पूनम शर्मा
पंजाब नेशनल बैंक (PNB) घोटाले से जुड़े दो चर्चित नाम — मेहुल चौकसी और नीरव मोदी — अब न्यायिक हार के बाद भारत वापसी के दरवाजे पर खड़े हैं। एक ने यूके में केस हारा है, दूसरा कैरेबियन में। यह केवल दो आर्थिक अपराधियों की कहानी नहीं है, बल्कि भारतीय राजनीति, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति, और वित्तीय व्यवस्था में बड़े बदलाव की झलक है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासनकाल में पहली बार इतने बड़े आर्थिक भगोड़ों को कानूनी प्रक्रिया के तहत भारत लाने की जमीन लगभग तैयार हो चुकी है। यह वही नीरव मोदी है जिस पर ₹13,500 करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप है, और वही मेहुल चौकसी जिसने इस गड़बड़ी को अंजाम देने में अहम भूमिका निभाई थी। जब ये दोनों भारत लौटेंगे, तो केवल पैसा ही नहीं, कई राजनीतिक चेहरों से नकाब भी उतर सकता है।
कैसे हुआ इतना बड़ा घोटाला?
2018 में पंजाब नेशनल बैंक घोटाले की खबर सामने आई थी। आरोप था कि नीरव मोदी और मेहुल चौकसी ने फर्जी लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (LoU) के जरिए बैंक से अरबों रुपये निकाले। यह कोई रातोंरात हुआ खेल नहीं था। बैंकिंग सिस्टम में अंदर तक पैठ बना चुके इन लोगों ने योजनाबद्ध तरीके से सिस्टम को धोखा दिया। कई अधिकारियों की मिलीभगत से बैंक की गारंटी पर विदेशी बैंकों से पैसे निकाले गए।
इस घोटाले ने देश की बैंकिंग व्यवस्था को हिला दिया। पीएनबी को 16,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की भरपाई करनी पड़ी। हजारों छोटे निवेशकों का पैसा डूबा। स्टॉक मार्केट में भारी गिरावट आई। और आम करदाताओं पर इस नुकसान की भरपाई का बोझ पड़ा।
8 साल की कानूनी जंग का नतीजा
यह रास्ता आसान नहीं था। मोदी सरकार के आने के बाद भगोड़ों को वापस लाने के लिए इंटरपोल, ब्रिटिश अदालतों, और अंतरराष्ट्रीय संधियों के जरिए लगातार लड़ाई लड़ी गई। नीरव मोदी ने ब्रिटेन में कई बार अपील की। 12 बार से ज्यादा उसने प्रत्यर्पण के खिलाफ कोर्ट में दलीलें दीं—लेकिन आखिरकार हार गया।
चौकसी ने भी खुद को पीड़ित बताने की कोशिश की—यहां तक कि भारत में वापसी पर जान के खतरे तक की दलील दी। लेकिन ब्रिटिश वेस्ट इंडीज की अदालत ने भारत की दलीलों को स्वीकार किया। अब वह भी वापसी के कगार पर है।
मोदी सरकार की रणनीति
मोदी सरकार ने शुरू से स्पष्ट किया था कि जिसने देश का पैसा लूटा है, उसे हर हाल में भारत लाया जाएगा। इन भगोड़ों की अरबों रुपये की संपत्तियों को पहले ही जब्त किया जा चुका है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, सिर्फ नीरव मोदी और चौकसी की अटैच की गई संपत्तियों की कीमत 18,000 करोड़ रुपये से ज्यादा है। यानी जितना घोटाला हुआ, उससे अधिक मूल्य की संपत्तियां भारत वापस ला पाना संभव है।
इसके अलावा, मोदी सरकार ने इंटरनेशनल कोर्ट और ब्रिटिश सरकार के साथ लगातार डिप्लोमैटिक बातचीत जारी रखी। यही वजह है कि भारत की कानूनी स्थिति पहले से कहीं ज्यादा मजबूत बनी।
राजनीतिक हलचल तेज
चौकसी और नीरव मोदी की वापसी सिर्फ कानूनी मामला नहीं है—यह सियासी तूफान भी ला सकती है। क्योंकि इनकी गवाही और जांच में कई बड़े नामों का पर्दाफाश हो सकता है। खासकर कांग्रेस शासनकाल में इनके कथित राजनीतिक रिश्ते और समर्थन पर कई सवाल उठ सकते हैं।
सत्ता पक्ष का मानना है कि इन दोनों के भारत आने से न सिर्फ चोरी हुआ पैसा वापस मिलेगा बल्कि भ्रष्टाचार के पुराने गठजोड़ भी उजागर होंगे। विपक्ष की चिंता यह है कि अगर इन भगोड़ों ने राजनीतिक चेहरों के नाम लिए तो उसका सीधा असर आगामी चुनावों पर पड़ेगा।
आर्थिक असर और जनभावना
2018 का यह घोटाला केवल एक बैंक का मामला नहीं था—इसने पूरे देश की आर्थिक साख को झटका दिया। विदेशी निवेशक सतर्क हो गए, भारतीय बैंकिंग व्यवस्था पर विश्वास कम हुआ और आम नागरिकों में आक्रोश फैला।
अब जब सरकार इन भगोड़ों को वापस ला रही है, तो जनता के बीच एक मैसेज जा रहा है कि “जिसने देश को लूटा है, उसे छोड़ा नहीं जाएगा।” इससे जनभावना में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि मजबूत
भारत ने पहली बार किसी आर्थिक भगोड़े को इतने व्यवस्थित ढंग से कानूनी प्रक्रिया से वापस लाने की स्थिति में खुद को पहुंचाया है। यह मोदी सरकार की “नो कंप्रोमाइज” नीति का हिस्सा है। नीरव मोदी और चौकसी की वापसी से दुनिया को यह संकेत भी जाएगा कि भारत अपने वित्तीय अपराधों को गंभीरता से लेता है और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी स्थिति मजबूत बना सकता है।
निष्कर्ष
8 साल पुराना यह घोटाला अब अपने निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है। भगोड़ों की वापसी न केवल आर्थिक न्याय की दिशा में बड़ा कदम होगी, बल्कि यह भारत के राजनीतिक इतिहास में भी अहम मोड़ साबित हो सकती है।
मोदी सरकार अब उस वादे को पूरा करने की कगार पर है जो उसने 2014 में किया था — “जो देश का पैसा लूटकर भागा है, उसे वापस लाया जाएगा।”
अब नजरें इस बात पर होंगी कि भारत लौटने के बाद नीरव मोदी और मेहुल चौकसी क्या बताते हैं, किन चेहरों से नकाब उतरता है, और देश की राजनीति में क्या भूचाल आता है। एक बात तय है — यह मामला केवल कोर्ट रूम तक सीमित नहीं रहेगा; इसकी गूंज संसद से लेकर सड़क तक सुनाई देगी।