पूनम शर्मा
भारतीय रिज़र्व बैंक RBI के हालिया बैंकिंग और कैपिटल मार्केट सुधारों पर देशभर में चर्चा हो रही है । एनबीएफसी को राहत और एमएंडए MA फंडिंग की अनुमति जैसे कदमों को सकारात्मक माना जा रहा है , लेकिन प्रोफेसर प्रसन्ना तंत्री ने कई गंभीर खतरों की ओर इशारा किया है । भारतीय स्कूल ऑफ बिजनेस में फाइनेंस के एसोसिएट प्रोफेसर और सेंटर फॉर एनालिटिकल फाइनेंस के कार्यकारी निदेशक के रूप में तंत्री के विचार-
क्रेडिट फ्लो में आसानी—बड़ी तस्वीर
आरबीआई के इस सुधार पैकेज का मूल उद्देश्य क्रेडिट के प्रवाह को आसान बनाना और बैंकों व ग्राहकों के लिए नियमों को सरल करना है । बचत खाताधारकों को भी कुछ सुविधाएं बढ़ाई गई हैं । लेकिन तंत्री का कहना है कि पूंजी बाजार से जुड़े कुछ कदम भविष्य में बड़ा संकट खड़ा कर सकते हैं ।
रेपो रेट पर रोक—
सावधानी भरा कदम आरबीआई ने रेपो रेट 5 परसेंट पर ही बनाए रखा है । तंत्री का कहना है कि आक्रामक कटौती फिलहाल जोखिम भरी हो सकती है क्योंकि खाद्य मुद्रास्फीति अस्थिर है । अभी का ठहराव समझदारी भरा है ताकि नीतिगत असर अर्थव्यवस्था में स्थिरता से पहुँच सके ।
रिस्क-बेस्ड डिपॉज़िट इंश्योरेंस—
संभावनाएँ और खतरे 1962 से चली आ रही एक समान दर वाली बीमा प्रणाली अब जोखिम आधारित हो रही है । तंत्री इस सिद्धांत के समर्थक हैं लेकिन चेतावनी देते हैं कि प्रीमियम दरों में बदलाव से लोग घबरा सकते हैं और बैंक रन जैसी स्थिति बन सकती है । पारदर्शिता अगर अति हो गई तो बैंकिंग सिस्टम की नींव हिल सकती है ।
एनबीएफसी को राहत—
माइक्रोफाइनेंस को बढ़ावा बैंकों के लिए एनबीएफसी को ऋण देना आसान होगा । इससे छोटे दुकानदारों और स्ट्रीट वेंडर्स को लोन उपलब्ध हो सकेगा । तंत्री का कहना है कि माइक्रोफाइनेंस की असली ताकत स्थानीय नेटवर्क और समुदाय की जानकारी है—जो बड़े बैंक नहीं दे सकते । ECL फ्रेमवर्क—फॉर्म बनाम गवर्नेंस की सच्चाई ECL मॉडल Expected Credit Loss को तंत्री तभी कारगर मानते हैं जब बैंक अपने ग्राहकों की समय रहते निगरानी करें । केवल अकाउंटिंग का फॉर्मूला बदलने से कुछ नहीं होगा—गवर्नेंस और ईमानदार प्रबंधन ही असली कुंजी है ।
MA फंडिंग—
कृत्रिम रोक हटाना स्वागतयोग्य बैंकों को अब कॉर्पोरेट अधिग्रहण के लिए लोन देने की अनुमति है । तंत्री के मुताबिक , पूंजीवादी व्यवस्था में अच्छे मैनेजमेंट को कंपनियां संभालने का अवसर मिलना चाहिए । लेकिन चेतावनी भी देते हैं—केवल फंडिंग की अनुमति से MA में बूम नहीं आएगा जब तक रेगुलेटरी बाधाएं दूर नहीं होतीं ।
आईपीओ और शेयर फंडिंग सीमा बढ़ना—
‘आग पर तेल’ आरबीआई ने आईपीओ फंडिंग सीमा 10 लाख से बढ़ाकर 25 लाख और शेयर के खिलाफ लोन सीमा 20 लाख से बढ़ाकर 1 करोड़ कर दी है । तंत्री इसे “आग पर तेल डालने जैसा” कदम बताते हैं । वह कहते हैं—“ड्रीम 11 को बैन कर दिया और आईपीओ में सट्टा लगाने को वैध बना दिया ।” उनकी चेतावनी साफ है—इससे सट्टेबाज़ी बढ़ेगी , बाजार अस्थिर होगा और आम निवेशक फंस सकता है ।
तरलता बनाम बचत—
मूल समस्या तंत्री का सबसे बड़ा तर्क यही है कि आरबीआई की कई नीतियां बचत की वास्तविक समस्या को हल नहीं करतीं । “लिक्विडिटी बढ़ाने से सेविंग्स नहीं बढ़तीं । निवेश के लिए असली पूंजी चाहिए , सिर्फ पैसे का प्रवाह नहीं ।” भारत के निर्माण क्षेत्र में पूंजी निवेश के लिए बचत दर में भारी बढ़ोतरी की जरूरत है—जो अभी नीति विमर्श में गायब है ।
सट्टेबाज़ी और सामाजिक प्रभाव—
एक अनदेखा खतरा लोग जब सट्टे में पैसा गंवाते हैं तो वे अपनी स्वास्थ्य और बच्चों की शिक्षा जैसी प्राथमिकताओं में कटौती करते हैं । इसीलिए तंत्री का मानना है कि सट्टा प्रोत्साहित करने वाली नीतियां केवल आर्थिक ही नहीं , सामाजिक नुकसान भी करती हैं । 🧭 निष्कर्ष सुधार अच्छे हैं , लेकिन संतुलन ज़रूरी है एनबीएफसी फंडिंग में आसानी और MA में बाधा हटाना सकारात्मक कदम हैं । लेकिन पूंजी बाजार में सट्टेबाज़ी बढ़ाने वाले कदम बड़े संकट को जन्म दे सकते हैं ।
तंत्री का साफ संदेश है—
“निवेश दर तरलता से नहीं , उत्पादकता और बचत से बढ़ती है ।” नीतियों का असर सिर्फ कागज पर नहीं , धरातल पर उनकी व्यावहारिकता और सामाजिक परिणामों से तय होगा । आरबीआई के इन सुधारों को संतुलित और जिम्मेदार क्रियान्वयन की आवश्यकता है ।
(आभार : स्वराज्य )