प्रतिज्ञा राय
समग्र समाचार सेवा
पटना, 23 अक्टूबर
महागठबंधन की राजनीति या बिहार की विडंबना?
बिहार की राजनीति में महागठबंधन ने आज जो ऐलान किया, उसने प्रदेश के भविष्य पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा और वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाकर विपक्ष ने एक बार फिर 1990 से 2005 तक के काले दौर की याद ताज़ा कर दी है, जब बिहार जंगलराज, भ्रष्टाचार, रंगदारी, अपहरण और अपराध की पहचान के लिए बदनाम था।
आज वही चेहरे और वही सोच फिर से सत्ता का सपना देख रही है। तेजस्वी यादव, जिनकी शिक्षा 9वीं कक्षा में ही रुक गई, खुद को “युवा नेता” और “बदलाव का चेहरा” बताकर जनता को भ्रमित करने की कोशिश कर रहे हैं। सवाल यह है कि क्या बिहार जैसे संवेदनशील और जटिल राज्य के नेतृत्व के लिए सिर्फ भाषण और वादे काफ़ी हैं?
राजद की पुरानी विरासत और आज की सच्चाई
राजद के राज में बिहार ने जो भयावह दौर देखा, उसे आज भी जनता नहीं भूली है। अपहरण उद्योग, रिश्वतखोरी, सरकारी तंत्र की जकड़, जातीय हिंसा, यही थी उस दौर की पहचान। सड़कों पर भय था, विकास ठहर गया था, और व्यवसायी वर्ग राज्य छोड़ने को मजबूर था।
अब महागठबंधन कह रहा है कि वही पार्टी, जिनके शासन ने बिहार का नाम बदनाम किया, अब “विकास” और “सामाजिक न्याय” लाने का दावा कर रही है। विपक्ष जनता से उम्मीद कर रहा है कि लोग भूल जाएँ कि 15 साल की तबाही के बाद एनडीए सरकारों ने ही बिहार को पटरी पर लाने का काम किया, चाहे वो सड़कों का जाल हो, बिजली व्यवस्था हो या कानून-व्यवस्था में सुधार।
बिहार भूल नहीं सकता जंगलराज की वो रातें
जनता को 1990 से 2005 तक का वो दौर अच्छी तरह याद है, जब बिहार अपराध का पर्याय बन गया था।
जहाँ लूट, बलात्कार, अपहरण और भ्रष्टाचार सामान्य बात थी, आज वही दल खुद को सामाजिक न्याय का ठेकेदार कह रहा है। यह बिहार का अपमान है।
क्या जनता ऐसे नेतृत्व को फिर मौका दे सकती है जो ना प्रशासनिक अनुभव रखता है, ना पड़े हुए काग़ज़ सही पढ़ पाता है?
जिन्हें सरकारी फाइल समझने के लिए अधिकारी की मदद चाहिए, वो बिहार की 12 करोड़ जनता का नेतृत्व करेंगे?
जिनसे बिहार जलाया था, वही अब बुझाने निकले हैं!
ये वही लोग हैं, जिनसे बिहार के कभी सड़कों पर खून बहता था, अब वही लोग विकास की बात कर रहे हैं,
महागठबंधन का यह एकजुट मंच “जनता का नहीं, अपना भविष्य बचाने का मंच है। तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करना यह साबित करता है कि विपक्ष के पास कोई अनुभवी, योग्य और दूरदर्शी नेता नहीं है।
महागठबंधन नहीं, मजबूरी का मिलन है
यह दलों का समूह नहीं, बल्कि अवसरवाद की राजनीति का मेल है।
“कांग्रेस डूबते जहाज को पकड़कर तैरने की कोशिश कर रही है, वामपंथी विचार जनता के मन से मिट चुके हैं, और वीआईपी पार्टी सिर्फ टिकट की गिनती में जुटी है।”आज एक मंच साझा कर रहे हैं, वे चुनावी नतीजे आने के बाद सबसे पहले एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ेंगे।
“ये गठबंधन है सत्ता की भूख का, जनसेवा की भावना का नहीं