खतरा बढ़ जाएगा।

2. पेयजल संकट: कई शहरों और गांवों में पीने के पानी की कमी हो सकती है, जिससे सूखे जैसी परिस्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं।

3. हाइड्रोपावर उत्पादन प्रभावित: काबुल और कुनार नदी पर निर्भर बिजली उत्पादन घटने से ब्लैकआउट जैसी स्थिति बन सकती है।

4. राजनीतिक तनाव: तालिबान की यह एकतरफा कार्रवाई पाकिस्तान के साथ सीमा और कूटनीतिक रिश्तों में तनाव बढ़ा सकती है।

अफगानिस्तान का यह कदम पाकिस्तान के लिए सिर्फ जल संकट नहीं, बल्कि एक राजनीतिक और आर्थिक चुनौती भी बन सकता है। अगर तालिबान ने बांध परियोजनाओं को लागू किया, तो पाकिस्तान को कृषि, ऊर्जा और जल प्रबंधन में बड़े पैमाने पर कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।

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