कार्तिक मास का महत्व और लोक कल्याण

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सरोज कुमारी
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्। देवीं सरस्वतीं चैव ततो जयमुदीरयेत्॥
“भगवान् नारायण, नरश्रेष्ठ नर तथा सरस्वती देवी को नमस्कार करके जयस्वरूप इतिहास-पुराण का पाठ करना चाहिये।’

ऋषि बोले – सूतजी ! हमलोग कार्तिक मास का माहात्म्य सुनना चाहते हैं।

सूतजी बोले – ऋषियो ! तुमने मुझसे जो प्रश्न किया है, उसी को ब्रह्मपुत्र नारदजी ने जगद्गुरु ब्रह्मा से इस प्रकार पूछा था – पितामह !

मासों में सबसे श्रेष्ठ मास, देवताओं में सर्वोत्तम देवता, और तीर्थों में विशिष्ट तीर्थ कौन हैं, यह बताइये।’

ब्रह्माजी बोले – मासों में कार्तिक, देवताओं में भगवान् विष्णु, और तीर्थों में नारायण तीर्थ (बदरिकाश्रम) श्रेष्ठ है। – ये तीनों कलियुग में अत्यन्त दुर्लभ हैं।

इतना कह कर ब्रह्माजी ने भगवान् राधाकृष्ण का स्मरण किया और पुनः नारदजी से कहा – बेटा !

तुमने समस्त लोकों का उद्धार करने के लिये यह बहुत अच्छा प्रश्न किया। मैं कार्तिक का माहात्म्य कहता हूँ।

कार्तिक मास भगवान् विष्णु को सदा ही प्रिय है। कार्तिक में भगवान् विष्णु के उद्देश्य से जो कुछ पुण्य किया जाता है, उसका नाश मैं नहीं देखता।

नारद ! यह मनुष्ययोनि दुर्लभ है। इसे पाकर मनुष्य अपने को इस प्रकार रखे कि उसे पुनः नीचे न गिरना पड़े।

कार्तिक सब मासों में उत्तम है। यह पुण्यमय वस्तुओं में सबसे अधिक पुण्यतम और पावन पदार्थों में सबसे अधिक पावन है।

इस महीने में तैंतीसों (३३) देवता मनुष्य के सन्निकट (निकट) हो जाते हैं, और इसमें किये हुए स्नान, दान, भोजन, व्रत, तिल, धेनु, सुवर्ण, रजत, भूमि, वस्त्र आदि के दानों को विधिपूर्वक ग्रहण करते हैं।

कार्तिक में जो कुछ दिया जाता है, जो भी तप किया जाता है, उसे सर्वशक्तिमान् भगवान् विष्णु ने अक्षय फल देनेवाला बतलाया है।

भगवान् विष्णु के उद्देश्य से मनुष्य कार्तिक में जो कुछ दान देता है, उसे वह अक्षयरूप में प्राप्त करता है।

उस समय अन्नदान का महत्त्व अधिक है। उससे पापों का सर्वथा नाश हो जाता है।

जो कार्तिकमास प्राप्त हुआ देख पराये अन्न को सर्वथा त्याग देता है, वह अतिकृच्छ्र यज्ञ का फल प्राप्त करता है।

कार्तिकमास के समान कोई मास नहीं, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं, वेदों के समान कोई शास्त्र नहीं और गङ्गाजी के समान दूसरा कोई तीर्थ नहीं है। [१] इसी प्रकार अन्नदान के सदृश दूसरा कोई दान नहीं है।

[१] न कार्तिकसमो मासो न कृतेन समं युगम् । न वेदसदृशं शास्त्रं न तीर्थं गङ्गया समम् ।। (स्क० पु० वै० का० मा० १। ३६-३७)

दान करने वाले पुरुषों के लिये न्यायोपार्जित द्रव्य के दान का सुअवसर दुर्लभ है, उसका भी तीर्थ में दान किया जाना तो और भी दुर्लभ है।

मुनिश्रेष्ठ ! पाप से डरने वाले मनुष्य को कार्तिक मास में शालग्राम शिला का पूजन और भगवान् वासुदेव का स्मरण अवश्य करना चाहिये।

दान आदि करने में असमर्थ मनुष्य प्रतिदिन प्रसन्नतापूर्वक नियम से भगवन्नामों का स्मरण करे।

कार्तिक में भगवान् विष्णु की प्रसन्नता के लिये विष्णु-मन्दिर अथवा शिव-मन्दिर में रात को जागरण करे।

शिव और विष्णु के मन्दिर न हों तो किसी भी देवता के मन्दिर में जागरण करे।

यदि दुर्गम वन में स्थित हो या विपत्ति में पड़ा हो तो – पीपल के वृक्ष की जड़ में अथवा तुलसी के वनों में जागरण करे।

भगवान् विष्णु के समीप उन्हीं के नामों और लीला-कथाओं का गायन करे।

यदि आपत्ति में पड़ा हुआ मनुष्य कहीं अधिक जल न पावे अथवा रोगी होने के कारण जल से स्नान न कर सके तो – भगवान् के नाम से मार्जन (निर्मल का भाव) मात्र कर ले।

व्रत में स्थित हुआ पुरुष यदि उद्यापन की विधि करने में असमर्थ हो तो व्रत की समाप्ति के बाद उसकी पूर्णता के लिये केवल ब्राह्मणों को भोजन करावे।

जो स्वयं दीपदान करने में असमर्थ हो, वह दूसरे के बुझे हुए दीप को जला दे अथवा हवा आदि से यत्नपूर्वक उसकी रक्षा करे।

भगवान् विष्णु की पूजा न हो सकने पर तुलसी अथवा आँवले का भगवद्बुद्धि से पूजन करे।

मन-ही-मन भगवान् विष्णु के नामों का निरन्तर कीर्तन करता रहे।

गुरु के आदेश देने पर उनके वचन का कभी उल्लङ्घन न करे।

यदि अपने ऊपर दुःख आदि आ पड़े तो गुरु की शरण में जाय।

गुरु की प्रसन्नता से मनुष्य सब कुछ प्राप्त कर लेता है। परम बुद्धिमान् कपिल और महातपस्वी सुमति भी अपने गुरु गौतम की सेवा से अमरत्व को प्राप्त हुए हैं।

इसलिये विष्णु-भक्त पुरुष कार्तिक में सब प्रकार से प्रयत्न करके गुरु की सेवा करे। ऐसा करने से उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

सब दानों से बढ़कर – कन्यादान है,

कन्यादान उससे अधिक – विद्यादान है,

विद्यादान से भी – गोदान का महत्त्व अधिक है और,

गोदान से भी बढ़कर – अन्नदान है।

क्योंकि यह समस्त संसार अन्न के आधार पर ही जीवित रहता है। इसलिये कार्तिक में अन्नदान अवश्य करना चाहिये।

कार्तिक में नियम का पालन करने पर अवश्य ही भगवान् विष्णु का सारूप्य एवं मोक्षदायक पद प्राप्त होता है।

कार्तिक में ब्राह्मण पति-पत्नी को भोजन कराना चाहिये। चन्दन से उनका पूजन करना चाहिये, अनेक प्रकार के वस्त्र, रत्न और कम्बल देने चाहिये। ओढ़ने के साथ ही रूईदार बिछावन, जूता और छाता भी दान करने चाहिये।

कार्तिक में भूमि पर शयन करनेवाला मनुष्य युग-युग के पापों का नाश कर डालता है।

जो कार्तिकमास में भगवान् विष्णु के आगे अरुणोदयकाल में जागरण करता है और नदी में स्नान, भगवान् विष्णु को कथा का श्रवण, वैष्णवों का दर्शन तथा नित्यप्रति भगवान् विष्णु का पूजन करता है, उसके पितरों का नरक से उद्धार हो जाता है।

अहो ! जिन लोगों ने भक्तिपूर्वक भगवान् विष्णु का पूजन नहीं किया, वे इस कलियुग की कन्दरा में गिरकर नष्ट हो गये, लुट गये।

जो मनुष्य कमल के एक फूल से देवताओं के स्वामी भगवान् कमलापति की पूजा करता है, वह करोड़ों जन्मों के पापों का नाश कर डालता है।

मुनिश्रेष्ठ ! जो कार्तिक में एक लाख (१,००,०००) तुलसीदल चढ़ाकर भगवान् विष्णु की पूजा करता है, वह एक-एक दल पर मुक्ता दान करने का फल प्राप्त करता है।

जो भगवान् के श्रीअङ्गों से उतारी हुई प्रसाद स्वरूपा तुलसी को मुख में, मस्तक पर और शरीर में धारण करता है तथा भगवान् के निर्माल्यों से अपने अङ्गों का मार्जन करता है, वह मनुष्य सम्पूर्ण रोगों और पापों से मुक्त हो जाता है।

भगवत्पूजन सम्बन्धी प्रसाद स्वरूप शङ्ख का जल, भगवान् की भक्ति, निर्माल्य पुष्प आदि, चरणोदक, चन्दन, और धूप – ब्रह्महत्या का नाश करनेवाले हैं।

नारद ! कार्तिक मास में प्रात:काल स्नान करे और प्रतिदिन अपनी शक्ति के अनुसार ब्राह्मणों को अन्न-दान दे।

क्योंकि सब दानों में अन्न-दान ही सबसे बढ़कर है। अन्न से ही मनुष्य जन्म लेता और अन्न से ही बढ़ता है। अन्न को समस्त प्राणियों का प्राण माना गया है।

अन्न-दान करने वाला पुरुष संसार में सब कुछ देने वाला और सम्पूर्ण यज्ञों का अनुष्ठान करनेवाला है।

पूर्वकाल में सत्यकेतु ब्राह्मण ने केवल अन्न-दान से सब पुण्यों का फल पाकर परम दुर्लभ मोक्ष को भी प्राप्त कर लिया था।

कार्तिक मास में अनेक प्रकार के दान देकर भी यदि मनुष्य भगवान् का चिन्तन नहीं करता तो वे दान उसे कभी पवित्र नहीं करते।

भगवन्नाम-स्मरण की महिमा का वर्णन मैं भी नहीं कर सकता।

‘गोविन्द गोविन्द हरे मुरारे गोविन्द गोविन्द मुकुन्द कृष्ण। गोविन्द गोविन्द रथाङ्गपाणे गोविन्द दामोदर माधवेति।’

इस प्रकार प्रतिदिन कीर्तन करे।

नित्यप्रति भागवत के आधे श्लोक या चौथाई श्लोक का भी कार्तिक में श्रद्धा और भक्ति के साथ अवश्य पाठ करे।

जिन्होंने भागवतपुराण का श्रवण नहीं किया, पुराणपुरुष भगवान् नारायण की आराधना नहीं की और ब्राह्मणों के मुखरूपी अग्नि में अन्न की आहुति नहीं दी, – उन मनुष्यों का जन्म व्यर्थ ही गया।

देवर्षे ! जो मनुष्य कार्तिक मास में प्रतिदिन गीता का पाठ करता है, उसके पुण्यफल का वर्णन करने की शक्ति मुझ में नहीं है।

गीता के समान कोई शास्त्र न तो हुआ है और न होगा। एकमात्र गीता ही सदा सब पापों को हरने वाली और मोक्ष देनेवाली है [२]।

[२] कार्तिके मासि विप्रेन्द्र यस्तु गीतां पठेन्नरः । तस्य पुण्यफलं वक्तुं मम शक्तिर्न विद्यते॥ गीतायास्तु समं शास्त्रं न भूतं न भविष्यति । सर्वपापहरा नित्यं गीतैका मोक्षदायिनी ॥ (स्क० पु० वै० का० मा० २। ४९-५०)

गीता के एक अध्याय का पाठ करने से मनुष्य घोर नरक से मुक्त हो जाते हैं, जैसे – जड़ ब्राह्मण । मुक्त हो गया था।

सात (७) समुद्रों तक की पृथ्वी का दान करने से जो फल प्राप्त होता है, शालग्राम शिला के दान करने से मनुष्य उसी फल को पा लेता है।

अतः कार्तिक मास में स्नान तथा दानपूर्वक शालग्राम शिला का दान अवश्य करना चाहिये।

कार्तिक माहात्म्य-स्कंद पुराण से साभार

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