करवा चौथ 2025: प्रेम, विश्वास और परंपरा का प्रतीक पर्व
विवाहित महिलाओं द्वारा पति की लंबी आयु, परिवार की समृद्धि और अखंड सौभाग्य की कामना के लिए मनाया जाने वाला यह पर्व भारतीय संस्कृति की आस्था और एकता का प्रतीक है।
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महिलाएं सूर्योदय से चंद्रोदय तक निर्जला व्रत रखती हैं।
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देवी पार्वती, भगवान शिव और चंद्रमा की पूजा कर अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मांगा जाता है।
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यह व्रत पति-पत्नी के प्रेम, निष्ठा और समर्पण का प्रतीक है।
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करवा चौथ 2025 में चंद्र उदय शाम 7:42 बजे होगा।
समग्र समाचार सेवा,
नई दिल्ली, 9 अक्टूबर: करवा चौथ उत्तर भारत का एक पारंपरिक त्योहार है, जो विवाहित महिलाओं द्वारा पति की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और पारिवारिक कल्याण के लिए मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं सूर्योदय से चंद्रोदय तक निर्जला व्रत रखती हैं और शाम को चांद देखकर व्रत को संपन्न करती हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह व्रत पति-पत्नी के बीच प्रेम, विश्वास और समर्पण का प्रतीक है। साथ ही यह महिलाओं की सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का भी पर्व है, जिसमें वे समूह में मिलकर देवी पार्वती, भगवान शिव और चंद्रमा की पूजा करती हैं। करवा चौथ पति की दीर्घायु के लिए अटूट श्रद्धा, भक्ति और भारतीय संस्कृति के आदर्शों का उत्सव है।
करवा चौथ पर क्यों करें सोलह श्रृंगार?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, करवा चौथ के दिन हर सुहागिन महिला को सोलह श्रृंगार करना अत्यंत शुभ माना जाता है। यह न केवल सौंदर्य और सज्जा का प्रतीक है, बल्कि अखंड सौभाग्य और पति की लंबी उम्र की कामना से जुड़ा हुआ है। पूजा से पहले महिलाएं सिंदूर, चूड़ियां, बिंदी, काजल, गजरा, नथ, अंगूठी, झुमके, मांग टीका, मंगलसूत्र, पायल, बिछिया, आलता, मेंहदी, बाजूबंद और कमरबंद आदि पहनकर पूरा श्रृंगार करती हैं। यह श्रृंगार माता करवा को समर्पित होता है और माना जाता है कि इससे वे प्रसन्न होकर व्रती को सुख-समृद्धि और सौभाग्य का आशीर्वाद देती हैं।
मिट्टी का करवा क्यों आवश्यक है?
मिट्टी शुद्ध और सात्त्विक मानी गई है, जबकि धातु या प्लास्टिक के करवे कृत्रिम तत्वों से बने होते हैं। मिट्टी का करवा पर्यावरण के साथ सामंजस्य का प्रतीक है और यह धरती माँ के प्रति कृतज्ञता का भाव भी प्रकट करता है। इसलिए धार्मिक दृष्टि से कहा गया है कि यदि पूजा में मिट्टी का करवा न हो, तो व्रत अधूरा माना जाता है। इस प्रकार करवा चौथ का मिट्टी का करवा केवल पूजा का पात्र नहीं, बल्कि जीवन, निष्ठा, प्रकृति और धर्म का एक अद्भुत संगम है, जो स्त्रियों के सच्चे प्रेम और श्रद्धा का प्रतीक बनकर आज भी भारतीय परंपरा में जीवंत है।
करवा चौथ में चांद का महत्व:
हिंदू धर्म में चंद्रमा को एक दिव्य शक्ति के रूप में माना जाता है और चंद्रमा मन की शांति, सुकून और स्थिरता का प्रतीक होता है। कहते हैं कि करवा चौथ के दिन व्रत करने के बाद अगर चंद्रमा की पूजा की जाती है, तो इससे व्रत करने वाली महिला और उनके परिवार को मन की शांति मिलती है। इतना ही नहीं, करवा चौथ के चांद को वैवाहिक जीवन में समृद्धि लाने का प्रतीक माना जाता है। कहते हैं कि चंद्रमा की पूजा करने से पति की उम्र लंबी होती है, साथ ही परिवार में सुख और शांति बनी रहती है और धन की कमी भी नहीं होती है।
करवा चौथ 2025: तिथि और पूजा का शुभ मुहूर्त:
करवा चौथ का पर्व इस साल 10 अक्टूबर 2025, शुक्रवार के दिन मनाया जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 9 अक्टूबर की रात 10:54 बजे शुरू होकर 10 अक्टूबर को सायं 7:38 बजे तक रहेगी। इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं प्रातः 5:16 बजे से लेकर शाम 6:29 बजे तक के बीच पूजा कर सकती हैं। चंद्रमा का उदय शाम 7:42 बजे होगा, और महिलाएं इसी समय चंद्र दर्शन करके व्रत का पारण करती हैं।