दिल्ली-NCR में मिली ग्रीन पटाखों की सशर्त अनुमति: सुप्रीम कोर्ट
न्यायालय ने केवल 'ग्रीन पटाखों' की बिक्री और फोड़ने की अनुमति दी; प्रदूषण नियंत्रण के लिए समय सीमा निर्धारित
- सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-NCR क्षेत्र में केवल ग्रीन पटाखों (Green Firecrackers) के उपयोग को शर्तों के साथ मंज़ूरी दी।
- केवल रात 8 बजे से 10 बजे तक दो घंटे के लिए ही पटाखे फोड़ने की अनुमति होगी।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पारंपरिक और उच्च प्रदूषणकारी पटाखों की बिक्री और निर्माण पर पूर्ण प्रतिबंध जारी रहेगा।
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 15 अक्टूबर: उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (Delhi-NCR) में पटाखों की बिक्री और उपयोग से संबंधित अपने पहले के आदेशों में संशोधन करते हुए दिवाली और अन्य त्योहारों के दौरान ग्रीन पटाखों के उपयोग की सशर्त अनुमति दे दी है। न्यायालय ने पर्यावरण और प्रदूषण के स्तर को देखते हुए केवल उन पटाखों के उपयोग की अनुमति दी है, जिन्हें वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) द्वारा विकसित किया गया है और जिनमें कम उत्सर्जन होता है।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह अनुमति केवल लाइसेंस प्राप्त विक्रेताओं को ही ग्रीन पटाखों की बिक्री की अनुमति देती है, जबकि पारंपरिक पटाखों के निर्माण, बिक्री और वितरण पर लगा पूर्ण प्रतिबंध जारी रहेगा। इस फैसले को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण के बढ़ते स्तर और नागरिकों के उत्सव मनाने के अधिकार के बीच संतुलन स्थापित करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
पटाखे फोड़ने के लिए समय सीमा निर्धारित
प्रदूषण नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए, सुप्रीम कोर्ट ने पटाखे फोड़ने के लिए सख्त समय सीमा निर्धारित की है। जारी निर्देशों के अनुसार:
दिवाली और गुरु पर्व जैसे त्योहारों पर केवल रात 8 बजे से 10 बजे तक, यानी अधिकतम दो घंटे के लिए ही ग्रीन पटाखे फोड़ने की अनुमति होगी।
क्रिसमस और नए साल की पूर्व संध्या पर, यह समय सीमा रात 11:55 बजे से 12:30 बजे तक, यानी केवल 35 मिनट की होगी।
ऑनलाइन वेबसाइटों और ई-कॉमर्स पोर्टल्स द्वारा पटाखों की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध जारी रहेगा, ताकि अवैध पटाखों की बिक्री को रोका जा सके।
न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया है कि स्थानीय पुलिस और संबंधित प्राधिकरण यह सुनिश्चित करें कि इन समय सीमाओं का कड़ाई से पालन किया जाए। किसी भी उल्लंघन के मामले में संबंधित क्षेत्र के थाना प्रभारी (SHO) को व्यक्तिगत रूप से जवाबदेह ठहराया जाएगा।
केवल हरित आतिशबाजी ही मान्य
ग्रीन पटाखे, पारंपरिक पटाखों की तुलना में 30% तक कम प्रदूषण फैलाते हैं। इनमें हानिकारक रसायन जैसे बेरियम नाइट्रेट (Barium Nitrate) का उपयोग नहीं किया जाता है, या इसका उपयोग कम मात्रा में किया जाता है। CSIR के अनुसार, इन पटाखों में धूल कणों (particulate matter) का उत्सर्जन कम होता है और ध्वनि प्रदूषण भी नियंत्रित स्तर पर रहता है।
कोर्ट ने अपने आदेश में सरकारों और प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (PCB) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि वे केवल उन्हीं ग्रीन पटाखों की बिक्री की अनुमति दें, जिन पर CSIR-NEERI (राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान) का क्यूआर कोड (QR Code) मुद्रित हो। यह कदम नकली या उच्च प्रदूषणकारी पटाखों की बाज़ार में घुसपैठ को रोकने के लिए उठाया गया है।
पटाखा उद्योग की प्रतिक्रिया और चुनौतियां
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का पटाखा उद्योग ने मिश्रित प्रतिक्रिया के साथ स्वागत किया है। उद्योग के प्रतिनिधियों का कहना है कि सशर्त अनुमति से भले ही कुछ राहत मिली है, लेकिन ग्रीन पटाखों के निर्माण के लिए तकनीकी उन्नयन (technological up-gradation) और बिक्री की सीमित अवधि उनके लिए बड़ी चुनौतियाँ हैं। उन्होंने सरकार से ग्रीन पटाखों के उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल की उपलब्धता सुनिश्चित करने की अपील की है।
दूसरी ओर, पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इस फैसले पर चिंता व्यक्त की है। उनका मानना है कि दिल्ली-NCR में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) अक्सर ‘गंभीर’ श्रेणी में रहता है, ऐसे में किसी भी प्रकार के पटाखों की अनुमति देना स्थिति को और बिगाड़ सकता है। उन्होंने सरकार से इन आदेशों के प्रभावी क्रियान्वयन और उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का आग्रह किया है।
राज्य सरकारों के लिए निर्देश
न्यायालय ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान की राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वे पटाखों के संबंध में जागरूकता अभियान चलाएं। लोगों को ग्रीन पटाखों के उपयोग के बारे में शिक्षित करने और पारंपरिक पटाखों के खतरों के बारे में जागरूक करने पर जोर दिया गया है। इसके अलावा, राज्य सरकारों को ऐसे स्थानों की पहचान करनी होगी जहाँ पटाखों को फोड़ना पूरी तरह से प्रतिबंधित होगा, जैसे कि अस्पतालों, स्कूलों और शांत क्षेत्रों (silent zones) के पास।
कुल मिलाकर, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला नागरिकों को उत्सव मनाने की सीमित छूट प्रदान करता है, लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण की रक्षा करना है। अब यह देखना होगा कि संबंधित प्राधिकरण और नागरिक इस आदेश का कितनी सख्ती से पालन करते हैं।