हिमाचल का कोल्ड डेजर्ट यूनेस्को मान्यता प्राप्त, संरक्षण अब बड़ी चुनौती

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पूनम शर्मा
हिमाचल प्रदेश के कोल्ड डेजर्ट बायोस्फीयर रिजर्व को यूनेस्को की वर्ल्ड नेटवर्क ऑफ बायोस्फीयर रिजर्व्स (WNBR) में शामिल किया जाना भारत और राज्यवासियों के लिए गर्व का क्षण है। पेरिस में आयोजित यूनेस्को के 37वें सेशन में यह निर्णय लिया गया, जिससे भारत के ऐसे स्थल संख्या 13 तक पहुंच गए। लाहौल-स्पीति के 7,770 वर्ग किलोमीटर में फैले यह शीत रेगिस्तान विश्व के सबसे नाजुक पारिस्थितिक तंत्रों में से एक है।

यह रिजर्व समुद्र तल से 3,300 से 6,600 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और इसमें पिन वैली नेशनल पार्क, चंद्रताल और किब्बर अभयारण्य, अल्पाइन झीलें और ग्लेशियल घाटियां शामिल हैं। यहां 732 प्रकार के संवहनीय पौधे पाए जाते हैं, जिनमें 30 प्रजातियाँ केवल यहीं पाई जाती हैं। हिमालय की प्रसिद्ध जीव-जंतु जैसे स्नो लीपर्ड, आइबेक्स, ब्लू शीप और गोल्डन ईगल भी इस क्षेत्र में हैं। लगभग 12,000 लोग यहां याक और बकरी पालन, जौ की खेती और बौद्ध मठों पर आधारित तिब्बती चिकित्सा के जरिए जीवन यापन करते हैं।

लेकिन यह मान्यता केवल गर्व का विषय नहीं है, बल्कि जिम्मेदारी भी है। ग्लेशियरों और नाजुक पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा अब हिमाचल सरकार और स्थानीय समुदाय की प्राथमिक जिम्मेदारी बन गई है।

भारत के यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल

भारत के पास 44 यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स हैं (36 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक, 1 मिश्रित)। इनमें से कई साइट्स पर दबाव और क्षरण देखा जा रहा है। ताजमहल प्रदूषण और नदी के परिवर्तनों से प्रभावित है, सुंदरबन समुद्र तल बढ़ने और खारापन से जूझ रहा है, पश्चिमी घाटों में विकास के कारण जैव विविधता घट रही है, और काजीरंगा भी बाढ़ और अवसंरचना से खतरे में है। हंपि और अजंता-एलोरा जैसे सांस्कृतिक स्थल संरक्षित हैं, लेकिन पर्यटन और प्रदूषण के कारण दबाव में हैं।

आने वाली चुनौतियाँ

1. जलवायु परिवर्तन: ट्रांस-हिमालय में ग्लेशियरों का पिघलना तेज हो रहा है, जो जल और जैव विविधता के लिए खतरा है। असामयिक बर्फबारी और चरागाहों का सिकुड़ना पशुपालन और वन्यजीवन दोनों पर दबाव डाल रहा है।

2. पर्यटन और संरक्षण का संतुलन: यूनेस्को मान्यता से पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी। मणाली, लेह और शिमला के अनुभव दिखाते हैं कि बिना नियमन के आने वाले पर्यटक नाजुक पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुंचा सकते हैं। कैरिंग कैपेसिटी, अपशिष्ट प्रबंधन और ईको-टूरिज्म नियम अनिवार्य हैं।

3. स्थानीय जीवनयापन का दबाव: सड़कें, बाजार और कनेक्टिविटी बढ़ाने की मांग बढ़ रही है। बुरी तरह से नियोजित परियोजनाएं घाटियों को स्थायी नुकसान पहुंचा सकती हैं। इसलिए हर विकास परियोजना पर्यावरण अनुकूल होनी चाहिए।

4. प्रशासनिक जटिलताएँ: केंद्रीय मंत्रालय, राज्य सरकार, वन विभाग और स्थानीय परिषदों के बीच समन्वय की कमी प्रभावी संरक्षण में बाधक है। एक एकीकृत कार्य योजना तत्काल बनाई जानी चाहिए।

5. औषधीय जड़ी-बूटियों का अति-उत्पादन और शिकार: दुर्लभ प्रजातियाँ जैसे सी-बकथॉर्न और जूनिपर पहले ही संवेदनशील हैं। समुदाय की सतर्कता और सख्त कानून प्रवर्तन जरूरी हैं।

हिमाचल सरकार की भूमिका

सरकार को पर्यटन को नियंत्रित करना होगा, अनियोजित होटलों को रोकना होगा और वैज्ञानिक अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली विकसित करनी होगी। लाहौल-स्पीति में निर्माण कार्य नवीकरणीय ऊर्जा, जल संचयन और ग्रीन बिल्डिंग मानकों के अनुसार होना चाहिए। ग्लेशियर और वन्यजीवन की निगरानी के लिए Wildlife Institute of India जैसे संस्थानों के साथ साझेदारी जरूरी है।

सरकार को स्थानीय अर्थव्यवस्था को जड़ी-बूटी, हस्तशिल्प और ईको-टूरिज्म से विविध बनाना चाहिए। स्थानीय पंचायतें और मठ बायोस्फीयर रिजर्व के प्रशासन में औपचारिक भागीदार बनें।

स्थानीय समुदाय की जिम्मेदारी

स्थानीय लोग पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षक हैं। सदियों से वे प्रकृति के संतुलन में जीवन यापन कर रहे हैं। अब वैश्विक ध्यान उनके कंधों पर जिम्मेदारी बढ़ा रहा है। तिब्बती चिकित्सा, चरागाह चक्र और जल-साझा करने की परंपराओं को संरक्षित करना आवश्यक है।

ईको-फ्रेंडली आय जैसे होमस्टे, गाइडेड ट्रेक और ऑर्गेनिक खेती को अपनाना चाहिए। पशु संख्या को नियंत्रित करना और जड़ी-बूटी या वन्यजीवन की अवैध कटाई पर निगरानी अनिवार्य है। युवा परंपरा और आधुनिक अवसरों को जोड़कर गाँवों को सतत विकास की राह पर ले जा सकते हैं।

यूनेस्को मान्यता के लाभ

1. वैश्विक दृश्यता: कोल्ड डेजर्ट अब अमेज़न और अफ्रीकी सवाना जैसे स्थानों के साथ मंच साझा करता है, जिससे अनुसंधान और संरक्षण में सहयोग मिलेगा।

2. ईको-टूरिज्म मॉडल: होमस्टे, ट्रेक और मठ आधारित पर्यटन से रोजगार सृजित किया जा सकता है बिना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए।

3. समुदाय सशक्तिकरण: स्थानीय परिषदें और मठ निर्णय प्रक्रिया में भाग लेंगे, जिससे पारिस्थितिक शासन नीचे से ऊपर तक सक्रिय होगा।

4. जलवायु परिवर्तन प्रयोगशाला: उच्च ऊंचाई के रेगिस्तानों में पारिस्थितिक तंत्र के व्यवहार पर डेटा मिलेगा, जिससे वैश्विक नीति निर्माताओं को अनुकूलन रणनीति बनाने में मदद मिलेगी।

कोल्ड डेजर्ट बायोस्फीयर रिजर्व हिमालय का अनमोल रत्न है। इसकी प्राकृतिक सुंदरता और जैव विविधता को अब वैश्विक पहचान मिली है। लेकिन यह मान्यता तभी सार्थक होगी जब जिम्मेदारी निभाई जाएगी। हिमाचल सरकार और लाहौल-स्पीति के लोग विकास और संरक्षण, आधुनिक आकांक्षाओं और परंपरा के बीच संतुलन बनाए रखें। विश्व देख रहा है कि क्या मानव बुद्धि प्रकृति की धैर्य क्षमता के साथ तालमेल बिठा पाएगी। कोल्ड डेजर्ट सदियों से जीवित है; अब यह हम पर निर्भर है कि इसे आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखें।

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