गठबंधन बेमानी: 121 में से 30 सीटों पर ‘आपसी टकराव’ से NDA उत्साहित

सीट बंटवारे की जंग ने गठबंधन की एकता पर उठाए सवाल; 'दोस्ताना संघर्ष' से भाजपा को बढ़त

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  • 30 सीटों पर संघर्ष: गठबंधन के भीतर 121 घोषित सीटों में से लगभग 30 सीटों पर सहयोगी दलों (जैसे राजद, कांग्रेस और वामपंथी दल) के उम्मीदवार आमने-सामने हैं।
  • गठबंधन बेमानी: यह आपसी टकराव गठबंधन की साझा लड़ाई की मंशा पर गंभीर सवाल खड़े करता है, जिससे सीटों के ‘दोस्ताना संघर्ष’ का तर्क भी बेमानी होता दिख रहा है।
  • NDA को बढ़त: सीटों पर इस अव्यवस्था और विद्रोह की स्थिति ने NDA को मनोवैज्ञानिक बढ़त दे दी है, जिससे वह अपनी एकता को मजबूती से प्रदर्शित कर रहा है।

समग्र समाचार सेवा
पटना, 21 अक्टूबर: आगामी चुनावों से पहले विपक्षी गठबंधन (मान लें ‘गठबंधन’ यहाँ ‘महागठबंधन’ या ‘इंडिया ब्लॉक’ को संदर्भित करता है) में सीट बंटवारे को लेकर चल रही खींचतान अब खुलकर सामने आ गई है। मिली जानकारी के अनुसार, गठबंधन द्वारा घोषित कुल 121 उम्मीदवारों में से करीब 30 विधानसभा सीटों पर गठबंधन के ही सहयोगी दलों के उम्मीदवार एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोक रहे हैं। इस आंतरिक टकराव को लेकर सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में खुशी का माहौल है, जो इसे विपक्षी खेमे की बेमानी एकता और प्रबंधन में कमी के तौर पर पेश कर रहा है।

क्यों है 30 सीटों पर आपसी टकराव?

यह ‘आपसी टकराव’ मुख्य रूप से गठबंधन के बड़े दलों, जैसे राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस, के साथ-साथ वामपंथी दलों (CPI, CPI-M, CPI-ML) के बीच देखने को मिल रहा है। कई सीटों पर अंतिम समय तक सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय न हो पाने के कारण, सहयोगी दलों ने अपने प्रभाव वाली सीटों पर अपने-अपने उम्मीदवार उतार दिए। हालांकि, कुछ नेता इसे ‘फ्रेंडली फाइट’ या ‘दोस्ताना मुकाबला’ बता रहे हैं और अंतिम समय में नाम वापसी की उम्मीद जता रहे थे, लेकिन नामांकन की समय सीमा बीत जाने के बाद भी एक बड़ी संख्या में उम्मीदवार मैदान में डटे हुए हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह स्थिति न केवल गठबंधन के वोटों को बांटेगी, बल्कि मतदाताओं के बीच भ्रम भी पैदा करेगी। जिन सीटों पर गठबंधन ने पिछली बार कड़ी टक्कर दी थी या मामूली अंतर से जीत दर्ज की थी, वहाँ यह आपसी प्रतिस्पर्धा NDA के उम्मीदवारों को सीधे तौर पर फायदा पहुँचा सकती है।

NDA खेमे में उत्सव का माहौल

विपक्षी गठबंधन की इस आंतरिक कलह ने NDA के नेताओं को हमलावर होने का मौका दे दिया है। NDA के वरिष्ठ नेताओं ने तंज कसते हुए कहा है कि जिस गठबंधन में चुनाव से पहले ही इतनी खींचतान है, वह राज्य में स्थिर सरकार कैसे दे सकता है।

नाम न छापने की शर्त पर एक भाजपा नेता ने कहा, “सीट बंटवारे को लेकर हमारे गठबंधन में भी कुछ मुश्किलें थीं, लेकिन हमने उन्हें सौहार्दपूर्ण तरीके से सुलझा लिया। वहीं, विपक्षी खेमे में ‘सिर-फुटौव्वल’ चल रहा है। 30 सीटों पर उनका आपस में लड़ना यह साबित करता है कि उनका उद्देश्य केवल सत्ता पाना है, न कि कोई साझा विचारधारा। जनता यह सब देख रही है।”

NDA अपनी चुनावी रणनीति में इस विपक्षी दरार को भुनाने की पूरी कोशिश कर रहा है। NDA के उम्मीदवार अब अपने प्रचार में इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि कैसे उनका गठबंधन एकजुट है, जबकि विपक्षी दल आपस में लड़ रहे हैं।

गठबंधन की सफाई: क्या यह रणनीति है?

इस पूरे घटनाक्रम पर गठबंधन के नेताओं ने सफाई देते हुए कहा है कि यह संवादहीनता नहीं, बल्कि सीटों के विस्तार और अंतिम समय में हुए कुछ फैसलों के कारण हुई एक छोटी-सी चूक है, जिसे ‘नामांकन वापसी’ की अंतिम तिथि से पहले सुलझा लिया जाएगा।

एक कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा, “कुछ सीटों पर हमारे स्थानीय कार्यकर्ताओं का उत्साह अधिक है, जिससे ऐसी स्थिति बनी है। लेकिन शीर्ष नेतृत्व जल्द ही सभी विद्रोही उम्मीदवारों को मना लेगा और केवल आधिकारिक उम्मीदवार ही मैदान में रहेंगे। हमारा गठबंधन मजबूत है और हम एकजुट होकर चुनाव लड़ेंगे। NDA को अपनी चिंता करनी चाहिए।”

हालाँकि, ज़मीनी हकीकत यह है कि इन सीटों पर अब भी मुकाबला कड़ा बना हुआ है, और यदि इन ‘विद्रोही’ उम्मीदवारों ने नाम वापस नहीं लिया, तो गठबंधन के लिए कई महत्वपूर्ण सीटों पर जीत हासिल करना मुश्किल हो जाएगा।

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