अबकी बार मोदी सरकार’ लिखने वाले पियूष पांडेय का निधन, ‘हमारा बजाज’ और ‘ठंडा मतलब कोका कोला’ जैसे विज्ञापन रहे यादगार

ओगिल्वी इंडिया के दिग्गज क्रिएटिव पियूष पांडेय का निधन, जिन्होंने चार दशकों में भारतीय विज्ञापन को नया स्वर दिया।

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  • गुरुवार को पियूष पांडेय का निधन, विज्ञापन जगत में गहरा शोक।
  • उन्होंने विज्ञापन में हिंदी और स्थानीय भावनाओं को प्रमुखता दी।
  • एशियन पेंट्स, कैडबरी और फेविकोल जैसे ब्रांड उनके रचनात्मक दृष्टिकोण का हिस्सा बने।
  • पियूष और उनके भाई प्रसून पांडेय को 2018 में कान्स लायन्स में प्रतिष्ठित “लायन ऑफ सेंट मार्क” पुरस्कार मिला।

समग्र समाचार सेवा
मुंबई, 24 अक्टूबर:
पियूष पांडेय, वह दिग्गज रचनात्मक शक्ति जिन्होंने भारतीय विज्ञापन के स्वर और आत्मा को नया आकार दिया, का गुरुवार को निधन हो गया। उन्हें भारतीय विज्ञापन की आवाज़ और उसकी पहचान बनाने वाले व्यक्ति के रूप में जाना जाता था। पांडेय ने ओगिल्वी इंडिया में चार दशक से अधिक समय तक काम किया, एजेंसी और उनका नाम एक-दूसरे के पर्याय बन गए।

उनके जाने से उस युग का अंत हुआ, जब विज्ञापन केवल ऊंची सोच से नहीं, बल्कि सीधे भारत की धड़कनों से बोलते थे। अपनी गहरी हंसी, पहचान बनाने वाली मूंछ और आम लोगों की जिंदगी से जुड़े कथाओं के प्रति उनकी अंतर्दृष्टि ने भारतीय ब्रांड संचार की भाषा, बनावट और भावनात्मक गहराई को बदल दिया।

लोगों की आवाज़

पांडेय ने 1982 में ओगिल्वी में शामिल होकर अंग्रेज़ी-प्रधान विज्ञापन दुनिया में हिंदी और स्थानीय भाषा की मिठास घोल दी। उनके काम ने एशियन पेंट्स (“हर खुशी में रंग लाए”), कैडबरी (“कुछ खास है”), फेविकोल और हच जैसे ब्रांडों को सांस्कृतिक प्रतीक बना दिया।

उन्होंने विज्ञापन में हिंदी और स्थानीय मुहावरों को मुख्यधारा में लाया, जिनमें हास्य, गर्मजोशी और मानवता झलकती थी। एक सहयोगी ने कहा, “उन्होंने सिर्फ विज्ञापन की भाषा नहीं बदली, उन्होंने उसका व्याकरण बदल दिया।”

उनके नेतृत्व में ओगिल्वी इंडिया विश्व की सबसे पुरस्कार विजेता एजेंसियों में शामिल हुई और कई पीढ़ियों के रचनात्मक नेताओं का प्रशिक्षण स्थल बनी। 2018 में, पांडेय और उनके भाई, फिल्ममेकर प्रसून पांडेय, कान्स लायन्स इंटरनेशनल फेस्टिवल ऑफ क्रिएटिविटी में प्रतिष्ठित “लायन ऑफ सेंट मार्क” पुरस्कार पाने वाले पहले एशियाई बने।

विचारों को सर्वोच्चता

पांडेय का मानना था कि विज्ञापन का काम केवल दिमाग को प्रभावित करना नहीं, बल्कि दिल को छूना है। उन्होंने युवाओं को तकनीक या ट्रेंड के पीछे दौड़ने की बजाय मौलिकता और सच्चाई पर जोर देने की सलाह दी। उन्होंने कहा, “कहीं न कहीं, आपको दिलों को छूना होगा। कोई आपका काम देखकर यह नहीं कहेगा, ‘उन्होंने कैसे किया?’ बल्कि कहेगा, ‘मुझे यह पसंद है।’”

स्थायी विरासत

भारत के विज्ञापन परिदृश्य के बदलने के बावजूद, पांडेय का प्रभाव कायम रहा। उन्होंने भारत के सबसे यादगार राजनीतिक स्लोगन “अबकी बार, मोदी सरकार” बनाने में मदद की, लेकिन उनकी असली विरासत उन रचनाकारों में है, जिन्हें उन्होंने स्थानीय, भावनात्मक और वास्तविकता से प्रेरित होकर कहानियां बनाने की राह दिखाई।

2023 में जब उन्होंने ओगिल्वी इंडिया के कार्यकारी चेयरमैन पद से इस्तीफा देकर सलाहकार भूमिका संभाली, तो यह एक चुपचाप समाप्त होने वाला अध्याय था, जिसे उन्होंने बड़े, जोरदार हिंदी और अपनी मुस्कान के साथ लिखा था। पांडेय अपने परिवार, सहयोगियों और उस कार्य के माध्यम से जिनसे उन्होंने भारतीय विज्ञापन की आत्मा को परिभाषित किया, अमर रहेंगे।

उन्होंने कहा था, “सबसे अच्छे विचार सड़क से, जीवन से, सुनने से आते हैं।” इसी में उन्होंने भारत को केवल बेहतरीन विज्ञापन नहीं दिए, बल्कि एक अलग भाषा और आत्मा दी।

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