पूनम शर्मा
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए अब चुनावी बिसात लगभग बिछ चुकी है। नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू (JDU) ने भले ही औपचारिक रूप से उम्मीदवारों की सूची जारी नहीं की हो, लेकिन सूत्रों से मिली जानकारी साफ़ संकेत देती है कि पार्टी ने अपने स्तर पर उम्मीदवारों के नाम फाइनल कर लिए हैं। सीएम आवास पर नेताओं को पार्टी सिंबल सौंपा जा चुका है। यानी जेडीयू अब सिर्फ़ औपचारिक ऐलान का इंतज़ार कर रही है।
इस चुनाव में जेडीयू की रणनीति बेहद सटीक और सोची-समझी लग रही है। पार्टी ने न केवल अपने पुराने नेताओं पर भरोसा जताया है, बल्कि सीटों की अदला-बदली और क्षेत्रीय समीकरणों को ध्यान में रखकर टिकट वितरण किया गया है। इसका सीधा संकेत यह है कि नीतीश कुमार इस बार किसी भी गलती की गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहते।
कौन-कौन मैदान में उतरेंगे – संभावित उम्मीदवारों की झलक
भोरे से शिक्षा मंत्री सुनील कुमार
सोनबरसा से मद्यनिषेध मंत्री रत्नेश सदा
राजपुर से पूर्व मंत्री संतोष कुमार निराला
जमालपुर से पूर्व मंत्री शैलेश कुमार
वैशाली से सिद्धार्थ पटेल
झाझा से दामोदर रावत
महनार से प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा (नामांकन कल)
अनंत सिंह को भी पार्टी सिंबल मिला है।
इन नामों से साफ़ झलकता है कि पार्टी ने अनुभवी और ज़मीनी नेताओं पर भरोसा जताया है। मंत्रियों, पूर्व मंत्रियों और मजबूत स्थानीय चेहरों को उतारकर जेडीयू वोट शेयर और सीटों में बढ़त हासिल करना चाहती है।
सीट शेयरिंग और रणनीतिक साझेदारी
इस बार बीजेपी और जेडीयू के बीच सीटों का बंटवारा 101–101 पर तय हुआ है। यानी दोनों सहयोगी दल बराबर की हिस्सेदारी में चुनाव लड़ेंगे। यह नीतीश कुमार की उस रणनीति का हिस्सा है जिसमें वह सहयोगी दलों के साथ तालमेल बनाकर एंटी-इनकंबेंसी (विरोधी लहर) को कमजोर करना चाहते हैं।
गौरतलब है कि 2020 के चुनाव में जेडीयू ने 115 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 43 पर जीत दर्ज की थी। वोट शेयर करीब 15.39% था। वहीं बीजेपी ने 110 सीटों पर चुनाव लड़ा और 74 सीटें जीती थीं। इस बार जेडीयू अपने प्रदर्शन में सुधार के लिए सीटें घटाकर रणनीतिक लड़ाई लड़ना चाहती है।
पुराने चेहरों पर दांव क्यों ?
जेडीयू ने इस बार बहुत अधिक प्रयोग न करते हुए उन चेहरों पर भरोसा किया है जिनका जनाधार मजबूत है। पार्टी को लगता है कि बार-बार उम्मीदवार बदलने से स्थानीय समीकरण बिगड़ते हैं और विपक्ष को बढ़त मिलती है। इसीलिए कई पुराने मंत्रियों और लोकप्रिय विधायकों को दोबारा टिकट मिला है।
अनंत सिंह जैसे विवादित लेकिन प्रभावशाली चेहरे को भी पार्टी सिंबल देना इस बात का संकेत है कि नीतीश कुमार चुनावी गणित में “प्रभावशाली उम्मीदवारों” की अहमियत को अच्छी तरह समझते हैं।
सोनबरसा सीट – एक दिलचस्प उदाहरण
सोनबरसा सीट का मामला इस रणनीति को और साफ करता है। पहले इस सीट के चिराग पासवान के खाते में जाने की चर्चा थी, लेकिन जेडीयू ने रत्नेश सदा को टिकट देकर संकेत दिया है कि वह किसी भी सीट को बिना सोचे नहीं छोड़ने वाली। यह न सिर्फ़ सहयोगियों को संदेश है बल्कि विपक्ष को भी चुनौती।
चुनाव में टाइमलाइन और नतीजे
बिहार की कुल 243 विधानसभा सीटों पर दो चरणों में चुनाव होंगे —
पहला चरण: 6 नवंबर को 121 सीटों पर मतदान
दूसरा चरण: 11 नवंबर को 122 सीटों पर वोटिंग
मतगणना: 14 नवंबर को नतीजे घोषित होंगे।
इस टाइमलाइन से साफ़ है कि नीतीश कुमार ने उम्मीदवारों के चयन में देर न करते हुए जल्द ही प्रचार में ताकत झोंकने का फैसला किया है।
इस बार की लड़ाई — सियासी अस्तित्व की
यह चुनाव सिर्फ़ सरकार बनाने का नहीं बल्कि सियासी अस्तित्व की लड़ाई भी है। एक ओर बीजेपी और जेडीयू मिलकर सत्ता बरकरार रखने की कोशिश में हैं, तो दूसरी ओर महागठबंधन पूरी ताकत से वापसी की कोशिश कर रहा है। ऐसे में टिकट वितरण और उम्मीदवारों का चयन ही असली चुनावी दिशा तय करेगा।
जेडीयू के लिए 2020 के नतीजों में सुधार लाना ज़रूरी है। अगर पार्टी इस बार अच्छा प्रदर्शन नहीं करती तो उसका राजनीतिक वज़न कम हो सकता है। यही कारण है कि नीतीश कुमार ने टिकट वितरण में कोई जल्दबाज़ी नहीं की, बल्कि सीट-दर-सीट गणित बिठाकर नामों को फाइनल किया।
निष्कर्ष — रणनीति साफ़, दांव बड़ा
जेडीयू ने भले ही औपचारिक सूची जारी न की हो, लेकिन मैदान में उतरने वाले चेहरों से साफ़ हो गया है कि पार्टी की चुनावी रणनीति इस बार बेहद केंद्रित और गणनात्मक है। अनुभवी चेहरों पर भरोसा, सीमित सीटों पर सटीक लड़ाई और सहयोगियों के साथ तालमेल — यही नीतीश कुमार की जीत का फॉर्मूला बन सकता है।
अब देखना यह है कि क्या यह रणनीति विपक्ष की चुनौती को रोक पाएगी या फिर इस बार बिहार की सत्ता का समीकरण बदलेगा। लेकिन एक बात तय है — जेडीयू ने चुनावी मोर्चे पर अपनी चाल चल दी है। बाकी खेल अब जनता के हाथ में है ।