अवैध घुसपैठ से बदला जनसांख्यिकीय संतुलन: गृह मंत्री अमित शाह
नरेन्द्र मोहन स्मृति व्याख्यान में शाह ने पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों की घटती संख्या और भारत पर घुसपैठ के असर पर ज़ोर दिया।
- गृह मंत्री अमित शाह ने दैनिक जागरण के ‘नरेन्द्र मोहन स्मृति व्याख्यान’ में कहा कि अवैध घुसपैठ के कारण भारत में जनसांख्यिकीय संतुलन प्रभावित हुआ है।
- उन्होंने पड़ोसी देशों (पाकिस्तान और बांग्लादेश) में हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की संख्या में आजादी के बाद आई भारी गिरावट के आंकड़े प्रस्तुत किए।
- शाह ने कहा कि भारत में मुस्लिम आबादी की वृद्धि दर, स्वाभाविक वृद्धि के साथ-साथ, अवैध घुसपैठ के कारण भी बढ़ी है, जिसका असर सीमावर्ती राज्यों में स्पष्ट दिखता है।
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 10 अक्टूबर: दैनिक जागरण समूह द्वारा आयोजित “नरेन्द्र मोहन स्मृति व्याख्यान” में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने देश की आंतरिक सुरक्षा और जनसांख्यिकीय संरचना से जुड़े एक अत्यंत संवेदनशील मुद्दे पर बेबाक राय रखी। नई दिल्ली में 10 अक्टूबर, 2025 को दिए गए अपने भाषण में, उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि आजादी के बाद से पड़ोसी देशों में हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की संख्या में तेज़ गिरावट आई है, जबकि भारत में जनसंख्या संतुलन पर अवैध घुसपैठ का गंभीर असर देखा गया है। उन्होंने इसके लिए धर्म के आधार पर हुए देश के विभाजन को एक बड़ी गलती बताया और कहा कि नेताओं की गलतियों का खामियाजा आज देश भुगत रहा है।
पाकिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की स्थिति
गृह मंत्री अमित शाह ने विभाजन के बाद पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों की दयनीय स्थिति को आंकड़ों के साथ सामने रखा, जो उनके अनुसार भारत में शरणार्थियों की समस्या का मूल कारण है। उन्होंने कहा कि:
“1947 में पाकिस्तान में हिंदू समुदाय की जनसंख्या 13% और अन्य अल्पसंख्यक 1.2% थी, जो अब घटकर मात्र 1.73% रह गई है। बांग्लादेश में भी हिंदुओं की हिस्सेदारी 22% से घटकर 7.9% तक पहुंच गई है। इन समुदायों में अधिकांश ने प्रताड़ना के कारण भारत में शरण ली।”
शाह ने जोर देकर कहा कि इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि इन देशों में अल्पसंख्यकों को या तो धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया गया या उन्हें देश छोड़कर भागना पड़ा। उन्होंने कहा कि जो हिंदू वहां कम हुए, वे धर्मांतरण नहीं हुए, बल्कि उनमें से बहुतों ने प्रताड़ना के कारण भारत में शरण ली।
भारत में मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि और घुसपैठ का गणित
इसके विपरीत, गृह मंत्री ने भारत में जनसंख्या वृद्धि के आंकड़ों को घुसपैठ से जोड़ा। उन्होंने कहा:
“भारत में मुस्लिम जनसंख्या 1951 में 9.8% थी, जो 2011 की जनगणना में बढ़कर 14.2% हो गई। यह वृद्धि स्वाभाविक जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ अवैध घुसपैठ के कारण भी हुई है।”
शाह ने इस बात पर जोर दिया कि देश की सांस्कृतिक और जनसांख्यिकीय संरचना को घुसपैठ प्रभावित कर रही है। उन्होंने आगे क्षेत्रीय आंकड़े प्रस्तुत करते हुए अपने दावे को पुख्ता किया:
“असम में 2011 की जनगणना में मुस्लिमों की आबादी की दशकीय वृद्धि दर 29.6% थी। यह घुसपैठ के बिना संभव नहीं है। पश्चिम बंगाल के कई जिलों में यह वृद्धि दर 40% है, और कई सीमावर्ती क्षेत्रों में 70% तक पहुँच गई है। यह स्पष्ट प्रमाण है कि घुसपैठ अतीत में हुई है।”
उन्होंने सवाल उठाया कि जब गुजरात और राजस्थान जैसे सीमावर्ती राज्यों में घुसपैठ नहीं होती, तो असम और पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती क्षेत्रों में इतनी अधिक दशकीय वृद्धि दर क्यों है।
घुसपैठियों पर भाजपा का संकल्प: डिटेक्ट, डिलीट और डिपोर्ट
अमित शाह ने घुसपैठ की समस्या को राजनीतिक वोट बैंक से जोड़ने वाली पार्टियों की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि कुछ राजनीतिक दलों ने घुसपैठ में वोट बैंक देखना शुरू कर दिया और इसलिए घुसपैठियों को प्रश्रय दिया।
गृह मंत्री ने भाजपा की घुसपैठ विरोधी नीति को स्पष्ट करते हुए कहा कि उनकी पार्टी 1950 के दशक से ही एक कठोर सिद्धांत पर अडिग है:
“भाजपा ने डिटेक्ट, डिलीट और डिपोर्ट के सूत्र को 1950 के दशक से स्वीकार किया है। हम घुसपैठियों को डिटेक्ट (पहचानेंगे) भी करेंगे, मतदाता सूची से डिलीट (हटाएंगे) भी करेंगे, और इस देश से डिपोर्ट (बाहर भेजेंगे) भी करेंगे।”
उन्होंने घुसपैठियों की परिभाषा भी स्पष्ट की। उनके अनुसार, घुसपैठिये वे हैं, “जिन पर धार्मिक प्रताड़ना नहीं हुई और आर्थिक कारणों या अन्य कारणों से अवैध तरीके से भारत आना चाहते हैं।” उन्होंने चेतावनी दी कि अगर बिना किसी रोक-टोक के किसी को भी भारत आने की अनुमति दे दी गई, तो “हमारा देश धर्मशाला बन जाएगा।”
शरणार्थियों के लिए CAA: एक ऐतिहासिक वादा पूरा हुआ
अमित शाह ने स्पष्ट किया कि धार्मिक प्रताड़ना के कारण आए शरणार्थी और अवैध घुसपैठिये दो अलग-अलग श्रेणियां हैं। उन्होंने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) का पुरजोर बचाव किया और इसे नेहरू-लियाकत पैक्ट के तहत भारत के नेताओं द्वारा किए गए वादे को पूरा करने वाला कदम बताया।
उन्होंने कहा:
“आज़ादी के बाद भारत के नेताओं ने पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों से वादा किया था कि अभी दंगे हो रहे हैं, इसलिए अभी मत आओ; बाद में हम आपको नागरिकता देंगे। यह नेहरू-लियाकत पैक्ट का हिस्सा था। लेकिन कांग्रेस की सरकारों ने उन्हें नागरिकता नहीं दी, उन्हें शरणार्थी बना दिया।”
शाह ने जोर देकर कहा कि:
“जितना मेरा अधिकार इस देश की मिट्टी पर है, उतना ही पाकिस्तान–बांग्लादेश के हिन्दुओं का अधिकार इस देश की मिट्टी पर है। यह बात मैं देश के गृह मंत्री के रूप में कहता हूँ।”
उन्होंने कहा कि “1951 से लेकर 2014 तक जो गलतियाँ हुई थीं, उनका एक प्रकार से तर्पण करने का काम मोदी जी ने किया था,” जब पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद CAA लाया गया और इन शरणार्थियों को नागरिकता देने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
धर्म के नाम पर विभाजन थी ‘बहुत बड़ी गलती’
गृह मंत्री ने विभाजन की पृष्ठभूमि में भारतीय नेताओं की भूमिका पर भी टिप्पणी की। उन्होंने कहा:
“इस देश का विभाजन धर्म के नाम पर करना बहुत बड़ी गलती थी; आपने भारत माता की भुजाओं को काटकर अंग्रेजों के षड्यंत्र को सफल बना दिया।”
उन्होंने राष्ट्र की संप्रभुता पर सवाल उठाते हुए कहा:
“मैं देश के सभी नागरिकों से पूछना चाहता हूँ। देश के प्रधानमंत्री कौन होंगे, मुख्यमंत्री कौन होंगे, इसका फैसला देश के नागरिकों के अलावा किसी और को करने का अधिकार होना चाहिए क्या?”
यह टिप्पणी सीधे तौर पर उन राजनीतिक ताकतों पर हमला थी जो वोट बैंक की राजनीति के लिए घुसपैठियों को प्रश्रय देती हैं, क्योंकि इससे देश के नागरिकों का निर्णय लेने का अधिकार प्रभावित होता है।
नरेन्द्र मोहन जी और दैनिक जागरण की भूमिका
व्याख्यान के दौरान, अमित शाह ने दैनिक जागरण के पूर्व प्रधान संपादक नरेन्द्र मोहन जी और समूह की पत्रकारिता के मूल्यों की सराहना भी की।
उन्होंने कहा कि जब आपातकाल लगा, तब देश के लोकतंत्र और पत्रकारिता की परीक्षा थी और नरेन्द्र मोहन जी के नेतृत्व में दैनिक जागरण ने उसके खिलाफ लड़ाई लड़ी, जिसके कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा था।
एक व्यक्तिगत किस्सा साझा करते हुए, गृह मंत्री ने अपनी हिंदी भाषा में सुधार का श्रेय भी दैनिक जागरण को दिया:
“जब राष्ट्रीय राजनीति में आया तो मुझे गुजराती आती थी लेकिन कांग्रेस ने मुझे एक केस में फंसा दिया था जिसके कारण मुझे दिल्ली में गुजरात भवन में रहना पड़ता था। उस वक्त मेरे पास काम नहीं था और ज्यादा लोग बुलाते नहीं थे। ऐसे में मैं हर रोज दैनिक जागरण के प्रथम पेज का अनुवाद गुजराती में करता था, ताकि मेरी हिंदी अच्छी हो सके। मेरी हिंदी अच्छी करने का श्रेय दैनिक जागरण को जाता है।”
कुल मिलाकर, अमित शाह का यह व्याख्यान न केवल घुसपैठ, जनसांख्यिकी और CAA जैसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों पर सरकार के कड़े रुख को दोहराता है, बल्कि यह साहसी पत्रकारिता और राष्ट्रीय मूल्यों के बीच के संबंध को भी रेखांकित करता है।