जदयू टिकट जाति समीकरण: नीतीश का ‘Mandal Plus’ मास्टरस्ट्रोक

बिहार चुनाव: जदयू की 101 सीटों की लिस्ट और सियासी गणित

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!

अशोक कुमार
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मियों के बीच, जनता दल यूनाइटेड (JDU) ने अपने कोटे की 101 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस सूची के माध्यम से एक बार फिर अपनी ‘सोशल इंजीनियरिंग’ की कला का प्रदर्शन किया है। यह लिस्ट केवल उम्मीदवारों के नामों का संकलन नहीं है, बल्कि यह बिहार की जटिल जातीय राजनीति, क्षेत्रीय समीकरणों और भविष्य की चुनावी रणनीति का ब्लूप्रिंट है। इस सूची को गहराई से देखने पर स्पष्ट होता है कि पार्टी ने न केवल अपने पारंपरिक वोट बैंक को मजबूत करने का प्रयास किया है, बल्कि विरोधी खेमे की सेंधमारी को रोकने के लिए भी एक सधी हुई रणनीति अपनाई है

इस विश्लेषण में, हम जदयू की 101 सीटों की लिस्ट में छिपे जातीय और राजनीतिक गुणा-गणित को विस्तार से समझेंगे और जानेंगे कि यह लिस्ट बिहार चुनाव 2025 के नतीजों पर क्या प्रभाव डाल सकती है

पिछड़ों पर सबसे बड़ा दांव: OBC और EBC का वर्चस्व

जदयू की 101 उम्मीदवारों की सूची का सबसे प्रमुख पहलू है पिछड़ा वर्ग (OBC) और अति पिछड़ा वर्ग (EBC) पर पार्टी का अप्रत्याशित विश्वास। आंकड़ों के अनुसार, पार्टी ने कुल 37 टिकट OBC को और 22 टिकट EBC (Extremely Backward Class) को दिए हैं

OBC + EBC = 59/101 टिकट (कुल का लगभग 58%)।

यह आंकड़े दर्शाते हैं कि नीतीश कुमार की राजनीति का मूल आधार अब भी ‘सामाजिक न्याय’ की धुरी पर टिका है। अति पिछड़ा वर्ग (EBC) वह वर्ग है जिसे नीतीश कुमार ने ‘महादलित‘ की तरह ही विशेष पहचान देकर एक मजबूत वोट बैंक के रूप में विकसित किया है। ईबीसी का टिकटों में 22 का हिस्सा देना, इस वर्ग पर उनके भरोसे को मजबूत करता है, जो अक्सर सत्ता की चाबी माना जाता है। वहीं, ओबीसी को 37 टिकट देना आरजेडी (RJD) के ‘माई‘ (मुस्लिम-यादव) समीकरण को चुनौती देने की तैयारी है। नीतीश कुमार ने अपने इस कदम से एक स्पष्ट संदेश दिया है कि पिछड़े और अति पिछड़े समुदाय की सबसे बड़ी हितैषी उनकी पार्टी ही है। यह रणनीति, जिसे राजनीतिक विशेषज्ञ ‘मण्डल प्लस‘ रणनीति भी कहते हैं, जदयू को ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में मजबूत पकड़ बनाने में मदद करती है, जहाँ इन वर्गों का सीधा प्रभाव होता है।

कुशवाहा-कुर्मी समीकरण: लव-कुश की अभेद्य दीवार

जदयू की राजनीति का सबसे मजबूत स्तंभ ‘लव-कुश’ (कुर्मी और कुशवाहा) समीकरण है, और 101 की लिस्ट में इस समीकरण को विशेष महत्व दिया गया है। पार्टी ने इस समीकरण के तहत कुल 25 टिकट दिए हैं

कुशवाहा (Love) को 13 टिकट

कुर्मी (Kush) को 12 टिकट

यह संख्या न केवल पार्टी के पारंपरिक आधार को संतुष्ट करती है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करती है कि जदयू अपने ‘कोर वोट’ पर किसी भी तरह की सेंधमारी को रोके। खासकर जब उपेंद्र कुशवाहा (राष्ट्रीय लोक जनता दल प्रमुख) जैसे नेता इस वर्ग में अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं, तब 13 कुशवाहा उम्मीदवारों को टिकट देकर नीतीश कुमार ने इस समुदाय को सीधे अपने साथ बनाए रखने का प्रयास किया है। कुर्मी, मुख्यमंत्री का अपना समुदाय होने के नाते, हमेशा से जदयू का अटूट समर्थक रहा है। 12 टिकट देकर इस वर्ग के नेताओं को संतुष्ट किया गया है और क्षेत्रीय वर्चस्व को कायम रखने की रणनीति अपनाई गई है। यह 25 सीटों का आवंटन दिखाता है कि लव-कुश समीकरण अब भी जदयू की जीत की गारंटी में सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर है। यह समीकरण न केवल जातीय रूप से बल्कि क्षेत्रीय रूप से भी प्रभावी है, और यह पार्टी को मध्य और उत्तर बिहार के कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में बढ़त दिला सकता है

ओबीसी विस्तार: यादवों को संदेश और छोटे वर्गों को सम्मान

पिछड़ा वर्ग के 37 टिकटों में लव-कुश के अलावा, अन्य महत्वपूर्ण जातियां भी शामिल हैं। सबसे दिलचस्प है यादव जाति को 8 टिकट दिया जाना। यह आंकड़ा आरजेडी के प्रभुत्व वाले यादव वोट बैंक में सेंध लगाने की नीतीश की रणनीति को दर्शाता है। हालांकि 8 टिकट RJD के मुकाबले कम हैं, लेकिन यह उन सीटों पर महत्वपूर्ण हो सकता है जहाँ यादव मतदाता विभाजित हैं या जहाँ एक स्थानीय, मजबूत यादव उम्मीदवार RJD के कोर वोट को तोड़ सकता है।

इसके अलावा, सूची में कई छोटी लेकिन राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण जातियाँ शामिल हैं:

धानुक (Dhanuk): 8 टिकट (EBC/OBC में प्रभावी)

निषाद/मल्लाह (Nishad/Mallaha): 3 टिकट

गंगौता (Gangauta): 2 टिकट

अन्य EBC/OBC जातियां (कामत, चंद्रवंशी, तेली, कलवार, हलवाई, कानू, अग्रहरि, सुढ़ी, गोस्वामी): 2-2 या 1-1 टिकट

यह विस्तारवादी नीति ‘माइक्रो-सोशल इंजीनियरिंग’ का सबसे बेहतरीन उदाहरण है। नीतीश कुमार छोटे-छोटे उप-वर्गों को प्रतिनिधित्व देकर यह संदेश देते हैं कि उनकी पार्टी सामाजिक न्याय की सच्ची प्रतिनिधि है, जहाँ हर समुदाय का सम्मान है। यह रणनीति, जहाँ बड़ी जातियों को संख्या के हिसाब से टिकट मिलता है, वहीं छोटी जातियाँ भी राजनीतिक रूप से सशक्त महसूस करती हैं, जो उन्हें जदयू के पक्ष में एकजुट करता है।

सवर्णों को साधने का संतुलन: अगड़ा वोट का गणित

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में होने के नाते, जदयू के लिए सामान्य श्रेणी (General/Upper Caste) को साधना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। पार्टी ने कुल 22 टिकट सामान्य वर्ग को दिए हैं, जो ओबीसी/ईबीसी के बाद सबसे बड़ी संख्या है। यह टिकट वितरण बेहद संतुलित और राजनीतिक रूप से चतुर है:

राजपूत (Rajput): 10 टिकट

भूमिहार (Bhumihar): 9 टिकट

ब्राह्मण (Brahmin): 2 टिकट

कायस्थ (Kayastha): 1 टिकट

राजपूत और भूमिहार को लगभग बराबर महत्व देना, क्षेत्रीय समीकरणों और गठबंधन की मजबूरी को दर्शाता है। बिहार के कुछ क्षेत्रों (जैसे मगध और अंग प्रदेश) में भूमिहार प्रभावी हैं, जबकि शाहाबाद और अन्य क्षेत्रों में राजपूतों का वर्चस्व है। 19 टिकटों का यह बंटवारा भाजपा (BJP) के पारंपरिक सवर्ण वोट बैंक में अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित करने और गठबंधन की मजबूती बनाए रखने के लिए एक रणनीतिक कदम है। 22 टिकटों का यह कोटा दर्शाता है कि नीतीश कुमार अपने ‘A-to-Z’ (अगड़ा से पिछड़ा) समीकरण को छोड़ने को तैयार नहीं हैं।

दलित और महादलित कार्ड: SC को 15 टिकटों का वितरण

अनुसूचित जाति (SC) कोटे की 15 सीटों पर जदयू ने महादलित समूह पर स्पष्ट फोकस रखा है। यह वितरण अत्यंत सूक्ष्म और लक्षित है:

मुसहर-मांझी (Musahar-Manjhi): 5 टिकट

रविदास (Ravidas): 5 टिकट

पासी (Pasi): 2 टिकट

पासवान, सरदार-बांसफोर, खरवार, धोबी: 1-1 टिकट

नीतीश कुमार की ‘महादलित मिशन’ की शुरुआत से ही मुसहर और रविदास समुदाय उनकी राजनीति का अभिन्न अंग रहे हैं। 5-5 टिकटों का आवंटन इन दोनों समुदायों को सीधे प्रतिनिधित्व देकर उनके भरोसे को कायम रखता है। यह आवंटन, राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के प्रभाव वाले पासवान समुदाय को कम टिकट देकर, दलितों में एक ‘काउंटर-पोलराइजेशन‘ की कोशिश भी करता है। यह रणनीति यह सुनिश्चित करती है कि जदयू को दलित वोटों में एक बड़ा हिस्सा मिले, खासकर उन समुदायों से जिन्हें पहले मुख्यधारा की राजनीति में कम प्रतिनिधित्व मिला था।

अल्पसंख्यक समाज: 4 मुस्लिमों को टिकट देने का संदेश

जदयू ने अल्पसंख्यक (मुस्लिम) समाज से 4 उम्मीदवारों को टिकट दिया है। यह संख्या भले ही कम दिखे, लेकिन इसका राजनीतिक महत्व बहुत अधिक है।

2 उम्मीदवार अति पिछड़ा वर्ग से

2 उम्मीदवार सामान्य श्रेणी से

यह टिकट वितरण तब आया जब पार्टी की पहली लिस्ट में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं था, जिस पर विपक्षी दलों ने आलोचना की थी। 4 टिकट देकर, जदयू ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि वह मुस्लिम समुदाय को पूरी तरह से नहीं छोड़ रही है। यह रणनीति विशेष रूप से सीमांचल और अन्य मुस्लिम बहुल सीटों पर RJD-कांग्रेस गठबंधन के माई समीकरण में सेंध लगाने के लिए बनाई गई है। जमा खान (चैनपुर) और अन्य को टिकट देकर नीतीश ने यह दिखाने की कोशिश की है कि सत्ता में अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व उनकी प्राथमिकता है, और यह संख्या प्रतीकात्मक रूप से मुस्लिम मतदाताओं को जदयू से जोड़ने का काम कर सकती है।

नारी शक्ति’ का दांव: 13 महिला उम्मीदवारों पर भरोसा

कुल 101 उम्मीदवारों में 13 महिलाएं शामिल हैं। यह आंकड़ा बिहार की राजनीति में महिला मतदाताओं के बढ़ते महत्व को दर्शाता है। पिछले कई चुनावों से यह साबित हुआ है कि महिला मतदाता ‘साइलेंट वोटर’ के रूप में उभरकर आई हैं और इनका रुझान अक्सर नीतीश कुमार के पक्ष में रहा है। 13 महिलाओं को टिकट देना, न केवल महिला आरक्षण के प्रति पार्टी की प्रतिबद्धता को दिखाता है, बल्कि उन कल्याणकारी योजनाओं (जैसे साइकिल योजना, पंचायती राज में आरक्षण) के प्रति आभार व्यक्त करने की भी कोशिश है, जिनका लाभ महिलाओं को मिला है। मंत्री लेसी सिंह जैसी कद्दावर महिला नेताओं को बरकरार रखना और नए चेहरों को मौका देना, महिला मतदाताओं को जदयू के साथ मजबूती से जोड़ने का एक सफल राजनीतिक दांव हो सकता है।

प्रमुख उम्मीदवारों का चयन: क्षेत्रीय समीकरणों का ताना-बाना

उम्मीदवारों के चयन में स्थानीय और क्षेत्रीय समीकरणों का भी पूरा ध्यान रखा गया है।

सुमित सिंह (चकाई): निर्दलीय जीतने वाले और बाद में मंत्री बने नेता को टिकट देना यह दिखाता है कि पार्टी मजबूत क्षेत्रीय क्षत्रपों को महत्व देती है, भले ही उनका इतिहास कुछ भी रहा हो।

चेतन आनंद (नबीनगर): बाहुबली नेता आनंद मोहन के बेटे को टिकट देना, यह संकेत देता है कि राजनीतिक मजबूरी में पार्टी कुछ सीटों पर स्थानीय दबदबे और जातिगत समीकरणों को प्राथमिकता दे रही है।

शुभानंद मुकेश (कहलगांव): कांग्रेस के दिग्गज नेता स्वर्गीय सदानंद सिंह के बेटे को उम्मीदवार बनाना, एक मजबूत परिवारिक विरासत और स्थानीय प्रभाव को अपने पाले में खींचने की कोशिश है।

गोपाल मंडल का टिकट कटना: गोपालपुर सीट से मौजूदा विधायक गोपाल मंडल का टिकट काटकर बुलो मंडल को देना, यह दर्शाता है कि पार्टी ने विवादित चेहरों को हटाने और नए, क्लीन इमेज वाले उम्मीदवारों पर दांव लगाने का जोखिम उठाया है। यह फैसला ‘सुशासन’ की छवि को बनाए रखने की एक कोशिश हो सकती है।

निष्कर्ष: सामाजिक इंजीनियरिंग का एक संतुलित खाका

जदयू की 101 उम्मीदवारों की सूची बिहार की जटिल राजनीतिक प्रयोगशाला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। नीतीश कुमार ने एक ही लिस्ट से कई निशाने साधने की कोशिश की है:

कोर वोट बैंक को मजबूत करना: OBC और EBC को सबसे ज्यादा टिकट देकर अपना सामाजिक आधार मजबूत किया गया है।

गठबंधन धर्म निभाना: सवर्णों (राजपूत-भूमिहार) को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देकर NDA में संतुलन कायम रखा गया है।

काउंटर-पॉलिटिक्स: यादव, मुस्लिम और दलितों के टिकटों का रणनीतिक वितरण विपक्षी दलों के जातीय समीकरण को तोड़ने के लिए किया गया है।

प्रगतिशील छवि: महिलाओं और छोटे-छोटे उप-वर्गों को प्रतिनिधित्व देकर सामाजिक न्याय की अपनी छवि को आगे बढ़ाया गया है।

यह लिस्ट स्पष्ट करती है कि नीतीश कुमार बिहार की चुनावी लड़ाई को केवल विकास के मुद्दे पर नहीं, बल्कि ‘सामाजिक न्याय के साथ विकास’ की अपनी पुरानी, आजमाई हुई रणनीति के आधार पर लड़ेंगे। 101 उम्मीदवारों का यह चयन जदयू के लिए एक निर्णायक कदम साबित हो सकता है, जिसकी सफलता या विफलता बिहार चुनाव 2025 का भविष्य तय करेगी।

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.