छह साल से अटका इस्तीफा, अब कांग्रेस में शामिल हुए पूर्व IAS कन्नन गोपीनाथन

अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले के खिलाफ दिया था इस्तीफा, सरकार ने आज तक नहीं किया स्वीकार

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  • 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के विरोध में इस्तीफा दिया था
  • केंद्र सरकार ने अब तक इस्तीफे को स्वीकृति नहीं दी है
  • सोमवार को कांग्रेस में शामिल हुए, पार्टी नेताओं ने किया स्वागत
  • नियमों के मुताबिक, सेवा में रहते हुए राजनीति में शामिल होना संभव नहीं

समग्र समाचार सेवा

नई दिल्ली | 14 अक्टूबर: पूर्व IAS अधिकारी कन्नन गोपीनाथन एक बार फिर चर्चा में हैं। सोमवार को उन्होंने औपचारिक रूप से कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली। पार्टी मुख्यालय में आयोजित कार्यक्रम में कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल, प्रवक्ता पवन खेड़ा और कई अन्य नेताओं की मौजूदगी में गोपीनाथन ने पार्टी में प्रवेश किया।

गोपीनाथन वही अधिकारी हैं जिन्होंने 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद लगाए गए प्रतिबंधों का विरोध करते हुए इस्तीफा दे दिया था। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि सरकार ने अब तक उस इस्तीफे को स्वीकार नहीं किया है।

डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनेल एंड ट्रेनिंग (DoPT) के पोर्टल पर अब भी उनका दर्जा “सेवारत अधिकारी” के रूप में दिख रहा है। यह रिकॉर्ड 21 नवंबर 2023 को आखिरी बार अपडेट किया गया था। उस समय गोपीनाथन दादरा और नगर हवेली में पावर डेवलपमेंट सेक्रेटरी के पद पर कार्यरत थे।

उन्होंने खुद कहा कि,

“सरकार से मुझे इस्तीफे पर कोई जवाब नहीं मिला। छह साल हो गए हैं, फिर भी स्थिति अस्पष्ट है। मैंने तो नौकरी छोड़ने का निर्णय बहुत पहले ले लिया था।”

कांग्रेस का रुख:
पार्टी में शामिल होते ही कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा,

“कन्नन गोपीनाथन जी उन चंद अधिकारियों में रहे जिन्होंने सत्ता के दबाव में भी अपनी आवाज बुलंद रखी। उन्होंने अनुच्छेद 370, सीएए और वीवीपैट जैसे मुद्दों पर खुलकर अपनी राय दी। आज उनका कांग्रेस परिवार में स्वागत करना गर्व की बात है।”

खेड़ा ने यह भी कहा कि कांग्रेस हर उस व्यक्ति के लिए खुला मंच है जो लोकतंत्र, आज़ादी और न्याय की आवाज़ उठाना चाहता है।

कानूनी पेच:
सेवा नियमों के अनुसार, सेंट्रल सिविल सर्विसेज (रूल 5) में यह स्पष्ट रूप से लिखा है कि कोई भी सरकारी अधिकारी राजनीतिक दल से संबंध नहीं रख सकता और न ही चुनाव में भाग ले सकता है। इसलिए यदि उनका इस्तीफा औपचारिक रूप से स्वीकृत नहीं हुआ है, तो कानूनी स्थिति पर विवाद बना रह सकता है।

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