आरजेडी में अंदरूनी विवाद और महागठबंधन की स्थिति

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पूनम शर्मा
चुनाव 2025 से पहले की चुनौती बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है , लेकिन महागठबंधन के भीतर स्थितियां अपेक्षाकृत तनावपूर्ण नजर आ रही हैं । आरजेडी के अंदर हाल ही में उभरे विवादों ने इस गठबंधन की चुनावी मजबूती पर सवाल खड़े कर दिए हैं । पूर्व विधायक सरोज यादव ने पार्टी नेतृत्व पर गंभीर आरोप लगाए हैं । उनका कहना है कि लगातार कॉल और मैसेज करने के बावजूद पार्टी से कोई जवाब नहीं मिला । इसके चलते सरोज यादव को डर है कि उनका टिकट काटा जा सकता है और किसी बाहरी उम्मीदवार को सीट देने की साजिश चल रही है ।

महागठबंधन के अन्य सहयोगी दलों के भीतर लंबी खींचतान

यदि ऐसा हुआ , तो निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या बढ़ सकती है , जिससे महागठबंधन की चुनावी स्थिति प्रभावित होगी । सरोज यादव की शिकायतें केवल व्यक्तिगत नहीं हैं । उनका यह भी आरोप है कि पार्टी में निर्णय प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है और टिकट बंटवारे में बाहरी दखल हो रहा है । इस विवाद के बीच कार्यकर्ता और स्थानीय नेता नाराज हैं , जिससे पार्टी संगठन कमजोर हो रहा है । पिछले सप्ताह से लगातार बवाल की खबरें आ रही हैं , जो चुनाव से ठीक पहले आरजेडी के लिए अच्छी खबर नहीं हैं । महागठबंधन के अन्य सहयोगी दलों के भीतर भी सीट बंटवारे को लेकर मतभेद स्पष्ट हैं । कांग्रेस और वामपंथी दलों के साथ सीटों के विभाजन को लेकर लंबी खींचतान चल रही है । कांग्रेस अपनी सीटों की संख्या में कमी नहीं चाहती , जबकि आरजेडी और अन्य छोटे दल अधिक सीटों की मांग कर रहे हैं । यह मतभेद केवल चुनावी रणनीति का हिस्सा नहीं है , बल्कि नेतृत्व और संगठनात्मक कमजोरियों को भी उजागर करता है । विश्लेषकों का मानना है कि तेजस्वी यादव की अपनी छवि और नेतृत्व शैली कुछ जातीय और सामाजिक समूहों के बीच पूरी तरह स्वीकार नहीं है । विशेष रूप से यादव और गैर यादव वोटरों में संतुलन बनाए रखना महागठबंधन के लिए चुनौतीपूर्ण बन गया है ।

सीट बँटवारे की गणित

अगर महागठबंधन यह संतुलन बनाए रखने में असफल रहा , तो बीजेपी और एनडीए इसका फायदा उठा सकते हैं । सीट बँटवारे की गणित को देखें तो पिछले चुनावों में आरजेडी और कांग्रेस के बीच 70-70 सीटें बँट  चुकी थीं , लेकिन जीत का अनुपात अपेक्षाकृत कम रहा । इस बार सीटों की माँग  और वितरण के बीच संतुलन बनाने में कठिनाई सामने आ रही है । छोटे सहयोगी दल जैसे उपेंद्र कुशवाहा और जीतल राम माझी के साथ सीटों पर अंतिम समझौता लगभग तय हो चुका है , लेकिन अभी भी कुछ असहमति शेष है । एनडीए के समीकरण भी रोचक हैं । बीजेपी और उसके सहयोगी दलों ने सीटों के बंटवारे में अपेक्षाकृत स्पष्ट रणनीति अपनाई है । एनडीए के भीतर अंतिम निर्णय लगभग तय हो चुका है और गठबंधन में किसी तरह की बड़ी खींचतान नहीं नजर आ रही । इस स्थिति में एनडीए महागठबंधन की आंतरिक विवादों का चुनावी लाभ उठा सकता है ।

संगठनात्मक कमजोरी और नेतृत्व पर प्रश्न उठना महागठबंधन के लिए गंभीर चुनौती है । अगर आरजेडी और अन्य सहयोगी दल समय रहते इन विवादों को नियंत्रित नहीं कर पाए , तो यह केवल पार्टी के भीतर नाराजगी बढ़ाएगा और चुनावी प्रचार-प्रसार पर नकारात्मक असर डालेगा । महागठबंधन को चाहिए कि वह जल्दी से जल्दी टिकटों का अंतिम निर्णय लें और कार्यकर्ताओं को सक्रिय बनाए । हालांकि महागठबंधन की ताकत अभी भी कम नहीं हुई है ।

तेजस्वी यादव और आरजेडी का जनाधार अभी भी मजबूत है । लेकिन संगठन और नेतृत्व में विवाद चुनाव के ठीक पहले अस्थिरता पैदा कर सकते हैं । इस अस्थिरता को देखते हुए विपक्षी दल एनडीए और बीजेपी संभावित लाभ के लिए तैयार हैं । कुल मिलाकर , महागठबंधन के लिए सबसे बड़ी चुनौती केवल बाहरी विरोधियों से नहीं , बल्कि अपनी ही आंतरिक संरचना और नेतृत्व संकट से है । सीट बँटवारे  के मुद्दे , व्यक्तिगत नाराजगी और टिकट वितरण की असमानता महागठबंधन की चुनावी मजबूती पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है । अगर इन समस्याओं को समय रहते हल नहीं किया गया , तो बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महागठबंधन के लिए परिणाम चुनौतीपूर्ण साबित हो सकते हैं । यह चुनाव केवल राजनीतिक दलों के बीच मुकाबला नहीं है , बल्कि संगठनात्मक मजबूती और नेतृत्व क्षमता की परीक्षा भी है । ऐसे समय में महागठबंधन को एकजुट होकर और स्पष्ट रणनीति के साथ आगे बढ़ना होगा । अन्यथा एनडीए और बीजेपी इस आंतरिक विवाद का चुनावी फायदा उठाकर गठबंधन की स्थिति कमजोर कर सकते हैं ।

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